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मुलायम सिंह यादवः एक फैसले ने बदल थी यूपी राजनीति, बन गए थे मुसलमानों के चहेते

समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक (Samajwadi Party (SP) Founder), उत्तर प्रदेश के तीन बार के मुख्यमंत्री और यूपी की राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का सोमवार को निधन हो गया। आज भले ही मुलायम का कुनबा देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में से एक हो लेकिन वे खुद एक किसान परिवार (a farming family) से देश के रक्षा मंत्री के पद तक पहुंचे थे। यूपी के मुस्लिम मतदाताओं (Muslim Voters of UP) के लिए मुलायम सबसे पसंदीदा राजनेता बने।

बतौर मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के पहले ही साल में मुलायम सिंह यादव ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने देश और प्रदेश की राजनीति बदल दी। उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को अपनी पुलिस को अयोध्या में एकत्रित और विवादित बाबरी मस्जिद पर चढ़ने की कोशिश कर रहे कार सेवकों पर गोलियां चलाने का निर्देश दिया। इस घटना में करीब 30 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद से मुलायम मुसलमानों के सबसे बड़े नेता बन गए। यही नहीं, उन्हें राजनीति में नया नाम भी मिला। विरोधी उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ कहने लगे।

जनता दल के नेता मुलायम सिंह उस समय समाजवादी जगत के कई दिग्गजों में से एक थे। हालांकि, कारसेवकों पर कार्रवाई के साथ, मुलायम ने खुद को मजबूत राजनेता के तौर पर स्थापित कर दिया। इसने भाजपा के तेजी से बढ़ते राम मंदिर आंदोलन को भी पटरी पर ला दिया गया। हालांकि घटना के बाद केंद्र और यूपी दोनों में भाजपा द्वारा जनता दल से समर्थन वापस लेने के बाद, मुलायम सिंह की सरकार गिर गई। पुलिस फायरिंग की घटना के ठीक दो साल बाद, कारसेवकों का एक और समूह बाबरी पर चढ़ गया और विवादित ढांचा तोड़ दिया गया। उस समय राज्य में भाजपा सरकार थी।

बाबरी विध्वंस की घटना से पहले मुसलमानों से सरकार में विश्वास बनाए रखने की अपील करते हुए मुलायम सिंह कहा था, “मस्जिद को नुकसान नहीं पहचने देंगे।” जब कार सेवक मस्जिद की तरफ कूच कर रहे थे तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इससे अधिकांश कार सेवक तितर-बितर हो गए। मुट्ठी भर लोग बाबरी के गुंबदों को तोड़ने के लिए ऊपर चढ़ गए थे लेकिन पुलिस ने उन्हें भी उतार दिया। इस घटना में मरने वालों की संख्या को लेकर अलग-अलग दावे थे, लेकिन आधिकारिक संख्या 30 के आसपास थी।

भाजपा ने मुलायम को इसके बाद से ही ‘मुल्ला मुलायम’ कहना शुरू कर दिया था। हालाकि, राम मंदिर को लेकर तेज होती राजनीति में खुद को किनारे करने वाले मुस्लिम समुदाय के लिए, 1992 में मुलायम ने जिस समाजवादी पार्टी का गठन किया, वह उनकी पसंदीदा पार्टी बन गई। ऐसा कहा जाता है कि सपा राज्य में 19% मुस्लिम वोट की एकमात्र दावेदार थी। मुस्लिमों के इसी समर्थन के बाद मुलायम को एक ऐसा समीकरण बनाने का मौका मिला जिसने यूपी की राजनीति बदल दी। मुस्लिम-यादव या ‘एम-वाई’ वोट बैंक मुलायम की सबसे बड़ी कामयाबी थी। मुलायम के लिए मुस्लिमों के बेशुमार समर्थन ने उन्हें 1992 के बाद यूपी से परे अन्य पार्टियों के लिए भी एक जाना पहचाना नेता बना दिया।

माना जाता है कि मुस्लिम समर्थन ने ही 1993 के चुनावों में सपा को 109 सीटों तक पहुंचाया। उस साल सपा ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिससे मुलायम को बसपा के समर्थन से दूसरे कार्यकाल के लिए सीएम बनने में मदद मिली। भाजपा को रोकने के लिए मुलायम और बसपा के संस्थापक कांशीराम की ओर से की गई यह सोशल इंजीनियरिंग थी। उनके नारे ने भाजपा को बुरी तरह परास्त किया, जैसे- “मिले मुलायम, कांशी राम, हवा में उड़ गए जय श्री राम।”

मुलायम ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल (2003-2007) तक पूर्ण मुस्लिम समर्थन जारी रखा। इस दौरान सपा ने 2004 के चुनावों में 39 सीटों का अपना सर्वश्रेष्ठ लोकसभा प्रदर्शन भी देखा। हालांकि बाद में बसपा प्रमुख मायावती ने मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जिससे सपा के वोट बैंक में सेंध लगी। तब से बसपा को मुस्लिम वोट का हिस्सा मिलता आ रहा है।