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मुख्यमंत्री धामी ने सरकारी कार्यक्रमों के आयोजन पर होने वाली फिजूलखर्ची पर लगाम लगाने के लिए सभी महकमों को दिए निर्देश

सरकारी खर्चों में मितव्ययता की सलाह तो मंत्री से लेकर अफसर तक, सभी देते हैं, लेकिन इन पर अमल अकसर होता नहीं। इस बार स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहल की और जो कदम उठाया, वह सच में सराहनीय है, बशर्ते इसके लिए महकमे कदम बढ़ाएं। मुख्यमंत्री ने सरकारी कार्यक्रमों के आयोजन पर होने वाली फिजूलखर्ची पर लगाम लगाने के लिए सभी महकमों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने आयोजन मुख्यमंत्री आवास के आडिटोरियम, जिसे मुख्य सेवक सदन नाम दिया गया है, में करें।

अब इस तरह के आयोजनों की पूरी व्यवस्था मुख्यमंत्री आवास में पहले से ही है, तो सोचिए, इससे कितना खर्च बचेगा। अभी तक तो होड़ लगी रहती है कि इस महकमे ने तीन सितारा होटल में कार्यक्रम किया, तो अन्य चार और पांच सितारा व्यवस्था की जुगत में लग जाते हैं। महत्वपूर्ण बात कि यह व्यवस्था राजधानी से लेकर जिलों तक में लागू होगी।

गोदियाल के बहाने हो रही कांग्रेस की घेराबंदी

विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष कांग्रेस एक बार फिर आमने-सामने हैं। इस बार शुरुआत भाजपा ने की। निशाना बनाया गणेश गोदियाल को। चुनाव के वक्त कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे, लेकिन पार्टी की करारी शिकस्त क्या हुई, हाईकमान ने सबसे पहले इनकी ही विदाई की। गोदियाल स्वयं भी चुनाव हार गए। जब कांग्रेस सत्ता में थी, गोदियाल बदरी-केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष हुआ करते थे।

अब भाजपा ने पांच साल पुराना हिसाब-किताब खोल दिया है। बतौर मंदिर समिति अध्यक्ष गोदियाल के कार्यकाल के कुछ फैसलों को भाजपा ने नियम विरुद्ध करार देकर उन पर चहुंतरफा ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए हैं। भाजपा सरकार और संगठन इस मसले पर एकजुट हैं। उधर, गोदियाल ने भी मोर्चा संभाला और उनके साथ भी कई दिग्गज जुटे। सरकार से मांग कर दी कि मामले की सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच कराई जाए। देखते हैं कितना लंबा खिंचेगा वार-पलटवार का सिलसिला।

धीमी आंच पर यशपाल और ठुकराल की खिचड़ी

रुद्रपुर से लगातार चुनाव जीते राजकुमार ठुकराल को भाजपा ने इस बार मौका नहीं दिया। फायरब्रांड टाइप छवि के ठुकराल को कतई अंदेशा नहीं था कि उनका टिकट इस तरह कट जाएगा। आनन-फानन निर्दलीय मैदान में उतर गए, लेकिन पराजित हुए। इन दिनों उनके कांग्रेस में जाने की चर्चा जोर-शोर से चल रही है। इस चर्चा का कारण यह कि हाल में कांग्रेस के नेता विधायक दल यशपाल आर्य ने उनसे लंबी मुलाकात की।

यूं तो आर्य मूल रूप से कांग्रेसी रहे हैं, मगर 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में चले गए, चुनाव जीते और मंत्री बने। लगभग साढ़े चार साल भाजपा में रहे तो पड़ोसी सीट के विधायक ठुकराल से नजदीकी होना स्वाभाविक है। लगता है आर्य अब ठुकराल की नब्ज टटोल रहे हैं कि भाजपा से तो निकल लिए, क्या कांग्रेस में शामिल होंगे। जो भी खिचड़ी पक रही है, जल्द उबाल आ ही जाएगा

खामोशी किसी राजनीतिक तूफान का संकेत तो नहीं

उत्तराखंड की राजनीति का एक बड़ा नाम, हरक सिंह रावत इन दिनों खामोशी धारण किए हुए हैं। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि हरक विधायक नहीं हैं। कांग्रेस की एनडी तिवारी, विजय बहुगुणा, हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। यहां तक कि कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तब भी हरक पार्टी के नेता विधायक दल का ओहदा संभाले हुए थे।

भाजपा में आए तो फिर कैबिनेट मंत्री बने। हालिया विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गुणा-भाग के धुरंधर माने जाने वाले हरक मात खा गए। टिकट बंटवारे से ठीक पहले भाजपा ने उनकी विदाई कर दी तो घर वापसी करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए। स्वयं चुनाव न लड़कर पुत्रवधू को मैदान में उतारा, लेकिन सफलता नहीं मिली। कांग्रेस सत्ता से बाहर तो हरक भी पाश्र्व में चले गए। हालांकि कहने वाले कह रहे हैं कि यह तूफान से पहले की खामोशी है।