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मिशन मार्स: अमेर‍िकी रोवर जीवन की तलाश करेगा पहुंचा लाल ग्रह, 2030 तक पृथ्वी पर सैंपल आने की संभावना

मंगल ग्रह पर जीवन तलाशने के अभियान में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) को पहली कामयाबी मिल चुकी है। गुरुवार को नासा के पर्सेवियरेंस ने मंगल ग्रह की सतह पर सफल लैंडिंग कर इतिहास रच दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन व्हाइट हाउस में लैंडिंग को टीवी पर लाइव देख रहे थे। अमेरिकी समयानुसार, दोपहर 3 बजकर 48 मिनट पर्सेवियरेंस पहली बार कैलिफ स्थित नासा के जेट प्रोपल्शन लैबोरेट्री को सूचना दी कि वह मंगल ग्रह में प्रवेश कर गया है। इसके बाद लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू हुई तो करीब 7 मिनट तक सब की सांसें अटकी रहीं। सफल लैंडिंग के बाद कंट्रोल रूम में बैठे वैज्ञानिकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया।

रोवर कार के बराबर आकार का है जिसका वजन 1025 किलो है। ये अत्याधुनिक कैमरे, लेजर और रोबोटिक आर्म से लैस है। इसकी मदद से इस ग्रह पर जीवन की संभावना की तलाश होगी। लेजर से कण व रसायनों की जांच कर पता लगेगा कि सतह पर जब पानी भरपूर था, तब वहां जीवाश्म जीवन का स्तर क्या था।

मानव तकनीकी कौशल का उदाहरण इंजेन्युइटी

रोवर में रखकर एक छोटा ड्रोन हेलीकॉप्टर इंजेन्युइटी भी भेजा गया। इंजेन्युइटी वहां उड़ानें भरेगा और हवाई सर्वे करेगा।

पहली तस्वीर

पर्सेवियरेंस ने लैंडिंग के बाद पहली तस्वीर जारी की तो नासा मार्स रोवर के ट्विटर हैंडल पर इसे पोस्ट करते हुए लिखा गया- हेलो दुनिया, मेरे हमेशा के लिए नए घर से पहली सेल्फी। एक बार और साबित हो गया कि विज्ञान और अमेरिकी प्रतिभा की ताकत के साथ कुछ भी संभावना के दायरे से परे नहीं है। – जो बाइडन, राष्ट्रपति अमेरिका

विशेष आंकड़े

203 दिन की यात्रा के बाद लैंडिंग

19,308 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मंगल में प्रवेश

19,633 करोड़ रुपये का बजट

45 किलोमीटर चौड़े जेजीरो क्रेटर पर उतरा रोवर

1025 किलोग्राम वजनी है रोवर

आकार कार के बराबर

2030 तक पृथ्वी पर सैंपल आने की संभावना

वैज्ञानिकों ने रोवर को इस तरह से तैयार किया है जो अगले दशक तक वैज्ञानिकों के लिए काम करेगा। यही नहीं यह रोवर मंगल से कई तरह के सैंपल भी पृथ्वी पर लाने में मदद करेगा। वैज्ञानिक इन्हीं सैंपलों और रोवर द्वारा भेजी जाने वाली जानकारियों के आधार पर यह सिद्ध करेंगे कि हमारी पृथ्वी ही एक ग्रह नहीं है जहां जीवन है, मंगल भी ऐसा ग्रह हो सकता है जहां पर जीवन हो सकता है। आने वाले समय में ये ग्रह मनुष्य का एक नया ठिकाना हो सकता है।

समझें, कैसे होगी मंगल पर जीवन की तलाश रोवर डेल्टा की ओर बढ़ेगा और बंजर और पूरी तरह ठंडे ग्रह पर मौजूद रसायनों में जीवन तलाशेगा। पर्सेवियरेंस से ग्रह पर जीवन की संभावना तलाशने में मदद की उम्मीद कम है लेकिन रोबोटिक्स स्टिक से वहां मौजूद चट्टानों के कुछ सैंपल पृथ्वी पर भेजेगा जो वैज्ञानिकों की मदद करेगा। पर्सेवियरेंस चट्टानों को खोदेगा। सैंपल को ट्यूब में एकत्र कर इसे पृथ्वी पर भेजेगा। यूरोपियन स्पेस एजेंसी कारोबार पर्सेवियरेंस के रास्ते से ट्यूब को पकड़कर छोटे रॉकेट में स्थानांतरित कर देगा जो अंतरिक्ष में ही फट जाएगा। सैंपल मंगल के पास परिक्रमा कर रहे दूसरे स्पेसक्राफ्ट में जाएगा। इसी से सैंपल पृथ्वी पर आएगा। संभावना है कि ये सब वर्ष 2030 तक पूरा हो जाएगा। 45 किलोमीटर चौड़े जेजीरो क्रेटर पर उतरा रोवर, 1025 किलोग्राम वजनी है रोवर नासा का ये मिशन 30 जुलाई 2020 को फ्लोरिडा के केप कानावेरल स्पेस फोर्स स्टेशन से लांच किया गया था। पृथ्वी से 47,15,37,792 किलोमीटर दूर 45 किलोमीटर चौड़े जेजेरो क्रेटर पर सफल लैंडिंग हुई है। इसी के साथ अमेरिका मंगल ग्रह पर सबसे ज्यादा रोवर भेजने वाला दुनिया का पहला देश भी बन गया है।

भारत भी मंगलयान के लिए तैयार

भारत का अगला मिशन आर्बिटर मिशन होगा। चंद्रयान-3 के बाद ही इसे लांच किया जाएगा कोरोनावायरस के चलते चंद्रयान-3 के 2022 में रवाना होने की उम्मीद है। – के सिवन, इसरो प्रमुख