पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के फोन से बहुजन समाज पार्टी (BSP) के नेता हैरान हैं. चुनाव ड्यूटी में लगे कई नेताओं से उनकी बातचीत हुई. शनिवार शाम से ये सिलसिला शुरू हुआ. मायावती ने रविवार दोपहर तक बीएसपी के कई नेताओं को फोन लगाया. अधिकतर लोगों से उन्होंने ओपिनियन पोल को लेकर पूछताछ की. वे जानना चाहती हैं कि पोल और सर्वे में जो बताया जा रहा है क्या ग्राउंड पर भी वही हाल है. अधिकतर एजेंसियां राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस में कड़ा मुकाबला बता रही हैं.
बीएसपी प्रमुख मायावती अब तक तो हर तरह के सर्वे को खारिज करती रही हैं. ओपिनियन पोल के नतीजे को भी वे प्रोपेगैंडा मानती हैं. हालांकि इस बार मामला थोड़ा अलग है. बीएसपी के एक सांसद ने बताया कि इस बार तो पार्टी की तरफ से सर्वे भी कराया गया है. मायावती यह मान कर चल रही हैं कि एमपी और राजस्थान में शायद किसी को बहुमत न मिले. ऐसा हुआ तो बीएसपी की लॉटरी निकल सकती है.
मायावती को खुशखबरी का इंतजार
पूर्व मुख्यमंत्री को लगता है कि किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की सूरत में उन्हें ‘किंगमेकर’ बनने का चांस मिल सकता है. लंबे समय से उनके लिए कोई खुशखबरी नहीं आई है. क्या पता इन चुनावों में सत्ता की चाभी उनके हाथों में आ जाए. वैसे मौका तो उन्हें राजस्थान के पिछले चुनाव में भी मिला था. लेकिन कांग्रेस को बाहर से समर्थन देने के उनके फैसले ने पार्टी के विधायकों के हौंसले तोड़ दिए. फिर बीएसपी के सभी 6 विधायक बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए. यही नहीं ये विधायक अशोक गहलोत सरकार में मंत्री भी बन गए. इन सबके बीच मायावती को न माया मिली न राम. मायावती बस कांग्रेस को कोसती रह गईं.
राजस्थान की घटना से सबक लेते हुए मायावती ने इस चुनाव में स्टैंड बदल लिया है. साल 2018 में बीएसपी के सभी 6 विधायकों ने पार्टी छोड़ कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. मायावती ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गई थीं. लेकिन उन्हें वहां भी राहत नहीं मिली थी. इस बार मायावती पहले ही घोषणा कर चुकी है कि बीएसपी अब बाहर से किसी का समर्थन नहीं करेगी. जरूरत पड़ने पर बीएसपी सरकार में शामिल होगी. इस फैसले से पार्टी के विधायकों पर मायावती का ही कंट्रोल रह जाएगा.
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी तक चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. लेकिन मायावती ने अब तक अपनी चुनावी रैली का खाता तक नहीं खोला है. जबकि एमपी के विधानसभा चुनाव में तो अब बस 10 दिन ही बचे हैं. मायावती अब चुनाव प्रचार की शुरुआत 6 नवंबर को एमपी से कर रही हैं. उस दिन उनकी दो रैलियां हैं. उनकी पहली सभा अशोक नगर जिले में हैं. जबकि दूसरी चुनावी सभा निवाड़ी में है. बीएसपी के एक नेता ने बताया कि एमपी और राजस्थान में मायावती की 8-8 जनसभाएं करने की योजना है.
MP में GGP के साथ चुनाव लड़ रही BSP
लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर चुकीं मायावती ने एमपी चुनाव के लिए गठबंधन भी किया है. एमपी और छत्तीसगढ़ के चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) और बीएसपी का चुनावी तालमेल है. समझौते के मुताबिक बीएसपी 178 सीटों पर और जीजीपी 52 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. एमपी में बीएसपी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2008 में रहा है. तब उस चुनाव के बीएसपी को 7 सीटों पर जीत मिली थीं. उसके बाद 2013 के चुनाव में पार्टी को 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. पिछले चुनाव में बीएसपी के 2 विधायक ही चुने गए थे.
इस बार जीजीपी के साथ मिल कर बीएसपी का पूरा जोर 16 प्रतिशत दलित और 21 फीसदी आदिवासी वोटरों पर है. मायावती को उम्मीद है कि त्रिशंकु विधानसभा की हालत में सत्ता की चाभी उनके हाथ आ सकती है. ग्वालियर की मीटिंग में अमित शाह ने बीजेपी नेताओं से समाजवादी पार्टी और बीएसपी के उम्मीदवारों की मदद करने को कहा था. इसके पीछे उनकी रणनीति बीजेपी विरोधी वोटों में बंटवारे की है, जिसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है.