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महिला सशक्तीकरण ने UP में महिलाओं को बनाया ‘बाॅस’, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में मिले रोचक आंकड़े

महिला सशक्तीकरण का परिणाम दिखने लगा है। उत्तर प्रदेश में महिलाओं की घरों में धमक और बढ़ी है। अब महिलाओं की बिना मर्जी और निर्णय के कुछ नहीं होता है। यह बातें, आंकड़े नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के हैं। 2015-16 के सर्वे के मुताबिक, 81.7 फीसदी महिलाएं घरों के फैसले लेती थीं लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़कर 87.6 फीसदी पहुंच गया है। अब सिर्फ 12.4 फीसदी पुरुष ही घरों के निर्णयों में काबिज हैं। 12.4 पुरुष के निर्णय को महिलायें मानती हैं।

महिलाओं के नाम बढ़ी जमीन और घर

2015-16 में उत्तर प्रदेश में 34.2 फीसदी महिलाओं के नाम अथवा संयुक्त मकान-जमीन थी जो 20-21 में बढ़कर 51.9 फीसदी हो गई है। अब शहर में 46.8 और गांव में 53.9 फीसदी महिलाओं के नाम पर जमीन और घर है। यह बढ़ोत्तरी सरकारी नियमों, महिलाओं के लिए संरक्षण का परिणाम है। इसमें महिलाओं की आत्मनिर्भरता सबसे ज्यादा हुई है।

 

शादी के बाद पत्नी से घरेलू हिंसा में कमी

18-49 आयु वर्ग में पत्नी से हिंसा में कमी आई है। 2015-16 में 36.7 महिलाओं ने सर्वे में हिंसा को रिपोर्ट किया 20-21 में 34.8 फीसदी दर्ज हुई। 2015-16 में गर्भावस्था में शारीरिक हिंसा का 4.3 महिलाओं ने सामना किया था। वर्तमान में महिलाओं के साथ हिंसा में कमी हुई जिसे शून्य पर लाना होगा।

परिवार नियोजन का महिलाओं पर ही भार

परिवार नियोजन में बदलाव नहीं हुआ है। 2015-16 में 0.1 फीसदी पुरुषों ने नसबंदी का तरीका अपनाया। 20-21 में भी यह 0.1 फीसदी रिपोर्ट हुआ है। परिवार नियोजन की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं पर ही है।

 

शहरों में हर सौ में से 13 पुरुष शुगर के मरीज

बिगड़ती लाइफ स्टाइल और खानपान का सीधा असर उत्तर प्रदेश के लोगों की सेहत पर ज्यादा पड़ रहा है। 15 साल और उससे अधिक उम्र के लोग तेजी से डायबिटीज, मधुमेह के रोगी हो रहे हैं। मधुमेह रोगियों में पुरुषों की संख्या महिलाओं की अपेक्षा अधिक है। उत्तर प्रदेश सौ में से 13 से ज्यादा पुरुष इस बीमारी की गिरफ्त में हैं। ब्लड शुगर लेवल ठीक रखने के लिए दवाओं का सेवन कर रहे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 की रिपोर्ट में इस बार 15 साल और उससे अधिक उम्र वालों के ब्लड शुगर लेवल के सर्वेक्षण को भी शामिल किया गया है। यह सर्वेक्षण रैंडम जांच पर आधारित हैं।

महिलाओं की प्रसव की भी जानकारी ली गयी है। जिसमे रोचक आकड़ें मिले हैं। 2015-16 में निजी अस्पतालों में 31.3 महिलाओं ने सिजेरियन डिलीवरी कराया तो सरकारी अस्पतालों में 4.7 फीसदी महिलाओं ने सिजेरियन कराया। वर्ष 2020-21 में निजी अस्पतालों में 39.4 महिलाओं ने सिजेरियन डिलीवरी करायी तो सरकारी अस्पतालों में 6.2 फीसदी महिलाओं ने सिजेरियन डिलीवरी कराया।

सिजेरियन डिलीवरी

वर्ष                           प्राइवेट             सरकारी

2015-16                 31.3              4.7

2020-21                 39.4              6.2