देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु धरती की पूरी जिम्मेदारी भोले नाथ के हाथों में सौंप देंगे और 148 दिन बाद अपने शयन कक्ष से बाहर आएंगे, इस दौरान पूरी धरती का जिम्मा भोले नाथ संभालेंगे. वैसे भी 6 जुलाई से सावन माह का आरंभ होने जा रहा है जो 3 अगस्त तक रहेगा. वहीं भगवान विष्णु का विश्राम काल 1 जुलाई से शुरू हो रहा है. जो 25 नवंबर को देवोत्थानी एकादशी को समाप्त होगा.
148 दिनों का है चार्तुमास
ऐसा कहा जाता है कि, जिस साल 24 के बजाय 26 एकादशी साल में आती हैं तो चार्तुमास भी लंबा हो जाता है. इसी वजह से इस बार भगवान विष्णु पूरे 5 महीने तक विश्राम कक्ष में रहेंगे और आराम करेंगे.5 माह के बाद पूरे विधि-विधान के साथ देवोत्थानी एकादशी के दिन विष्णु जी को उनके शयन कक्ष से बाहर लाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि, देवशयनी एकदाशी के दिन से देव सो जाते हैं और उनकी अनुपस्थिति में किसी भी तरह के शुभ/मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए.
भगवान शिव संभालेंगे धरती
चार्तुमास का आरंभ जब होता है तब भगवान विष्णु आराम करते हैं यानि सोने के लिए अपने कक्ष में चले जाते हैं और इस वजह से वह धरती के सारे कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं.इसी बीच सावन का भी आरंभ होता है. इसलिए चार्तुमास में भोले नाथ की पूजा करने का लाभ मिलता है और इसका महत्व भी होता है.
पापी लोगों को देते हैं दंड
भगवान शिव चार्तुमास का आरंभ होते ही धरती के भ्रमण के लिए निकल पड़ते हैं और पापी लोगों को उनके कार्यों का दंड देते हैं. वहीं जो लोग जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं और धरती को बचाने में योगदान देने के साथ भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं उन्हें भगवान शिव अपना आर्शीवाद देते हैं.
सूर्य देव करेंगे तुला में प्रवेश
हिंदू पंचांग के मुताबिक, कार्तिक मास की एकादशी पर भगवान विष्णु जाग्रत होते हैं और तभी सूर्य देव तुला में प्रवेश करते हैं. फिलहाल सूर्य देव मिथुन राशि में गोचर कर रहे हैं.
चार्तुमास में होता है भगवान का ध्यान
ऐसी मान्यता है कि, जिस दिन से भगवान विष्णु अपने शयन कक्ष में चले जाते हैं तभी से सारे शुभ कार्य रुक जाते हैं. इस दौरान सिर्फ भगवान का ध्यान किया जाता हैऔर देवोत्थानी एकादशी के बाद फिर से शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं. चार्तुमास में सिर्फ भगवान का ध्यान किया जाता है. यानि अब 148 दिनों के लिए शहनाई की गूंज सुनाई नहीं देगी.