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पहले चरण की 58 सीटों पर मुस्लिम रूझान है निर्णायक, अखिलेश-जयंत की जाट-मुस्लिम समीकरण बनाने की तरह मायावती ने दलित-मुस्लिम के भरोसे थोक मेें उतारे मुस्लिम

लेखक :- सुरेंद्र सिंघल, राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार.

सहारनपुर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गन्ना पट्टी में पहले चरण में 10 फरवरी को 58 सीटों के होने वाले चुनाव में मुस्लिमों का रूझान निर्णायक रहने वाला है। जाट बैल्ट में यह ऐसा इलाका है जहां 20 से लेकर 42-43 फीसद तक मुस्लिम मतदाता है। अखिलेश यादव और जयंत चौधरी को उम्मीद है कि जाट-मुस्लिम समीकरण बनेंगे। वर्ष 2007 में मायावती जाटो की हिमायत और दलित-मुस्लिम समीकरणों के सहारे पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही। मायावती ने फिर से वही नतीजे लेने की फिराक में थोक में मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव रण में उतारे है। पांच आरक्षित सीटों को छोड दे तो 53 सामान्य सीटों पर दो सीटें अलीगढ शहर और हापुड की धौलाना सीट पर सपा-बसपा, कांग्रेस तीनों के मुस्लिम प्रत्याशी हैं। अलीगढ में भाजपा का अकेला हिंदू प्रत्याशी जीत को लेकर आश्वस्त है लेकिन यही लाभ धौलाना सीट पर भाजपा के धर्मेंश तोमर को मिलता नहीं दिख रहा है।

12 सीटों पर मुख्य दलों के दो-दो प्रत्याशी चुनाव रण में है। नौ सीटों पर एक-एक मुस्लिम प्रत्याशी है। तीस सीटों पर सपा, बसपा, कांग्रेस, भाजपा के प्रत्याशी हिंदू है। इन सीटों पर जाट मत निर्णायक रह सकते है। भाजपा के रणनीतिकार तरह-तरह की दुहाइयां देकर जाटों को साथ रखने की कोशिशों में लगे है। जबकि जयंत चौधरी अखिलेश यादव को बिरादरी के समर्थन से पूरी तरह आश्वस्त किए हुए है। लखनऊ यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुधीर पंवार दो टूक कहते है कि जाट ध्रुवीकरण के फेर में नहीं पडने वाले है। डा. सुधीर पंवार किसान जाग्रति मंच के बैनर तले किसानों के बीच सक्रिय रहते है और उनकी सोच के जानकार माने जाते है। मुजफ्फरनगर के सुधीर बालियान कहते है कि जाटो का रूझान जमीन पर गठबंधन के पक्ष में ज्यादा दिख रहा है।
पांच आरक्षित सीटों में आगरा ग्रामीण सीट पर भाजपा का दलित चेहरा और उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर चुनाव में कूदी बेबी रानी मौर्य की प्रतिष्ठा दांव पर है। उनका मुख्य मुकाबला गठबंधन प्रत्याशी से है। मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट पर राज्यमंत्री दिनेश खटीक की प्रतिष्ठा दांव पर है। गठबंधन के पूर्व विधायक योगेश वर्मा से मुख्य मुकाबला है। बहुचर्चित सिचालखा सीट पर गठबंधन के रालोद प्रत्याशी पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद का भाजपा के जाट प्रत्याशी मनिंदर पाल से मुकाबला है। जाटो के रूझान को लेकर समीक्षकों की राय बंटी है। वीआइपी सीट थाना भवन पर खडे गन्ना मंत्री सुरेश राणा का दारोमदार जाटो के रूझान पर टिका है। पूर्व में कई बार जाटो के समर्थन से मुस्लिम प्रत्याशी जीतते रहे है। राणा का मुख्य मुकाबला गठबंधन के अशरफ अली से है। बसपा के जहीर मलिक कमजोर पड रहे है। मुजफ्फरनगर की शहरी वीआइपी सीट पर राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल का भाग्य जाटो का रूझान तय करेंगा।
पूर्व मंत्री चितरंजन स्वरूप के बेटे वैश्य बिरादरी के सौरभ स्वरूप भाजपा को कडी टक्कर दे रहे है। गाजियाबाद नगर सीट पर राज्यमंत्री अतुल गर्ग गठबंधन के विशाल वर्मा, बसपा के कृष्ण कुमार और कांग्रेस के पूर्व सांसद सुरेंद्र गोयल के बेटे सुशांत गोयल के चौकुने मुकाबले में फंसे है। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा मथुरा नगर सीट पर भाजपा की अंदरूनी कलह से जूझ रहे है। बनियों का रूझान निर्णायक रहेगा। गठबंधन से देवेंद्र अग्रवाल प्रत्याशी है। बसपा के एसके शर्मा ब्राहमण मतों में बंटवारा कर रहे है। कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रदीप माथुर  मुकाबले को चौकुना कर रहे है। बुलंदशहर जिले की 2017 में भाजपा सभी सात सीटें जीती थी। अबकी माहौल बदला हुआ है। गठबंधन सीटों में बंटवारा करता दिख रहा है।
मेरठ जिले की कैंट और दक्षिण सीट पर क्रमशः भाजपा के अमित अग्रवाल और मौजूदा विधायक डा. सोमेंद्र तोमर (गुर्जर) की जीत यकीनी है। डा. सोमेंद्र का काम सपा ने आदिल चौधरी, बसपा ने दिलशाद अली और कांग्रेस ने नफीस सैफी को खडा करके आसान कर दिया है। शहर सीट पर भाजपा ने दिग्गज लक्ष्मीकांत वाजपेई का टिकट काटकर नए चेहरे कमलदत्त शर्मा पर दांव लगाया है। उनका मुकाबला मौजूदा सपा विधायक रफीक अंसारी से है। बसपा ने दिलशाद शौकत और कांग्रेस ने रंजन शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। सपा जीत के प्रति आश्वस्त है।
चौधरी चरण सिंह के जिले बागपत की तीनों सीटों छपरौली, बडौत और बागपत पर गठबंधन से रालोद के उम्मीदवार है। बागपत सीट पर रालोद ने मुस्लिम उम्मीदवार अहमद हमीद को बसपा ने गुज्जर बिरादरी के अरूण कसाना को और कांग्रेस ने अनिल देव त्यागी को उतारा है। भाजपा ने तीनों सीटों पर जाट उम्मीदवार उतारे है। इस जिले में रालोद प्रमुख जयंत चौधरी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। भाजपा सांसद डा. सत्यपाल तोमर की भाजपा नेतृत्व द्वारा उपेक्षा किए जाने से जाटों में भाजपा गठबंधन को कठिन चुनौती पेश करती नहीं दिखती।