नेपाल के राजनीतिक संकट में शुक्रवार को उस वक्त नाटकीय मोड़ आ गया, जब प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और विपक्षी दलों दोनों ने ही राष्ट्रपति को सांसदों के हस्ताक्षर वाले पत्र सौंपकर नई सरकार बनाने का दावा पेश किया। इस सियासी उठापटक में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि ओली और देउबा दोनों ने ऐसे कुछ सांसदों का समर्थन होने का दावा किया था जिनके नाम उन दोनों की ही सूची में शामिल थे। इस बीच, नया विवाद तब खड़ा हुआ जब माधव नेपाल धड़े के कुछ सांसदों ने दावा किया कि उनके हस्ताक्षरों का दुरुपयोग हुआ है क्योंकि उन्होंने विपक्षी नेता देउबा को पीएम के तौर पर नियुक्त करने की सिफारिश नहीं की है।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी ने दोनों ही नेताओं के दावों को खारिज करते हुए आधी रात को संसद भंग कर 12 और 19 नवंबर में मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की है।
असांविधानिक कदमों की आलोचना
मध्यावधि चुनाव की घोषणा पर सियासी दलों ने पीएम ओली व राष्ट्रपति भंडारी की उनके ‘असांविधानिक’ कदमों के लिए आलोचना की। नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता विश्व प्रकाश शर्मा ने कहा, प्रधानमंत्री तानाशाही के अपने काल्पनिक रास्ते पर चल रहे हैं। सामूहिक रूप से संविधान का शोषण महंगा साबित होगा।