अब तक केवल अपने बेबाक बोल के साथ आतंकवाद की कड़ी भत्सर्ना का माद्दा भारत के पास ही था, लेकिन अब भारत के साथ उसका पुराना मित्र रहा नेपाल भी आ गया है। जी हां.. कल तक ड्रैगन के बहकावे में आकर भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने को अमादा नेपाल अब यूं समझिए की आतंकवाद के मसले को लेकर भारत के हां.. में हां… और न में न.. मिलाने के लिए राजी हो चुका है। इसकी बानगी हमें संयुक्त राष्ट्र महासभा के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित किए गए कार्यक्रम में दिए उनके भाषण में देखने को मिली, जहां पर उन्होंने आतंकवाद का जिक्र करते हुए इसके हर रूपों की कड़ी निंदा की। उन्होंने आतंकवाद को मानवीय समुदाय के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद मानवीय समुदाय को चोट पहुंचाती है।
नहीं हुआ चीन का जिक्र
आतंकवाद के खिलाफ रोष भले ही केपी ओली के मुंह से छलका हो, लेकिन चीन सहित इस संदर्भ से जुड़े हर मसले को लेकर नेपाल की दूरी साफ बनती हुई दिखी। गौरतलब है कि एक तरफ जहां भारत आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की कड़ी आलोचना करता है तो वहीं दूसरी तरफ इसी आतंकवाद को लेकर चीन पाकिस्तान का बचाव करता है। अब ऐसी स्थिति में जब अपनी तकरीरों में केपी ओली ने आतंकवाद की जमकर मजम्मत की है, तो फिर भारत के लिए यह देखना बेहद आतुरता भरा कदम था कि चीनी मसले को लेकर नेपाल क्या तकरीरें पेश करता है, लेकिन नेपाल ने अपनी जुबां से चीन का नाम लेना मुनासिब न समझा।
याद दिला दें कि बीते दिनों जब भारत और चीन के बीच का विवाद अपने शबाब पर पहुंच गया था, तो ड्रैगन ने भारत को धमकी भरे लहजे में दो टूक कह दिया था कि अगर भारत चीन के खिलाफ कोई भी कदम उठाता है, तो फिर उसे उसके तीन पड़ोसियों से विरोध का सामना करना पड़ सकता है और, अब ऐसी स्थिति में जब संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम में नेपाल ने अपने बयान में आतंकवाद की मजम्मत की है तो फिर चीन क्या रूख अख्तियार करता..ये देखने वाली बात होगी।