रिर्पोट :- गौरव सिंघल, वरिष्ठ संवाददाता, सहारनपुर मंडल।
देवबंद की होली-मोहल्ला जनकपुरी में होता हैं सबसे ऊंची होलिका का दहन, मित्तरसैन चौक एवं कायस्थवाड़ा में जमकर खेली जाती है होली
देवबंद की गलियों में ’होली का हल्ला’ बोलकर चंदे में लकडियां और उपले जुटाती बच्चों की फौज और रात में घूमकर नृत्य करती महिलाओं के कंठ से फूटते फागुनी लोकगीत होली के त्यौहार में एक नई उमंग भर देते है। हालांकि पहले महीनों तक चलने वाला होली का धमाल अब सिर्फ दो-तीन दिनों में ही सिकुडकर रह गया है। इसके बावजूद भी होली एक ऐसा लोकपर्व है, जो भारतीय संस्कृति के रचे-बसे बंधुत्व के संदेश को न केवल रंगों के माध्यम से उकेरता है, बल्कि उसी भावना को रूपायित भी करता है। होली का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जो कि लोगों में ऊंच-नीच और छोटे-बडे के भेद को भुलाकर सबको एक रंग में रंगने का अवसर जु टाता है।
फागुनी मस्ती का ज्वार लेकर आता होली का पर्व नए परिवेश में अपना स्वरूप बदल रहा है। पश्चिमी उ.प्र. के इस अंचल में होली का पर्व बसंत पूजा के साथ ही प्रारंभ हो जाता था। होली पूजन के स्थान पर सामूहिक बसंत पूजा तो अब औपचारिकता भर ही रह गई है। देवबंद में खासतौर पर दुल्हैंडी और उससे एक दिन पूर्व होली पूजन की परंपरा अभी भी पूरी तरह से कायम है। होली पूजन पर गोबर से बने चांद, सूरज व तारों की आकृति वाले बरकुलों की माला के साथ-साथ चरखों के सूत की पूनी से महिलाओं को होली की परिक्रमा करते हुए चारों ओर सूत का धागा लपेटने का दृश्य अभी भी नगर के सभी चौराहों पर खासतौर से दिखाई देता है। ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध नगर देवबंद मुस्लिम बहुल होते हुए भी यहां होली का पर्व बडे धूम-धाम, एकता, श्रद्धा एवं आपसी भाइचारे के साथ मनाया जाता है। देवबंद नगर की दुकानों पर पिछले 8-10 दिनों पहले से ही पिचकारी से लेकर विभिन्न तरह के हरे, लाल, पीले और अबीर गुलाल रंग सज गए हैं। अमित सिंघल एडवोकेट, व्यापारी शशांक जैन, शिक्षक मोहित आनंद, वरिष्ठ पत्रकार गौरव सिंघल एवं विशाल गर्ग आदि का कहना है कि होली के प्रति अब शहर के लोगों का उत्साह पहले की अपेक्षा काफी कम हो गया है। यही कारण है कि अब त्यौहार पर बाजारों में कोई खास उत्साह दिखाई नहीं देता है।
उनका कहना है कि नगर की अपेक्षा गांव के लोगों पर होली का रंग कुछ चढता नजर आ रहा है। इसलिए बाजारों में सिर्फ गांव के ही ग्राहक दिखते है। देवबंद नगर में बनाए जाने वाले होली के विशेष व्यंजनों टेंटी, सबूनी एवं होली के मीठे खिलौने आदि की दुकानों पर होली पर्व के दौरान अधिक भीड नजर आती है। इसका कारण यह है कि इन मिठाइयों को लोग यहां से खरीदकर अपनी दूर-दराज की रिश्तेदारियों में भी भेजते हैं। इसलिए इनकी खरीदारी कई दिनो पहले से शुरू हो गई है। देवबंद के प्रमुख मेन बाजार, मीना बाजार, रणखंडी रोड एवं भायला रोड की दुकानें पूरी तरह से होली के रंगों में सराबोर हैं। हर तरफ रंग ही रंग में पिचकारियां दिखाई दे रही हैं। कुल मिलाकर देवबंद नगर होली के रंगों में आपस में सबको मिलाकर, भेदभाव मिटाकर एक अच्छी मिसाल कायम कर रहा है।
होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय की खुशियों के लिए मनाया जाता हैं। इसी पर्व के उपलक्ष्य में देवबंद के विभिन्न स्थानों पर होलिका का दहन किया जाता है और बाद में दुल्हैंड़ी के अवसर पर अबीर, गुलाल एवं अन्य रंगो से लोग रंग खेलते है, जिसमे नगर के युवा धमाल मचाते हुए नगर के विभिन्न रास्तों से एक- दूसरे को गुलाल और रंग लगाते हुए मित्तरसैन चौक से जरूर गुजरते है। जहां उन पर घरों की छतों से रंगों की बारिश की जाती हैं। देवबंद नगर के रेलवे स्टेशन, शास्त्री चौक, नेचलगढ़, छिंपीवाड़ा, कायस्थवाड़ा, बाल्मीकि बस्ती और जनकपुरी के अलावा अन्य स्थानों में होलिका का दहन बड़े अच्छे ढंग से किया जाता है और अगले दिन रंग खेलने सभी नगरवासी अनेकों स्थानों से गुजरते हुए एक-दूसरें को गुलाल लगाकर होली मिलते हैं।
देवबंद के मोहल्ला जनकपुरी में नगर में सबसे ऊंची होलिका का दहन किया जाता हैं। जिसको देखने के लिए नगर के काफी लोग वहां जमा होते हैं और पूजा-अर्चना में भाग लेने के बाद देर-रात ढ़ोल ढ़माके की आवाज पर लोग थिरकते हैं। वहीं महिलाएं भी भजन-कीर्तन आदि में भाग लेती हैं। इसके अलावा हालांकि नगर के कई स्थानों पर होलिका का दहन होता हैं लेकिन रंग खेलने वाले युवा और नगरवासी नगर के किसी भी कोने के क्यों ही न हो वह एमबीडी चौक, मेनबाजार, हनुमान चौक और मित्तरसैन चौक, हलवाई हट्टा, छिंपीवाड़ा होते हुए नगर के अन्य स्थानों पर जाकर होली का मजा जरूर लेते हैं। सभी लोग एक बार मित्तरसैन चौक पर जरूर एकत्र होते हैं। जहां महिलाएं छतों से रंगों की बारिश भी करती हैं।