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जानिए भगवान शिव ने क्यों लिया था अर्धनारीश्वर अवतार?

फाल्गुन का महीना चल रहा है और इस महीने में कई त्योहार आने वाले हैं. लेकिन इन त्योहारों में दो सबसे प्रमुख हैं पहली महाशिवरात्रि और दूसरी होली. महाशिवरात्रि का पावन पर्व अब से बस कुछ ही दिनों बाद है यानी 11 मार्च को है. ऐसे में भगवान शिव से जुड़ी एक रोचक कथा के बारे में हम आज आपको बताने जा रहे हैं.

क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर का अवतार क्यों लिया था? और क्या ये जानते हैं कि भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप में अवतार लेने का मुख्य कारण हमसे और आपसे जुड़ा हुआ है? आइए इस महत्वपूर्ण कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं-

शिवपुराण में वर्णित सतरुद्रसं​हिता के अनुसार, सृष्टि के शुरुआत में जब सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी के जरिए रची हुईं सारी प्रजाओं ने विस्तार प्राप्त नहीं किया, तो वो काफी दुखी हो गए. उस समय एक आकाशवाणी हुई. ब्रह्मन्! अब मैथुनी सृष्टि की रचना करें. इस आकाशवाणी को सुनने के बाद ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि की रचना में स्वयं को असमर्थ पाया.

तब उनके मन में ये विचार आया कि वो भगवान शिव की कृपा के बिना मैथुनी प्रजा उत्पन्न नहीं कर सकते. जिसके बाद ब्रह्मा जी तप करने लगे. कुछ समय की तपस्या के पश्चात भगवान शिव प्रसन्न होकर पूर्ण सच्चिदानंद की कामदा मूर्ति में प्रवेश कर गए और अर्धनारीश्वर स्वरूप में ब्रह्माजी के समक्ष प्रकट हो गए.

भगवान शंकर ने कहा कि तुम्हारा सारा मनोरथ उन्हें ज्ञात है. वो तुम्हारे तप से प्रसन्न हैं. तुम्हारी कामना पूर्ण होगी. ये कहकर भगवान शिव ने अपने शरीर से देवी शिवा को अलग कर दिया. तब ब्रह्माजी उस परम शक्ति की प्रार्थना करने लगे कि हे शिवे! हे मात:! चराचर जगत् की वृद्धि के लिए आप मुझे नारी कुल की सृष्टि के लिए शक्ति प्रदान करें. माते! मैं आपसे एक वरदान चाहता हूं कि आप अपने सर्व समर्थ रूप से मेरे पुत्र दक्ष की पुत्री रूप में जन्म लें. भगवती शिवा ने तथास्तु बोलकर कहा कि ऐसा ही होगा. इसके बाद वो शक्ति उन्होंने ब्रह्माजी को प्रदान कर दी.

इस तरह से देवी शिवा, ब्रह्माजी को अनुपम शक्ति प्रदान करके शिव जी के शरीर में प्रवेश कर गईं. तभी से इस लोक में स्त्री की कल्पना हुई और मैथुनी सृष्टि की रचना हुई.