ये तो आप सभी जानते हैं के महाभारत युद्ध के अंत में अश्वत्थामा पांडव पुत्रों का वध कर देता है लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि पांडव अपने पुत्रों की हत्या के लिए भगवान शिव को दोषी मान उनसे युद्ध करने लगते हैं, नहीं न? तो आइए जानते हैं पांडव और भगवान शिव से जुड़ी इस कथा के बारे में.
ये प्रसंग महाभारत युद्ध के अंतिम दिन का है. युद्ध के अंतिम दिन दुर्योधन ने अश्वत्थामा को अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया. अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहे दुर्योधन ने अश्वत्थामा से कहा, ‘मुझे कैसे भी पांचों पांडवों का कटा हुआ शीश देखना है’.
अश्वत्थामा ने रचा पांडवों की मृत्यु का षड्यंत्र
दुर्योधन को वचन देकर अश्वत्थामा अपने बचे हुए कुछ सैनिकों के साथ पांडवों की मृत्यु का षड्यंत्र रचने लगा. उधर, भगवान कृष्ण यं जानते थे कि महाभारत के अंतिम दिन काल कुछ न कुछ चक्र जरूर चलाएगा. इस संकट से बचने के लिए श्री कृष्ण ने आदि देव भगवान शिव की विशेष स्तुति आरम्भ कर दी. स्तुति करते हुए श्री कृष्ण ने भगवान शिव से कहा कि हे! जगत के पालनकर्ता, भूतों के स्वामी…मैं आपको प्रणाम करता हूं. भगवान आप मेरे भक्त पांडवों की रक्षा कीजिए.
श्री कृष्ण की स्तुति सुनकर भगवान शिव नंदी पर सवार होकर हाथ में त्रिशूल लेकर पांडवों की ओर रक्षा के लिए आ गए. सभी पांडव उस समय शिविर के नजदीक ही स्थित नदी में स्नान कर रहे थे. मध्यरात्रि में अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य तीनों पांडव शिविर के पास आए परन्तु जब तीनों ने शिविर के बाहर भगवान शिव को पहरा देते हुए देखा तो ठिठक गए. फिर उन्होंने भी भगवान शिव की स्तुति वंदना आरम्भ कर दी. भगवान शिव तो अपने हर भक्त पर अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. अतः वो उन तीनों पर भी प्रसन्न हो गए.
वरदान के रूप में उन्होंने अश्वत्थामा को एक तलवार दी और उन्हें पांडवो के शिविर में जाने की आज्ञा भी दी. फिर अश्वत्थामा ने अपने दोनों साथियों के साथ पांडवों के शिविर में घुस कर धृष्टद्युम्न के साथ पांडवों के पुत्रों का वध कर दिया. इसके बाद वो तीनो पांडवों के कटे हुए शीश लेकर वापस लौट आए. उस समय शिविर में अकेले बचे पार्षदशुद ने इस जनसंहार की खबर पांडवों को दी.
पांडवों के पुत्रों की हुई हत्या
जब ये खबर पांडवों ने सुनी तब वो शोक में डूब गए और ये सोचने लगे कि स्वयं महादेव के रहते हुए किसने शिविर मे घुसकर हमारे पुत्रों की हत्या की होगी? हो न हो शिवजी का ही ऐसा किया धरा है. क्रोध में मर्यादा भूलकर वो भगवान शिव को ही ललकारने लगे. भयंकर युद्ध शुरु हो गया.
पांडव जितने भी अस्त्र भगवान शिव पर चलाते वो सभी भगवान शिव के शरीर में समा जाते क्यूंकि पांडव श्री कृष्ण के शरण में थे और भगवान शिव हरि भक्तों की रक्षा में स्वयं तत्पर रहते हैं इसलिए शांत स्वरूप शिव ने पांडवों से कहा कि तुमलोग श्री कृष्ण के उपासक हो इसलिए क्षमा करता हूं अन्यथा तुम सभी वध के योग्य हो. मुझ पर आक्रमण का अपराध फल तुम्हे कलियुग मे जन्म लेकर भोगना पड़ेगा. ऐसा कहकर भगवान शिव अदृश्य हो गए.
पांडवों ने शिव जी से की क्षमा याचना
दुखी पांडवों ने कृष्ण के साथ भगवान शिवजी की स्तुति की. पांडवों की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा. तब पांडवों की ओर से भगवान कृष्ण शिव से बोले हे प्रभु! पांडवों ने जो मूर्खता की थी उसके लिए वो क्षमाप्रार्थी हैं. अर्थात् इन्हें क्षमा करें और इन्हें दिए हुए श्राप से मुक्ति दिलाएं. आदि देव भगवान शिव बोले हे कृष्ण! उस समय मैं अपनी माया के प्रभाव में था इसलिए मैंने पांडवो को श्राप दे दिया और मैं अपना ये श्राप वापस तो नहीं ले सकता पर मैं मुक्ति का मार्ग बताता हूं.
पांडव अपने अंश से कलियुग में जन्म लेंगे और अपने पापों को भोग कर श्राप से मुक्ति पाएंगे. युधिष्ठिर, वत्सराज का पुत्र बन कर जन्म लेगा. उसका नाम बलखानी होगा और वो सिरीश नगर का राजा होगा. भीम वीरान के नाम से बनारस में राज करेगा. अर्जुन के अंश से ब्रम्हानंद जन्म लेगा, जो मेरा भक्त होगा. नकुल के अंश से जन्म होगा कनेकोच का, जो रत्ना बानो का पुत्र होगा. सहदेव, भीमसिंह के पुत्र देवसिंह के रूप में जन्म लेगा. दिए हुए श्राप से मुक्ति पाने का रास्ता जानने के बाद पांडवों ने भगवान शिव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और फिर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए.