श्रीलंका में विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों ने वहां के सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर कर चीन द्वारा विकसित की जाने वाली कोलंबो पोर्ट सिटी पर सवाल उठाए हैं। श्रीलंका सरकार ने कानून बनाकर इस पोर्ट सिटी को विकसित करने का प्रविधान किया है। इस बीच श्रीलंका के वित्तीय मामलों के मंत्री अजीत काबराल ने कहा है कि नए कानून से देश की संप्रभुता को कोई खतरा नहीं है। इससे देश में पूंजीनिवेश होगा और रोजगार बढ़ेंगे।
चीन इस पोर्ट सिटी के विकास में 1.4 अरब डॉलर (करीब दस हजार करोड़ भारतीय रुपये) की धनराशि खर्च करेगा। इस सिटी में चीन स्पेशल इकोनोमिक जोन (एसईजेड) भी बनाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने दायर याचिकाओं की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन कर दिया है। याचिकाओं पर अगले सप्ताह से सुनवाई शुरू होगी। संसद में पेश विधेयक के प्रविधान सामने आने पर पोर्ट सिटी और एसईजेड में लागू होने वाले नियमों और व्यवस्थाओं को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए। राजनीतिक दलों, अधिवक्ता संगठनों, आइटी संगठनों आदि ने भविष्य में आने वाली मुश्किलों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर दीं।
याचिकाओं में कहा गया है कि नया कानून देश की संप्रभुता के खिलाफ है। देश के बीच में दूसरे देश के बनाए नियम लागू किए जाएंगे, जो श्रीलंका के नागरिकों के खिलाफ होंगे। अपनी धरती पर हमें विदेशी फायदे के नियम मानने पड़ेंगे। इस सिटी और एसईजेड में देश में लागू कानून और श्रम कानून लागू नहीं होंगे। इससे श्रीलंका के नागरिकों का शोषण होगा और वे कुछ कह भी नहीं पाएंगे। उल्लेखनीय है कि श्रीलंका की संसद ने पोर्ट सिटी से संबंधित विधेयक को दो तिहाई बहुमत से पारित किया है। राष्ट्रपति के दस्तखत से यह जल्द ही कानून बन जाएगा। बीते दिनों अमेरिका राजदूत ने श्रीलंका की सरकार को आगाह किया था कि वह कोलंबो बंदरगाह के संबंध में कोई भी कानून बनाने से पहले विचार करे तभी उसे लागू करे। उन्होंने कहा था कि कोलंबो बंदरगाह मनी लॉड्रिंग का बहुत बड़ा केंद्र हो सकता है।