गुनाहगार मां के साथ सलाखों के पीछे बपचन गुजार रहे निपराध मासूमों के लिए जेल प्रशासन ने सराहनीय पहल की है। संपन्न घरों के बच्चों की तरह महिला बंदियों के बच्चों भी अब कान्वेंट स्कूल में पढ़ेंगे।
ऐसे ही तीन बच्चों का शहर के प्रतिष्ठित गुरुनानक स्कूल में दाखिला करा जेल प्रशासन ने यह मानवीय पहल भी कर दी है, जिसका श्रेय जेल अधीक्षक शशिकांत मिश्र को जाता है। जेल में मां के साथ रह रहे बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए उन्होंने यह कदम उठाया है। अपने बच्चों के भविष्य को लेकर परेशान महिला बंदियों की चिता भी इससे निश्चित ही दूर हुई है। एक महिला बंदी का कहना है कि उसकी इच्छा अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में दाखिल करने की थी, लेकिन एक गुनाह ने न सिर्फ उसे बल्कि उसके बच्चे के भविष्य को भी जेल की सलाखों में कैद कर दिया था। अब मेरा बच्चा भी बड़े घरों के बच्चों की तरह इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने जाता है।
जेल अधीक्षक ने अभिभावक की भूमिका निभाते हुए तीन साल की आयु पूरी कर चुके तीन बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के उन्हें शहर के गुरुनानक स्कूल में उनका दाखिला कराया है। ये बच्चे अब सुबह उठ कर बंदी परेड के दिशा-निर्देश सुनने के बजाय स्कूल जाने के लिए बैरक के पास खड़े वाहन को देखकर आह्लादित हो उठते हैं। जेल अधीक्षक के प्रयास से दुष्यंत कुमार की वह पंक्तियां भी चरितार्थ होती नजर आती हैं कि ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो..।’ महिला बंदियों के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए जेल अधीक्षक ने ठानी और उसे साकार भी किया। यही वजह है कि बच्चों की पढ़ाई अब जेल के क्रेच में नहीं बल्कि कान्वेंट स्कूल में हो रही है।
बच्चे देश का भविष्य होते हैं। ऐसे में जेल में बंद महिलाओं के छह बच्चे उनके साथ ही रहते हैं, जिसमें तीन बच्चों की आयु तीन साल हो चुकी है। बेहतर शिक्षा के लिए इन्हें निजी स्कूल में दाखिल कराया गया है।