जमीअत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) की कार्यसमिति की बैठक में सरकार को चेतावनी दी गई कि धार्मिक और उपासना स्थल कानून से छेड़छाड़ का परिणाम भयानक हो सकता है. संगठन की ओर से ये भी कहा गया कि प्रशासन का प्रदर्शनकारियों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव करना दुर्भाग्यपूर्ण है. जमीअत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि देश की शांति, एकता और एकजुटता के लिए यह कोई अच्छा संकेत नहीं है, शासकों द्वारा संविधान के साथ खिलवाड़ देश के लोकतांत्रिक ढांचे को तार-तार कर सकता है. कार्यसमिति ने देश की वर्तमान स्थिति पर विचार करते हुए देश में बढ़ती हुई सांप्रदायिकता, उग्रवाद, शांति व्यवस्था की दयनीय स्थिति और मुस्लिम अल्पसंख्यक के साथ खुले भेदभाव पर कड़ी निंदा व्यक्त की. बैठक में सर्वसम्मति से पारित दो अहम प्रस्तावों में कहा गया कि पैगम्बर की महिमा का जिन लोगों ने अपमान किया है उनका निलंबन पर्याप्त नहीं है. ऐसे लोगों को तुरंत गिरफ्तार कर के कानून के अनुसार ऐसी कड़ी सजा दी जाए जो दूसरों के लिए सबक हो.
दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि धार्मिक स्थलों से संबंधित 1991 के कानून में संशोधन के किसी भी प्रयास के बहुत विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. इसमें संशोधन या परिवर्तन के बजाय इस कानून को मजबूती से लागू किया जाना चाहिए. संगठन की ओर से कहा गया कि कानून की धारा 4 में स्पष्ट लिखा है कि है कि यह घोषणा की जाती है कि 15 अगस्त 1947 के दिन मौजूद सभी धार्मिक स्थालों की धार्मिक स्थ्ति वैसी ही रहेगी जैसी कि उस समय थी.
मदनी की ओर से कहा गया कि धारा 4 (2) में कहा गया है कि अगर 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी भी धर्म स्थल की धार्मिक स्थिति के परिवर्तन से संबंधित कोई मुकदमा, अपील या कोई कार्रवाई किसी अदालत, ट्रिब्यूनल या ऑथोरिटी में पहले से लंबित है तो वह रद्द हो जाएगा. इस तरह के मामले में कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्रवाई किसी अदालत, ट्रिब्यूनल या अथॉरिटी के सामने इसके बाद पेश नहीं होगी, इसीलिए इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जो याचिकाएं दाखिल हैं उनमें जमीअत उलमा-ए-हिन्द भी हस्तक्षेपकार बनी है.
मौलाना मदनी ने कहा कि हमारे पैगम्बर का जानबूझकर अपमान किया गया. अपमान करने वालों की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर जब मुसलमानों ने प्रदर्शन किया तो उन पर गोलियां और लाठियां बरसाई गईं. बहुत से लोगों के घरों पर बुलडोजर चलवा दिया गया. बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई हैं. उनके खिलाफ गंभीर धाराओं के अंतर्गत मुकदमे दर्ज किए गए हैं. यानी जो काम अदालतों का था अब वो सरकारें कर रही हैं. ऐसा लगता है कि अब न देश में अदालतों की जरूरत है और न जजों की. उन्होंने कहा कि प्रदर्शन हर भारतीय नागरिक का लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन वर्तमान शासकों के पास प्रदर्शन को देखने के दो मापदंड हैं.
मदनी ने कहा कि मुस्लिम अल्पसंख्यक प्रदर्शन करे तो अक्षम्य अपराध, लेकिन अगर बहुसंख्यक के लोग प्रदर्शन करें और सड़कों पर उतरकर हिंसक कार्रवाई करें और पूरी पूरी रेल गाड़ियां और स्टेशन फूंक डालें तो उन्हें तितर-बितर करने के लिए हल्का लाठी चार्ज भी नहीं किया जाता. उन्होंने कहा कि प्रशासन का विरोध और प्रदर्शन करने वालों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव दुखद है.