रेल की पटरियों के किनारे और रेल परिसरों में पड़े कबाड़ को बेचकर रेलवे राजस्व अर्जित कर रहा है. उत्तर रेलवे (Northern Railway) इस मामले में अन्य क्षेत्रीय रेलवे से आगे है. इस वित्त वर्ष में अभी तक उत्तर रेलवे ने कबाड़ बेचकर 227.71 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया है, जो अबतक का रिकॉर्ड है. उत्तर रेलवे अब स्क्रैप बिक्री के मामले में भारतीय रेलवे और सार्वजनिक उपक्रमों में टॉप पर आ गया है.
रेलवे लाइन के निकट रेल पटरी के टुकडों, स्लीपरों, टाइबार जैसे कबाड़ यानी स्क्रैप के कारण सुरक्षा संबंधी जोखिम की संभावना रहती है. वहीं, पानी की टंकियों, केबिनों, क्वार्टरों के दुरुपयोग की संभावना भी रहती है. इसलिए बेकार पड़े कबाड़ को बेचकर रेलवे पैसा कमाता है. उत्तर रेलवे बड़ी संख्या में जमा किए गए स्क्रैप पीएससी स्लीपरों का निपटान कर रहा है, ताकि रेलवे भूमि को अन्य गतिविधियों और राजस्व आय के लिए उपयोग किया जा सके.
उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक आशुतोष गंगल ने बताया कि पिछले साल के मुकाबले इस साल अब तक कबाड़ बेचकर 146 फीसदी अधिक राजस्व हासिल किया गया है. पिछले साल इस अवधि में मात्र 92.49 करोड़ रुपये का राजस्व मिला था जबकि इस वर्ष यह बढ़कर 227.71 करोड़ रुपये हो गया है. जो अन्य क्षेत्रीय रेलवे से ज्यादा है. रेलवे बोर्ड ने उत्तर रेलवे को इस वर्ष 370 करोड़ रुपये के कबाड़ बिक्री का लक्ष्य दिया है. दरअसल, रेलवे लाइन के निकट रेल पटरी के टुकड़ों जैसे कबाड़ से दुर्घटना की आशंका रहती है. इसे ध्यान में रखकर कबाड़ हटाने की प्रक्रिया तेजी से जारी है. उत्तर रेलवे की कोशिश शून्य कबाड़ का दर्जा हासिल करने की है.