पृथ्वी (Earth) और उसके जैसे दूसरे ग्रहों (Other Planet) पर जीवन(Life) के लिए पानी (Water) सबसे प्रमुख तत्व है. मंगल (Mars) पर भी जीवन के संकेत (vital signs) की तलाश के रूप में जोर तरल पानी की खोज पर भी दिया जाता रहा है. वैज्ञानिकों ने अब तक पाया है कि मंगल का इतिहास (history of mars) तरल पानी (Liquid Water) से भरपूर रहा था, लेकिन आज वहां सतह पर कोई तरल पानी नहीं है. नए अध्ययन (New study) ने मंगल पर तरल पानी के ना होने की वजह का पता लगया है. इसमें पाया गया है कि मंगल का आकार विशाल मात्रा में तरल पानी रखने के लिए काफी नहीं था.
सेंट लुईस की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इस शोध में शोधकर्ताओं ने रिमोट सेंसिंग के अध्ययन के साथ और 1980 के दशक में मिले मंगल ग्रह के उल्कापिंडों का विश्लेषण किया. इससे पता लगा कि एक समय मंगल पर पृथ्वी की तुलना में भरपूर तरल पानी था. इसके अलावा नासा के वाइकिंग ऑर्बिटर यान, हाल ही में क्यूरोसिटी और पर्सिवियरेंस रोवर से वहां के भूभागों की तस्वीरें में वहां नदी द्वारा बनाए गई घाटियां और बाढ़ की नहरों के निशान स्पष्ट दिखते हैं.
कई व्याख्याएं दी गई
इन तमाम प्रमाणों के बाद भी आज मंगल की सतह पर कहीं तरल पानी नहीं हैं. शोधकर्ताओं ने इसकी संभावित व्याख्याओं के प्रस्ताव दिए हैं जिसमें मंगल की मैग्नेटिक फील्ड के कमजोर होना भी शामिल है जिसकी वजह से वहां के मोटा वायुमंडल खो गया था. प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडम ऑफ साइंसेस में प्रकाशित यह अध्ययन सुझाता है कि की इसका एक और मूल कारण है, जो मंगल को पृथ्वी से बहुत अलग बना गया.
प्रचुर पानी के लिए शर्त
इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के आर्ट एंड साइंस विभाग में अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंसेस के असिस्टेंट प्रोफेसर कुन वांग का कहना है कि मंगल की किस्मत का फैसला शरू में ही हो गया था. पथरीले ग्रहों को आवसीयता और प्लेट टेक्टोनिक्स रखने के लिए पर्याप्त पानी की जरूरत होती है. संभावना यह है कि पथरीले ग्रहों को इसके लिए आकार के लिहाज से एक न्यूनतम सीमा की जरूरत होती है जो मंगल ग्रह से ज्यादा है.
पोटैशियम की भूमिका
इस अध्ययन के लिए वांग औ उनके साथियों ने विभिन्न ग्रहों पर पटैशियम तत्व के स्थाई आइसोटोप का उपयोग वाष्पशील पादार्थों की उपस्थिति, वितरण और प्रचुरता का आंकलन करने के लिए किया. वैज्ञानिकों ने पोटैशियम का ट्रेसर के रूप में उपयोग किया जिससे वे पानी और अन्य वाष्पशील पदार्थों का पता लगा सकें. इससे पहले के शोधों में वैज्ञानिक पोटैशियम-थोरियम के अनुपात रिमोट सेंसिंग और रासायनिक विश्लेषण के जरिए हासिल कर मंगल पर वाष्पशील पदार्थों की जानकारी हासिल करते थे.
पृथ्वी से कम चंद्रमा से ज्यादा
वांग और उनकी टीम ने पोटैशियम आइसोटोप की 20 से ज्यादा संरचनाओं का मापन मंगल से आए उल्कापिंडों में किया और पाया कि अपने निर्माण के दौरान मंगल ने पोटैशियम और अन्य वाष्पशील पदार्थों की मात्रा पृथ्वी की तुलना में ज्यादा गंवाए., फिर भी यह मात्रा चंद्रमा और 4-वेस्टा शुद्रग्रह की तुलना में ज्यादा थी.
पूरी तरह से नई खोज
शोधकर्ताओं ने पिंड के आकार और पोटैशियम आइसोटोपिक संरचना के बीच सुनिश्चित संबंध पाया. इस अध्ययन की सह लेखिका और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की कैथरीना लोडर्स का कहना है कि उल्कापिंडों की तुलना में सभी अलग अलग ग्रहों में कम वाष्पशील तत्व और यौगिकों का पाया जाना एक लंबी समय से उलझी पहेली थी. लेकिन ग्रह के गुरुत्व और पोटैशियम आइसोटोप संरचना के बीच के संबंध की खोज बिलकुल नई है. इस खोज से पता चला है कि अलग अलग ग्रहों ने कैसे और कब वाष्पशील पदार्थ पाए और खोए, और उनकी मात्रा का क्या असर रहा. मंगल के उल्कापिंड ही उसकी रासायनिक संरचना के अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं को उपलब्ध होने वाले नमूने थे. ये कुछ करोड़ साल से लेकर 4 अरब साल तक पुराने हैं और इनमें मंगल की वाष्पशीलता के विकास का इतिहास दर्ज है. इस अध्ययन से अब आवासयोग्य बाह्यग्रह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.