पश्चिम बंगाल (West Bengal) में एक ऐसा गांव भी है जहां लोगों को धीमी मौत मिल रही है. खौफ का आलम ये है कि लोग अब गांव छोड़कर दूसरी जगह जाने को मजबूर हैं. झारखंड और बंगाल की सीमा पर बीरभूम जिले के रामपुरहाट ब्लॉक में पड़ने वाले इस गांव का नाम है- पाइक पाड़ा. इस गांव की आबादी महज हजार के आसापास है. लेकिन यहां 200 से ज्यादा लोगों की मौत किडनी की बीमारी से हो चुकी है. तकरीबन 80 लोग अभी भी किडनी की समस्या से जूझ रहे हैं.
कोरोना के मामलों में सुधार आते ही पश्चिम बंगाल के इस गांव के लोग रामपुरहाट हॉस्पिटल में जुट रहे हैं. कोई डायलिसिस करने तो कोई किडनी के डॉक्टर को ढूंढने के लिए. गांव के लोगों का कहना है कि तीन साल पहले यहां एक सरकारी टीम आई थी और यहां से पानी का नमूना लेकर गई थी लेकिन अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं मिली. यहां हर घर में पानी का सस्ता फिल्टर मिल जाएगा. लोग फिल्टर का पानी पी रहे हैं पर किडनी की बीमारी नहीं जा रही. अब आलम ये है कि यहां के लोग ठीक होने की चाहत में ट्यूबवेल का पानी पी रहे हैं. पहले लोगों ने कुएं का पानी पीकर भी देख लिया पर कोई फायदा नहीं हुआ.
क्यों जहर बन रहा है यहां का पानी?
आखिर क्या है यहां के पानी में जो जहर जैसा बन चुका है? लोगों का ऐसा मानना है कि पत्थर की खदानों के पास होने की वजह से पानी में कुछ बेहद दूषित केमिकल मिल गया है इसी वजह से ऐसा है. रामपुरहाट के डॉक्टर भी मानते हैं कि शायद खराब पानी की वजह से ही किडनी की बीमारी हो रही है. लेकिन किसी भी तरह के शोध के अभाव में लोगों की मुसीबतों की वजह का पता और उपाय नहीं है.
लगातार बढ़ते जा रहे हैं इस गांव में किडनी पेशेंट
यहीं के निवासी मानिक शेख के मुताबिक पिछले 7 से 8 साल से यहां किडनी की समस्या शुरू हुई है. गांव के स्वास्थ्य केंद्र में किडनी का कोई उपचार नहीं होने की वजह से पहले लोग बर्धमान जाते थे. लेकिन कुछ साल पहले रामपुरहाट अस्पताल में किडनी के इलाज की व्यवस्था होने के बाद अब यहां इलाज के लिए आते हैं. इसी गांव के रहने वाले माकू टुडू ने बताया कि उन्होंने बहुत दिन तक पत्थर की खदानों में काम किया है. इसी के बाद से उनको किडनी की समस्या शुरू हुई. वहीं स्थानीय डॉक्टर अनिर्बान दास के मुताबिक, पीने के पानी से ही ये समस्या हो रही है. संभवतः पानी में कुछ ऐसा है जो किडनी रोग को बढ़ावा दे रहा है.