रामगढ़. सीसीएल प्रबंधन कोयला खनन करने के बाद खदानों को बैकफिलिंग करके भरने का काम नहीं करती है. इससे होता यह है कि इन बंद खदानों में बचे हुए कोयले का अवैध उत्खनन किया जाता है. बंद खदानों में पड़े कोयले में आग के कारण ज़हरीली गैसें निकलती रहती हैं और यही घातक गैसें उन लोगों की मौतों का कारण बनती हैं, जो अवैध उत्खनन के काम में मज़दूरी के लिए झोंके जाते हैं. इसी 3 जुलाई को सीसीएल रजरप्पा के बंद पड़ी तीन नंबर क्वारी में कोयला निकालने गए कामेश्वर महतो और उनकी पत्नी चिंता देवी की मौत गैस की चपेट में आने से हो गई, लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा.
महतो दंपति की मौत की खबर न तो पुलिस को लगी और न ही खनन से जुड़े ज़िम्मेदारों को. दोनों का अंतिम संस्कार आनन-फानन में करवा दिया गया. कहा जाता है कि ज़हरीली गैस से मौतों को सिलसिला नयी बात नहीं है. यह भी बताया गया कि 22 साल पहले कोयला निकाले जाने के दौरान चट्टान खिसक गई थी और इसकी चपेट में आधा दर्जन लोग जान गंवा बैठे थे. इलाके के सैकड़ों परिवार दो वक़्त की रोटी के लिए खतरनाक और ज़हरीली गैसों से भरी सुरंगनुमा खदानों में जान दांव पर लगाकर घुस जाते हैं.
सीसीएल की लापरवाही!
कोयला निकालने के बाद सीसीएल इन खदानों की सुध नहीं लेती है. अधिकारी सिर्फ अपने कोयला उत्पादन टारगेट को पूरा करते हैं. 3 नंबर क्वारी से उत्खनन के बाद पूर्व के सीसीएल प्रबंधन ने इसे ऐसे ही छोड़ दिया जबकि नियमानुसार इन खदानों में बैकफिलिंग (मिट्टी भराव) करना ज़रूरी है. बैकफिलिंग करने से कोयले में आग लगने और उसकी चोरी होने की आशंकाएं घट जाती हैं. रजरप्पा जीएम आलोक कुमार के मुताबिक बीते मंगलवार को दौरे के दौरान उन्हें कहीं गैस रिसाव नहीं दिखा. कुमार ने यह ज़रूर माना कि अवैध उत्खनन रोकने के लिए डोजरिंग शुरू की गई है. जीएम के मुताबिक खुली खदान में गैस का होना तर्कसंगत नही है. सीसीएल अधिकारियों के साथ दौरे में स्थानीय पुलिस भी साथ में थी.