सीमा विवादों की फेहरिस्त में पहले महज़ पाकिस्तान और चीन का ही नाम शुमार था, लेकिन अब कोरोना के इस दौर मेें कभी भारत के मित्र राष्ट्रों की जमात में शामिल रहे नेपाल भी चीन और पाकिस्तान के सरीखा रूख अख्तियार करने पर अमादा हो गया है। मतलब साफ है कि सीमा विवादों की फेहरिस्त में अब नेपाल का भी नाम जुड़ गया है। गत दिनों नेपाली संसद में पेश किए गए नक्शे में उत्तराखंड के कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया था। नेपाल का दावा है कि भारत ने 1960 के दशक के दौरान इन तीनों ही क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद अब जाकर नेपाल का यह नक्शा पारित किया है, जिसके बाद दोनों ही देशों के बीच विवाद छिड़ गया है।
फिलहाल इस विवाद के कूटनीतिक समाधान के आसार नजर नहीं आ रहे हैं, जिसके चलते दोनों ही देशों के रिश्तों में अब आहिस्ता-आहिस्ता खटास पैदा हो रही है। बीते दिनों भारत और नेपाल सीमा पर तनाव भी देखने को मिला था, जिसके चलते नेपाली पुलिस की तरफ से फायरिंग की गई थी, मगर आलाधिकारियों ने साफ कर दिया था कि इसका सीमा विवाद से कोई लेना देना नहीं है। यह स्थानीय विवाद का कारण रहा है। वहीं अब नेपाली मीडिया और विशेषज्ञों ने भी वहां की सरकार को साफ चेतावनी दे दी है कि इस विवाद का समुचित समाधान वार्ता के इतर और कुछ नहीं है।
इतना ही नहीं, इस दौरान वहां के विशेषज्ञों ने नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली को चेतावनी देते हुए कहा कि भारत के साथ गंभीर होते रिश्ते नेपाल के लिए महंगे साबित हो सकते हैं। लिहाजा इन रिश्ते को जल्द से जल्द दुरूस्त बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। मालूम हो कि गत दिनों नेपाल के संसद में पेश किए नक्शे को लेकर भारत ने एतराज जताया था। भारत ने कहा था कि इसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल भारत की तरफ से इसके कूटनीतिक हल तलाशे जाने की कोशिश जारी है। आगे चलकर यह कोशिश कितनी कामयाब साबित होगी। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा। मगर फिलहाल तो दोनों ही देशों के रिश्तों में खटास का सिलसिला है।
बहरहाल, इस मंशा को जमीन पर उतारने के लिए नेपाल की तरफ सचिव स्तर की वार्ता की पहल शुरू हो चुकी है। मगर भारत ने भी साफ कर दिया है कि बना विश्वास के यह माहौल बने यह वर्तमान परिदृश्य में संभव नहीं। वहीं नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार व आर्थिक दैनिक के संपादक प्रह्लाद रिजल का कहना है कि नेपाल द्वारा उत्तराखंड के कालापानी, लिपुलेख लिंधियापुरा को नेपाली नक्शे में शामिल करना नेपाली प्रधानमंत्री की सस्ती लोकप्रियता के इतर और कुछ भी नहीं है।
वहीं उन्होंने इस बात की आशंका जताई है कि यदि नेपाल पीएम ऐसा चीन की शह पर ऐसा कर रहे हैं, तो यह काफी गंभीर और दुर्भाग्यपूर्ण है। यही नहीं, उन्होंने नेपाली मसलों को लेकर चीन की बढ़ती सक्रियता पर खतरे की संभावना जताई है। वही राजनीतिक विशलेषक दिनेश त्रिपाठी ने कहा कि दोनों ही देशों के बीच इस विवाद को सुलझाने के लिए वार्ता के इतर और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें इस विवाद को सुलझाने के लिए कूटनीतिक आसार की तलाश करनी होगी। तभी जाकर स्थिति के दुरूस्त होने की संभावना है।