उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने पुरुषों और महिलाओं (Men and women marriage minimum age) दोनों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष करने के अनुरोध वाली याचिका पर सोमवार को विचार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह उम्र तय करने के लिए संसद को कानून बनाने का निर्देश देने जैसा होगा। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud), न्यायमूर्ति पी एस नरसिंह (Justice PS Narsingh) और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) की पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार नहीं करेंगे।
पीठ ने कहा, यह मामला विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। बता दें कि शाहिदा कुरैशी द्वारा दायर याचिका में महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र बढ़ाकर पुरुषों के बराबर 21 साल करने का अनुरोध किया गया था।
पिछले आदेश का कोर्ट ने दिया हवाला
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान 20 फरवरी के अपने आदेश का हवाला दिया, जिसमें एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। पीठ ने कहा, इन कार्यवाहियों में चुनौती पुरुषों और महिलाओं की शादी की उम्र पर पर्सनल लॉ को लेकर है। हमने 20 फरवरी, 2023 को अश्विनी उपाध्याय बनाम भारत संघ के समान मामले में फैसला किया है। लिहाजा, पारित आदेश के मद्देनजर यह याचिका खारिज की जाती है।
सॉलिसिटर जनरल ने रखी दलील
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, यह कानून बनाने जैसा होगा और यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। एक प्रावधान को खत्म करने से ऐसी स्थिति पैदा होगी, जहां महिलाओं की शादी के लिए कोई न्यूनतम आयु नहीं होगी। इस पर चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर अदालत इस दलील पर विचार करेगी तो यह संसद को न्यूनतम आयु तय करने का निर्देश देने जैसा होगा।