भारत और बांग्लादेश के बीच चिल्हाटी और हल्दीबाड़ी रेल रूट पर 56 साल बाद ट्रेन चली है. अंतरराष्ट्रीय सीमा से हल्दीबाड़ी रेलवे स्टेशन की दूरी 4.5 किलोमीटर है. जबकि चिल्हाटी से दूरी तकरीबन 7.5 किलोमीटर है. खास बात यह है कि 56 साल बाद इस रेलमार्ग के शुरू होने से भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार में और ज्यादा तेजी आएगी. इसी के साथ पूर्वोत्तर भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में जाने के लिए एक नया रास्ता भी मिलेगा. अलीपुरद्वार डिवीजन के दमदम स्टेशन से पहली मालगाड़ी को हल्दीबाड़ी-चिलाहाटी रेल लिंक के माध्यम से बांग्लादेश के चिलाहाटी स्टेशन के लिए रवाना किया गया है.
क्या है इस रूट का इतिहास? भारत और बांग्लादेश का रेलवे नेटवर्क ज्यादातर ब्रिटिश काल के भारतीय रेलवे से विरासत में मिला है. 1947 में विभाजन के बाद, भारत और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (1965 तक) के बीच 7 रेल लिंक चालू थे. हाल ही में भारत और बांग्लादेश के बीच 4 परिचालन रेल लिंक थे- पेट्रापोल (भारत) – बेनापोल (बांग्लादेश), गेदे (भारत) – दर्शन (बांग्लादेश), सिंहाबाद (भारत) – रोहनपुर (बांग्लादेश), राधिकापुर (भारत) – बिरोल (बांग्लादेश).
हल्दीबाड़ी-चिलाहाटी रेल लिंक को अगस्त 2020 से चालू किया गया, जो भारत और बांग्लादेश के बीच 5वीं रेल लिंक है. हल्दीबाड़ी-चिलाहाटी रेल लिंक 1965 तक चालू था. यह विभाजन के दौरान कोलकाता से सिलीगुड़ी तक ब्रॉड गेज मुख्य मार्ग का हिस्सा था. विभाजन के बाद भी असम और उत्तरी बंगाल की यात्रा करने वाली ट्रेनें तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान क्षेत्र से होकर यात्रा करती रहीं. हालांकि, 1965 के युद्ध ने भारत और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के बीच सभी रेलवे लिंक को प्रभावी ढंग से काट दिया.
मई, 2015 में दिल्ली में आयोजित बैठक (आईजीआरएम) में संयुक्त घोषणा में इस पूर्ववर्ती रेल लिंक को फिर से खोलने के लिए 2016-17 में चिल्हाटी (बांग्लादेश) के साथ जोड़ने के लिए हल्दीबाड़ी स्टेशन से बांग्लादेश सीमा तक एक नई बीजी लाइन के निर्माण की मंजूरी दी गई. भारतीय रेलवे ने हल्दीबाड़ी स्टेशन से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक की पटरियों को 82 करोड़ रुपये की लागत से बहाल कर दिया है. हल्दीबाड़ी-चिलाहाटी मार्ग, असम, पश्चिम बंगाल, नेपाल और भूटान से बांग्लादेश जाने के लिए सबसे कम दूरी का रास्ता है. इस रेल लिंक से व्यापार, आर्थिक और सामाजिक विकास को प्रोत्साहित किया जायेगा. इस नए रेल लिंक से इन दक्षिण एशियाई देशों की आर्थिक गतिविधियों को भी फायदा होगा.