अमेरिका से 11 हजार 131 किलोमीटर दूर तालिबान राज में जिस हमले की साजिश रची गई, वही तालिबान 9 सितंबर 2001 की 20वीं बरसी पर आतंकी हमले की निंदा कर रहा है. तालिबान के प्रवक्ता ने अलकायदा से भी किनारा कर लिया. जिस अलकायदा का सरगना लादेन तालिबान की शह पर अफगानिस्तान में छुपा था वही तालिबान अब अलकायदा से अपने रिश्तों पर भी पर्दा डालने में लगा है. तालिबान ने पहली बार 20 साल पहले अमेरिका में हुए 9/11 हमले की निंदा की है. विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि मासूमों का खून बहाना गलत था. तालिबान के प्रवक्ता तारिक गजनीवाल ने कहा उनका अलकायदा से कोई लेना देना नहीं है. जिहाद के नाम पर मासूमों को मारना गलत था.
आखिर क्यों खुद को बदला हुआ दिखा रहा है तालिबान?
ऐसे तालिबान के ताजा रुख से सवाल उठ रहे हैं कि क्या तालिबान बदल गया है या तालिबान बदलने की एक्टिंग कर रहा है. फिलहाल अफगानिस्तान मे जो हालात है वजह दूसरी ही नजर आ रही है. क्योंकि तालिबान को अब विरोधियों की बंदूकों की चुनौती की बजाय कंगाली की चुनौती का सामना करना है. अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही विदेशी मदद पर टिकी थी. GDP का 40 फीसदी हिस्सा विदेशी मदद से पूरा होता है. तालिबान के कब्जे के बाद विदेशी मदद रुक गई है. विश्व बैंक और IMF ने भी अफगानिस्तान की सहायता राशि रोक दी है. अमेरिका ने द अफगानिस्तान बैंक की 9 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार को फ्रीज कर दिया है. बैंक बंद पड़े हैं और लोग नकदी के लिए परेशान है. खाने पीने के जरुरी सामानों की कीमत आसमान छूने लगी है.
इसलिए कयास यही लगाए जा रहे हैं कि दुनिया तालिबान को मान्यता दे दे और विदेशी मदद फिर से बहाल हो जाए. इसलिए तालिबान अपनी छवि को ठीक करने में जुटा है और अपने बयानों के जरिए संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि अब वो बदल गया है. ये महज संयोग है या तालिबान का प्रयोग. 9/11 की 20वीं बरसी पर जब पेंटागन में अमेरिकी झंडा शोक में झुका हुआ था उसी दिन तालिबान का झंडा अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भवन में फिर से फहरा दिया. रोटी-पानी की जुगत में जुटा तालिबान रंग बदलने की कोशिश कर रहा है और इसलिए चीन और पाकिस्तान को छोड़कर पूरी दुनिया अफगानिस्तान पर वेट एंड वॉच की नीति अपना रही है.