रिर्पोट :- गौरव सिंघल, वरिष्ठ संवाददाता, दैनिक संवाद, सहारनपुर मंडल।
ऐतिहासिक नगर देवबंद हिन्दुओं की प्राचीन संपदा श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ और इस्लामिक शिक्षण संस्था दारूल उलूम के कारण जहां देश और दुनिया में अपनी अलग विशेष पहचान बनाए हुए है। वहीं यह नगर ‘मीठे बेरों’ के कारण भी दूर तक जाना जाता है। लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की उपेक्षा एवं नगरीकरण की होड़ के चलते दूर-दूर तक प्रसिद्ध विशेष ‘पैंदी’ प्रजाति के यह रसीले एवं अत्यंत मीठे बेर अब लुप्त होने के कगार पर है। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में देवबंद नगर का यह मीठा बेर लोगों को ढूढ़ने से भी नहीं मिलेगा और यह बीते दिनों की बात बनकर रह जाएगा।
यहां के बेरों की विशेषता एवं पहचान यह है कि यह बहुत अधिक मीठा होने के कारण बीच में से फट जाता है और यह फटा हुआ बेर ही ‘देवबंदी बेर’ के नाम से जाना जाता है। दूर-दराज एवं आस-पास के सभी शहरों में बेरों को अब भी देवबंद का बेर कहकर बेचते हुए देखा जा सकता है। देवबंद में बेरों के बागों के मालिकों का कहना है कि बेर के बागों की हर साल एक बहार 30 से 40 हजार रूपए से अधिक नहीं बिकती है, जबकि इनके रख-रखाव में इससे भी कहीं अधिक खर्च हो जाता है। इस कारण बाग के स्वामी बचत न होने के कारण बेरियों को काटनें को मजबूर है। एक पेड़ से करीब 60 किलो से लेकर एक क्विंटल तक बेर मिलते है और इन्हें बाजार में बेचने के बाद 15 सौ से 2 हजार रूपए तक की आमदनी ही बामुश्किल हो पाती है।
देवबंद क्षेत्र में दो दशक पहले तक बेरों के 50 से 70 बाग हुआ करते थे। लेकिन नगरीकरण के चलते यह इस समय घटकर मात्र 10-11 के करीब ही रह गए है। यह चिंता का विषय है कि बेरों के बाकी बचे बाग आबादी के बीच में आ चुके हैै। नगर के मौहल्ला दगड़ा एवं ईदगाह आदि स्थानों से बेरियों का कटान व्यापक पैमाने पर हुआ है और यही वजह है कि देवबंद का दूर-दूर तक मशहूर बेर अब देवबंदी लोगों को भी थोड़े ही समय के लिए दिख पाता है और बाद में यह देवबंद में भी ढूढ़ने से भी नहीं मिल पाता है। बाद में इसकी भरपाई देवबंद के विक्रेता बाहर से मंगाए हुए बेरों से करते है। लेकिन उन बेरों में वह स्वाद नहीं है जो देवबंद के मीठे बेरों में। मीठे एवं स्वादिष्ठ देवबंदी बेर एक बार खाने के बाद लोग बार-बार खाते रहते है।
पर्यावरण,पक्षी एवं पेड़-पौधों से अत्यधिक लगाव रखने वाले देवबंद नगर के मौहल्ला कानूनगोयान निवासी कपडा व्यापारी शशांक जैन, मोहल्ला छिम्पीवाड़ा के वरिष्ठ पत्रकार गौरव सिंघल और कैलाशपुरम कालोनी के शिक्षक मोहित आनंद ने देश के कृषि वैज्ञानिकों से इस ओर विशेष ध्यान देने की मांग करते हुए देवबंदी बेरों के बागों को बचाने की अपील की है। व्यापारी शशांक जैन एवं वरिष्ठ पत्रकार गौरव सिंघल का कहना है कि सरकारी उपेक्षा के चलते देवबंदी बेर लुप्त होने के कगार पर है। वह इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इसके प्रति बरती जा रही उदासीनता पर नाराजगी जताते हुए उन्हें इसके लिए उन्हें दोषी मानते है। उनका कहना है कि वह संकट में चल रही इस पैमादी प्रजाति को विकसित करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य करें ताकि देवबंदी बेरों के अस्तित्व को कुछ हद तक बचाया जा सके। कुल मिलाकर देवबंद के लोग तो कम से कम यह चाहते ही है कि उनका यह मीठा बेर उन्हें पहले की भांति हमेशा मिलता ही रहे।