कई देशों में मंकीपॉक्स (Monkeypox) के मामले सामने आने के साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने सभी राज्यों को सलाह दी है कि वे अस्पतालों को इस रोग के लक्षण वाले उन मरीजों पर नजर रखने का निर्देश दें जो हाल में मंकीपॉक्स से संक्रमित देशों की यात्रा कर चुके हैं. ऐसे मरीजों को पृथक स्वास्थ्य केंद्रों (Isolation Ward) में रखने को कहा गया है।
सूत्रों के अनुसार, अब तक केवल एक व्यक्ति को मंकीपॉक्स संक्रमण के लक्षण होने पर पृथक-वास में रखा गया है जिसने कनाडा की यात्रा की थी. उक्त यात्री के नमूने की पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान में हुई जांच में संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई थी. यात्री किस हवाई अड्डे पर पहुंचा था इसका खुलासा नहीं किया गया है. ब्रिटेन, इटली, पुर्तगाल, स्पेन, कनाडा और अमेरिका से मंकीपॉक्स के मामले सामने आए हैं।
मंकीपॉक्स के मामले में ज्यादा खतरा बच्चों को ही
लिवरपूल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स एएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट के डॉ ह्यू एडलर का कहना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी बीमारी को समझने की कोशिश कर रहे है और यह पता लगा रहे हैं कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में यह बीमारी फैली कैसे, जबकि रोगियों में है ऐसे भी हैं जिन्होंनें कोई यात्रा नहीं की और ना ही कोई संक्रमित व्यक्ति उनके संपर्क में आया था. मंकीपॉक्स के मामले में ज्यादा खतरा बच्चों को ही रहता है. लेकिन इस मामले में लक्षण बहुत हल्के थे और सभी पूरी तरह से ठीक हो गए. मंकीपॉक्स को लेकर चिंता की बड़ी बात नहीं है, अभी लोगों के बीच में इसको लेकर खतरा कम है।
क्या है मंकी पॉक्स
मंकीपॉक्स एक जूनोसिस रोग है जो जानवरों से इंसानों में फैलता है. यह एक ऑर्थोपॉक्स वायरस है जो चेचक के समान है लेकिन चेचक की तुलना में कम गंभीर होता है. इसे सबसे पहले 1958 में खोजा गया था. तब प्रयोगशाला के बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के दो लक्षण दिखे थे और इन्हें अनुसंधान के लिए यहां रखा गया था. यह जानकारी चेंबूर जेन मल्टीस्पेशेलिटी हॉस्पिटल के कंसल्टिंग फिजीशियन डॉ. विक्रांत शाह (Dr. Vikrant Shah) ने दी. साल 1970 में पहली बार ये किसी इंसान में पाया गया. बता दें कि ये वायरस मुख्य रूप से मध्य औऱ पश्चिम अफ्रीका के वर्षावन इलाकों में पाया जाता है।