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अलविदा पर्वतपुत्र: सीडीएस जनरल रावत ने मेडिकल पर दी थी परिवार की सैन्य परंपरा को तरजीह

अपनी असाधारण उपलब्धियों से उत्तराखंड को गौरव के कई लम्हे देने वाले सीडीएस जनरल बिपिन रावत नहीं रहे। तमिलनाडु के कुन्नूर में नीलगिरी के जंगलों में हुए एक हेलीकॉप्टर हादसे में देश ने अपनी तीनों सेनाओं का सर्वोच्च योद्धा खो दिया। इस हादसे में उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत 12 अन्य सैन्यकर्मी भी मारे गए। जनरल बिपिन रावत के रूप में साल 2020 में देश को पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ मिला था। परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल और सेना मेडल से सम्मानित जनरल बिपिन रावत की सीडीएस के पद पर नियुक्ति से उत्तराखंड के लिए गौरवान्वित करने वाला लम्हा था। सेना में अपना अविस्मरणीय योगदान देने वाले जनरल रावत पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की गौरवशाली सैन्य परंपरा के प्रतिमान रहे।

पिता सेना के उप-प्रमुख रहे

जनरल रावत अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के ‘फौजी’ रहे। उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) लक्ष्मण सिंह रावत भारतीय सेना के उप-प्रमुख रह चुके थे। यह संयोग ही था कि पिता-पुत्र दोनों को 11वीं गोरखा रायफल्स की पांचवीं बटालियन में ही कमीशन मिला। 16 मार्च, 1958 को जन्मे बिपिन रावत का चयन मेडिकल में हुआ था लेकिन सेना को अपनी जिस सैन्य परंपरा का अभिमान है, वही परंपरा युवा बिपिन रावत को अपनी ओर खींच लाई। उन्होंने चिकित्सा के पेशे पर अपनी पारिवारिक परंपरा को वरीयता दी। दादा और पिता के बाद वह भी देश की सेवा के लिए सेना में आए और CDS के सर्वोच्च पद तक पहुंचे।

 

एक दिलेर अफसर के रूप में अनेक महत्वपूर्ण सैन्य कार्रवाइयों का नेतृत्व करने वाले जनरल बिपिन रावत ने सेना प्रमुख के रूप में बहुत से साहसिक फैसले लिए, जिसने सेना के जवानों और आम जनता के बीच उनकी छवि ‘एक जनरल जरा हटके’ वाली बनाई। जनरल रावत जिस कौशल से सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीतियां बनाते, उसी कुशलता से अफसर और जवान तथा सेना और सिविलियंस के बीच की दूरियां मिटाने के फैसले लेकर मानवीय भावना का परिचय देते।

सेना में सहायक परंपरा खत्म करने का फैसला हो या फिर दिल्ली के ट्रैफिक में बेहाल आम लोगों को सेना के दिल्ली कैंटोनमेंट एरिया के ग्रीन जोन्स से होकर गुजरने की इजाजत देना, जनरल रावत के ‘साहसिक’ फैसलो ने बताया कि वह विशेषाधिकारों में नहीं दिल जीतने में यकीन रखते थे। जनरल रावत ने स्कूली छात्रों के साथ अपना अनुभव बांटते एक बार कहा था, ‘बचपन में स्कूल में जो मानवता का पाठ मैंने पढ़ा था उसे कभी खुद से अलग नहीं होने दिया और कई बार वही मेरी सबसे बड़ी शक्ति बनता है।’

जब दिवंगत जनरलों की पत्नियों को किया फोन

जब सीडीएस रावत आर्मी चीफ बने थे तो उन्होंने सभी पूर्व जनरलों और जिन जनरलों का देहांत हो गया है उनकी पत्नियों को फोन किया और कहा कि यह मेरा फोन नम्बर है और मैं आपके लिए 24 घंटे उपलब्ध हूं। जब उन्होंने उत्तराखंड से ही आने वाले पूर्व जनरल बिपिन चंद्र जोशी की पत्नी को फोन किया तो वह भावुक हो गईं थीं। जनरल बिपिन रावत हर छोटी-बड़ी चीज का ध्यान रखते थे। जनरल बिपिन चंद्र जोशी उनकी शादी में शामिल हुए थे।

पौड़ी के रहने वाले जनरल बिपिन रावत

मूल रूप से सीडीएस जनरल रावत पौड़ी जिले के सैंण गांव से थे। यहां पर उनके चाचा भरत सिंह रावत और उनका परिवार रहता है। उत्तराखंड के पौड़ी जिले द्वारीखाल ब्लॉक में बिरमोली ग्राम पंचायत के अंतर्गत सैंण गांव आता है। जनरल रावत के घर तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता पैदल तय करना पड़ता है। जनरल बिपिन रावत का परिवार दशकों पहले देहरादून शिफ्ट हो गया था, लेकिन उन्हें अपने पैतृक गांव सैंण से इतना लगाव था कि वह यहां आते रहते थे। उनके इस मिलनसार व्यवहार का पूरा गांव कायल रहा।

देहरादून-शिमला से हुई शिक्षा

जनरल रावत की शुरुआती पढ़ाई देहरादून से हुई। उन्होंने कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मेरी स्कूल से दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की, जो लड़कियों का स्कूल है। जनरल रावत ने स्कूल के शुरुआती दिनों को याद करते हुए एक बार कहा था कि लड़कियों के स्कूल में पढ़ते हुए भी उनके साथ कभी कोई लिंगभेद नहीं हुआ। आगे की पढ़ाई देहरादून के प्रतिष्ठित कैंब्रियन हॉल स्कूल और फिर शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल में हुई।

उसके बाद नेशनल डिफेंस एकेडमी खड़कवासला और इंडियन मिलिट्री स्कूल देहरादून आए, जहां उन्होंने सर्वश्रेष्ठ कैडेट को दिया जाने वाला स्वॉर्ड ऑफ ऑनर हासिल किया। उन्होंने वेलिंगटन के डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। जनरल रावत ने मद्रास विश्वविद्यालय से डिफेंस स्टडीज में एम.फिल और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से मिलिट्री और मीडिया-सामरिक अध्ययन विषय पर पीएचडी भी की।

सर्जिकल स्ट्राइक के मास्टर प्लानर

जनरल रावत को सेना के लिए रणनीति बनाने में माहिर माना जाता था। 4 जून 2015 को मणिपुर के चंदेल में नागा विद्रोहियों ने छापामार हमला करके 6 डोगरा रेजिमेंट के 18 भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी। सेना ने जब सर्च ऑपरेशन चलाया तो ये विद्रोही म्यांमार में जाकर छुप गए। विद्रोहियों के बढ़ते हौसलों को कुचलने और सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए सख्त कार्रवाई की दरकार थी। तय हुआ कि विद्रोहियों को करारा जवाब दिया जाएगा।

बतौर सेना की तीसरी कोर के प्रमुख ले. जनरल बिपिन रावत ने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग के सामने नागा विद्रोहियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की योजना का विस्तृत खाका रखा था। उत्तर-पूर्व में घुसपैठ रोकने के सैन्य अभियानों का खासा अनुभव रखने वाले बिपिन रावत ने स्ट्राइक की प्लानिंग इतने डिटेल में और इतनी सजगता से तैयार की थी कि हमले करने के महज छह दिनों के भीतर, 10 जून, 2015 को, सेना के पैरा कमांडो ने म्यांमार की सीमा में दाखिल होकर करीब 40 मिनट में एक बड़े सफल सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया और सुरक्षित वापस लौट आए। म्यांमार की सीमा के अंदर बने उग्रवादी गुट एनएससीएन-खापलांग के आतंकी कैंप तबाह हो गए। इस कार्रवाई से भारत के दुश्मनों में एक कड़ा संदेश दिया।

म्यांमार ऑपरेशन कई लिहाज से अलग था। कमांडो, सेना की 12 बिहार रेजीमेंट की वर्दी में अपने अभियान पर निकले थे, ताकि उन्हें देखकर यह अंदाजा न लगाया जा सके कि वे किसी रूटीन अभियान पर नहीं बल्कि किसी विशेष अभियान पर निकले हैं। दुश्मनों को चकमा देते हुए अचानक हमले करके चौंका देने की म्यांमार की सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बहुत सफल रही थी।

फिर पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक

म्यांमार ऑपरेशन की सफलता ने ही साल 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की जमीन तैयार की। 18 सितंबर, 2016 को जम्मू-कश्मीर के उरी में नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकियों ने भारतीय सेना के कैंप पर आतंकी हमला किया। 29 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने इसका जवाब देते हुए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक की और कई आतंकियों को मार गिराया। इस कार्रवाई ने भारत को दुनिया में एक बड़ी और निर्णायक कार्रवाई करने वाले देश के तौर पर स्थापित किया। इस कार्रवाई का ब्लूप्रिंट भी जनरल रावत ने ही खींचा था। हालांकि तब वह लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर थे।

वह हमेशा कहते रहे कि भारत ढाई मोर्चें पर युद्ध के लिए तैयार है, तो मतलब साफ था कि भारत ने नए तरह के वॉरफेयर पर काम करना शुरू कर दिया है। उनका आशय था कि भारत को अब चीन और पाकिस्तान मोर्चे के साथ ही आंतरिक सुरक्षा पर भी मुस्तैद रहने की जरूरत है।

सेना का शानदार करियर

जनरल बिपिन रावत आर्मी चीफ के पद पर पहुंचने वाले उत्तराखंड के दूसरे अधिकारी थे। इससे पहले जनरल बिपिन चंद्र जोशी सेना प्रमुख बने थे। जनरल रावत का करियर उपलब्धियों से भरा रहा। अपने सैन्य सेवाकाल में जनरल बिपिन रावत को परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल और सेना मेडल जैसे कई सम्मानों से अलंकृत किया गया। उन्होंने मिशन इन द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगों के मिशन-7 (एमओएनयूसी) में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड की कमान संभालते हुए बेहतरीन काम किया। इसके लिए उन्हें फोर्स कमांडर्स कमांडेशन भी मिला।

डोकलाम विवाद में दिखाई सैन्य मजबूती

जनरल बिपिन रावत के करियर के सबसे महत्वपूर्ण पलों में से एक चीन की सेना के साथ डोकलाम का गतिरोध रहा। जिस अंदाज में भारतीय सेना 73 दिनों तक चीनी सेना के सामने डटी रही, उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कूटनीतिक संदेश दिए। इस गतिरोध में नैतिक रूप से विजय के बाद भारत ने अपने अन्य पड़ोसियों को यह संदेश दिया कि दबाव में आकर अपनी संप्रभुता से समझौता करके चीन से सैनिक और आर्थिक संबंधों के निर्माण की आवश्यकता नहीं है। जनरल बिपिन रावत को भारतीय सेना की कमान संभाले करीब छह महीने हुए थे। इसी बीच चीन ने आदत के अनुसार एक बार फिर से भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा पर धौंस दिखाना शुरू किया। भारतीय सेना को भूटान की अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास डोकलाम पठार पर स्थित एक गांव में चीनी सैनिकों द्वारा सड़क बनाने की सूचना मिली।

भारतीय सैनिक 16 जून 2017 को डोकलाम के उस गांव पहुंचे और चीनियों को सड़क बनाने से रोक दिया। सेना ने चीनियों के बुलडोजर भी जब्त कर लिए। जहां चीन यह दावा कर रहा था कि वह अपने इलाके में सड़क बना रहा था, जबकि भारत का तर्क था कि यह सड़क निर्माण उसके मित्र राष्ट्र भूटान के इलाके में हो रहा था और यह रणनीतिक रूप से भारत के हितों के विरूद्ध है इसलिए भारत को कार्रवाई का पूरा अधिकार है। भारत का मानना था कि इससे चीन, भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिकों की तनाती की यथास्थिति को भंग करना चाहता है और भारत इसकी अनुमति नहीं देगा। भारत ने चीन को आगे बढ़कर चुनौती दी थी।

जनरल रावत को पूर्वोत्तर का खासा अनुभव रहा। उन्होंने संभावित युद्ध की तैयारियां शुरू कर दीं। जिम्मेदारी दोहरी थी। पहली चुनौती थी कि अपनी तरफ से उकसावा न देते हुए सैन्यबलों का मनोबल बनाए रखना। इसके साथ-साथ पूर्वोत्तर के दुरूह मोर्चे पर संभावित युद्ध की स्थिति में रणनीतिक रूप से पर्याप्त तैनाती जिससे कि भारत की तैयारियां भी होती रहें और विश्व पटल पर यह संदेश भी न जाने पाए कि भारत अपनी ओर से युद्ध की स्थितियां खड़ी कर रहा है। दोनों देशों के बीच 16 जून 2017 को शुरू हुआ गतिरोध, कूटनीतिक हस्तक्षेपों से 28 अगस्त 2017 को समाप्त हुआ और दोनों देशों में सेनाएं वापस बुलाने पर सहमति बनी। इस गतिरोध के दौरान भारतीय सेना किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए पूरी तरह तैयार थी और उसने विश्व मंच पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सामने खुद को एक बहुत मजबूत, सक्षम और पेशेवर सेना की तरह पेश किया।