कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर के बीच गतिमान उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की दूसरी एंट्री पार्टी के लिए बूस्टर डोज से कम नहीं। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और रोजगार के मुद्दों पर अपने नपे-तुले संबोधन में राहुल गांधी ने जहां प्रदेश के आम आदमी की नब्ज को छूने का प्रयास किया, वहीं किसानों को यह भरोसा दिलाने की भी कोशिश की, कि उनके मुद्दों का हल, सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी के पास है।
राहुल गांधी ने हमेशा की तरह पीएम मोदी पर वार भी किए। किसान आंदोलन के बाद तीन कृषि कानूनों की वापसी को कांग्रेस भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। राहुल गांधी के अलावा मंच से तमाम वक्ता इस बात को दोहराना नहीं भूले कि कैसे कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने सबसे पहले किसानों के साथ खड़े होकर आंदोलन को मुुकाम तक पहुंचाने में अपना योगदान किया। इसलिए कांग्रेस किसानों को अपने ‘अच्छे दिनों’ से जोड़कर देख रही है।
तीन मैदानी जिलों की 21 सीटों पर किसानों का असर
राज्य के तीन मैदानी जिलों की 21 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिनकी राजनीति काफी हद तक किसानों के मूड पर भी निर्भर करती है। इनमें देहरादून की 10 विस सीटों में से डोईवाला, सहसपुर और आंशिक विकासनगर किसान बहुल हैं तो हरिद्वार की 11 सीटों में हरिद्वार शहर को छोड़कर बाकी 10 में किसानों की भूमिका काफी अहम है।
यूएसनगर की नौ सीटों में रुद्रपुर को छोड़कर बाकी सीटों पर किसान मतदाताओं की तादात अच्छी खासी है। इनमें अधिकांश सिख किसान हैं। वर्ष 2017 के चुनाव में इन 19 सीटों में से 15 में भाजपा का कमल खिला तो कांग्रेस का हाथ मात्र चार सीटों पर सिमट गया था। यही तीनों जिले पिछले दिनों किसान आंदोलन से प्रभावित रहे हैं। बेशक मोदी सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया, लेकिन किसानों के मुद्दे पर सियासत अभी खत्म नहीं हुई है और कांग्रेस के रणनीतिकार इस बात को बखूबी जानते हैं।
प्रदेश में किसान बहुल विधानसभा सीटें
देहरादून: डोईवाला, सहसपुर, विकासनगर (आंशिक)
हरिद्वार: ज्वालापुर, भगवानपुर, झबरेड़ा, पिरान कलियर, रुड़की, खानपुर, मंगलौर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण, रानीपुर
यूएसनगर: जसपुर, काशीपुर, बाजपुर, गदरपुर, किच्छा, सितारगंज, नानकमत्ता, खटीमा