अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिकी सैनिकों (US Troops) की वापसी हो रही है. ऐसे में इस बात को लेकर चर्चा तेज हो गई है कि तालिबान (Taliban) अमेरिका की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेगा. वहीं, इस वजह से पाकिस्तान (Pakistan) में खासा हलचल मची हुई है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी (Shah Mahmood Qureshi) ने कहा कि अगर तालिबान ने अमेरिका सैनिकों की वापसी के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया तो हम राष्ट्रीय हित में अफगानिस्तान से लगने वाली सीमा को बंद कर लेंगे.
शाह महमूद कुरैशी ने कहा, हमें अपनी सीमाएं बंद करनी होंगी. हमें अपने राष्ट्रीय हित की रक्षा करनी होगी. कुरैशी ने दावा किया तालिबान ने अफगानिस्तान में तबाही मचाई जिस वजह से पाकिस्तान ने 35 लाख अफगान शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी. लेकिन अब हम ज्यादा लोगों को शरण नहीं दे सकते हैं. गौरतलब है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अप्रैल में ऐलान किया कि अमेरिका 11 सिंतबर तक अफगानिस्तान में तैनात अपने जवानों को वापस बुला लेगा. 11 सितंबर 2001 को ट्विन टावर पर हुए हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में अल-कायदा (Al-Qaeda) को खत्म करने के लिए प्रवेश किया.
इमरान ने भी सीमा बंद करने की बात कही
पाकिस्तानी विदेश मंत्री का ये बयान ऐसे समय पर आया है, जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) ने हाल ही में रिपोटर्स ने कहा कि यदि तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा जमाता है तो हम इससे लगने वाली सीमा डूरंड रेखा को बंद कर देंगे. इमरान ने कहा था कि क्या होगा अगर तालिबान सेना के माध्यम से अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कोशिश करता है? फिर हम सीमा को सील कर देंगे क्योंकि अब हम ऐसा कर सकते हैं. हमने अपनी सीमा पर बाड़ लगा दी है. पहले ये खुला हुआ था, क्योंकि हम संघर्ष में नहीं पड़ना चाहते थे. हम शरणार्थियों की एक बड़ी आबादी को फिर से नहीं चाहते हैं,
डूरंड रेखा को लेकर पाकिस्तान-अफगानिस्तान में है विवाद
पाकिस्तान और अफगानिस्तान को अलग करने वाली डूरंड रेखा (Durand Line) दोनों देशों के लिए तब से एक विवादास्पद मुद्दा बन गई है जब से पाकिस्तान ने इमरान के कार्यकाल के दौरान इस पर बाड़ लगाना शुरू किया है. अफगानिस्तान का दावा है कि 1893 में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासक सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड द्वारा खींची गई इस भू-राजनीतिक सीमा की कोई कानूनी पवित्रता नहीं है. पाकिस्तान को अपनी ओर से उम्मीद है कि यह 2,640 किलोमीटर लंबी बाड़ वाली सीमा तालिबान के सत्ता में आने पर देश में जातीय पश्तूनों के शरणार्थी प्रवाह को रोकने में मदद करेगी.