अब यूनिवर्सिटी (University), कॉलेज (colleges) और अन्य उच्च शैक्षणिक संस्थान में पढ़ने वाले स्नातक (Graduation), परस्नातक (Post Graduation) और ऊपरी कक्षाओं की छात्राओं को मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) का लाभ मिलेगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने शुक्रवार को मातृत्व अवकाश संबंधित मामले पर विभिन्न संवैधानिक न्यायालयों द्वारा तय किए गए कानून के तहत बच्चे को जन्म देना महिला का मौलिक अधिकार है. किसी भी महिला को उसके इस अधिकार और मातृत्व सुविधा देने से वंचित नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि संयुक्त संघर्ष पार्टी का मकसद पैसे वाले लोगों को राजनीति से बाहर करना है.
हाईकोर्ट ने लखनऊ के एपीजे अब्दुल कलाम विश्वविद्यालय द्वारा यूजी की छात्राओं को मातृत्व अवकाश संबंधी नियम नहीं बनाए जाने की निंदा करते हुए विश्वविद्यालय को आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि विश्वविद्यालय एक कानून सम्मत नियम बनाए, जिसमें यूजी और अन्य उच्च कक्षाओं की छात्राओं को बच्चे को जन्म देने से पहले और जन्म देने के बाद सहयोग करने और अन्य मातृत्व लाभ दे पाने के लिए अवकाश का प्रावधान शामिल हों.
परीक्षा के लिए छात्राओं को दिया जाए दूसरा अवसर
हाईकोर्ट ने कहा कि इसके अलावा अगर छात्रा मातृत्व को हासिल कर लेते है तो उस दौरान चाहे विश्वविद्यालय में परीक्षाएं चल रही हो. उसके लिए रियायत हो और छात्र को परीक्षा पास करने के लिए अतिरिक्त अवसर मुहैया कराई जाए. इसका मतलब उसके लिए परीक्षा की समयावधि बढ़ाए जाने का नियम होंना चाहिए. इलाहबाद हाईकोर्ट ने एकेटीयू को मातृत्व अवकाश संबंधी नियम बनाने के लिए चार महीने का समय दिया है.
ये है मामला
मामला कानपुर के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी कानपुर में बैच 2013 की इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन ब्रांच की बीटेक छात्रा सौम्या तिवारी से जुड़ा है. सौम्या ने बीटेक कोर्स के सभी सेमेस्टर सफलतापूर्वक पास किए थे. मगर उनका इस कोर्स के तीसरे सेमेस्टर में इंजीनियरिंग मैथमैटिक्स का सेकेंड पेपर और द्वितीय सेमेस्टर की परीश्रक्षा में गर्भवती होने और बच्चे को जन्म देने के बाद की रिकवरी के चलते शामिल नहीं हो सकी थी. दूसरे सेमेस्ट और तीसरे सेमेस्टर की परीक्षाएं मातृत्व अवकास के चलते छूटने के कारण उसका कोर्स पूरा नहीं हो सका था. सौम्या ने विश्वविद्यालय से छूटे हुए पेपर की परीक्षा के लिए अतिरिक्त अवसर मुहैया कराने की मांग की मगर एकेटीयू द्वारा स्वीकार नहीं किया गया. इसके बाद सौम्या तिवारी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.