सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की सात-जजों की संविधान पीठ (Seven-judge constitution bench) आज शुक्रवार को यह निर्णय देगी कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University- AMU) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा (Status of minority institution) दिया जा सकता है या नहीं। खास बात ये है कि इस पीठ का नेतृत्व डी वाई चंद्रचूड़ कर रहे हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) के तौर पर चंद्रचूड़ का आज यानी शुक्रवार को आखिरी दिन है। यह मामला 2006 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से उठा था, जिसमें अदालत ने कहा था कि 1920 में बने एक कानून के तहत स्थापित AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
अगर आज के फैसले में यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना गया, तो AMU को भी अन्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की तरह आरक्षण नीति लागू करनी पड़ेगी। लेकिन अगर इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलता है, तो यह 50% सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित रख सकता है। फिलहाल, AMU में राज्य की आरक्षण नीति लागू नहीं होती, बल्कि यह अपने छात्रों के लिए एक आंतरिक आरक्षण नीति अपनाता है, जिसमें 50% सीटें इसके संबद्ध स्कूलों और कॉलेजों से आए छात्रों के लिए आरक्षित होती हैं।
इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना (जो अगले CJI होंगे), सूर्य कांत, जे बी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और एस सी शर्मा भी शामिल हैं। इस मामले पर इसी साल 10 जनवरी से 1 फरवरी तक आठ दिनों तक सुनवाई हुई थी। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी फैसला दिया है। 1967 में, एस. अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में एक पांच-जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, क्योंकि इसे मुस्लिम समुदाय ने न तो स्थापित किया था और न ही इसका संचालन किया गया था, जो कि अल्पसंख्यक संस्थान के लिए जरूरी है।
1981 में AMU एक्ट में संशोधन किया गया और कहा गया कि विश्वविद्यालय की स्थापना भारत के मुसलमानों द्वारा की गई थी। 2005 में AMU ने खुद को अल्पसंख्यक संस्थान मानते हुए स्नातकोत्तर मेडिकल पाठ्यक्रमों में 50% सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित की थी, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सात-जजों की पीठ के पास भेजा था ताकि एस. अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले पर पुनर्विचार किया जा सके।
केंद्र सरकार ने 2016 में इस मामले में अपनी अपील को वापस ले लिया था और अब AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध कर रही है। केंद्र का कहना है कि 1920 में स्थापित होने के बाद AMU ने अपना धार्मिक दर्जा छोड़ दिया था और तब से यह मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित नहीं है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अनुच्छेद 30 (1) अल्पसंख्यकों को अपने प्रशासन का प्रबंधन चुनने का अधिकार देता है और इससे उनके अल्पसंख्यक दर्जे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।