साल 1977 में जब वायजर-1 और वायजर-2 अंतरिक्ष यान को स्पेस में भेजा गया था, तब मानवता ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया था। इन यानों में एक विशेष 12 इंच की सोने की परत चढ़ी तांबे की डिस्क लगाई गई थी, जिस पर पृथ्वी के संगीत, ध्वनियों और विभिन्न भाषाओं के गाने रिकॉर्ड किए गए थे। यह डिस्क किसी प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय भाषा का संदेश देने के लिए तैयार की गई थी, ताकि अगर कभी दूसरे ग्रहों से कोई प्राणी इस संदेश को प्राप्त करें तो वे पृथ्वी की विविधता को समझ सकें। लेकिन सबसे खास बात यह है कि इस डिस्क में भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी ध्वनियाँ शामिल थीं। भारतीय शास्त्रीय गायिका केसरबाई केरकर का गाना “जात कहां हो” इस डिस्क में रिकॉर्ड किया गया था, और आज भी यह गाना 48 साल बाद अंतरिक्ष में गूंज रहा है।
वायजर-1 और वायजर-2 के मिशन का उद्देश्य सिर्फ वैज्ञानिक था, लेकिन साथ ही इसे मानवता की संस्कृति और संगीत का संदेश भी भेजने के रूप में देखा गया। इन यानों पर एक गोल्डन रिकॉर्ड रखा गया था, जिस पर पृथ्वी के विभिन्न प्रकार के संगीत और ध्वनियाँ दर्ज की गई थीं। इसमें पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के अलावा दुनिया भर के विभिन्न देशों और संस्कृतियों का संगीत शामिल किया गया।
भारत से शास्त्रीय गायिका केसरबाई केरकर की आवाज
इस रिकॉर्ड में भारत से शास्त्रीय गायिका केसरबाई केरकर की आवाज को शामिल किया गया, जो जयपुर घराने की एक प्रसिद्ध गायिका थीं। उनके द्वारा गाया गया “जात कहां हो” गाना भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक अद्भुत उदाहरण था। उनकी गायकी को रवींद्रनाथ टैगोर ने “राग की रानी” के नाम से सम्मानित किया था, जो उनके अद्वितीय योगदान को दर्शाता है।
अंतरिक्ष में गूंजता भारतीय संगीत
यह गाना आज भी अंतरिक्ष में गूंज रहा है, और भारतीयों के लिए यह गर्व की बात है। यह गाना 48 सालों से वायजर-1 और वायजर-2 के साथ अंतरिक्ष में यात्रा कर रहा है और इसका उद्देश्य सिर्फ पृथ्वी की संस्कृति को अन्य ग्रहों तक पहुंचाना नहीं, बल्कि यह भी दिखाना था कि भारतीय संगीत और कला का महत्व और प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या है।
वायजर के इस गोल्डन रिकॉर्ड को भेजने का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की संस्कृति, ध्वनियों और संगीत को ब्रह्मांड के अन्य हिस्सों तक पहुंचाना था। इसमें न सिर्फ भारतीय संगीत, बल्कि अफ्रीकी, एशियाई, यूरोपीय और अन्य महाद्वीपों के संगीत भी शामिल थे। इन यानों को इस उद्देश्य से भेजा गया कि अगर कभी कोई और जीवन रूपी प्राणी पृथ्वी से संपर्क करेगा, तो वह जान सके कि पृथ्वी पर जीवन कितना विविध और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है।