पाकिस्तान (Pakistan) की एक अदालत ने शादमान चौक लाहौर का नाम बदलकर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह (Bhagat Singh) के नाम पर रखने और वहां उनकी प्रतिमा स्थापित करने से जुड़ी याचिका शुक्रवार (17 जनवरी) को खारिज कर दी. अदालत के एक अधिकारी ने बताया, “लाहौर हाई कोर्ट के जज शम्स महमूद मिर्जा ने आज भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान की उस याचिका का रद्द कर दिया, जिसमें शादमान चौक लाहौर का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने और उन्हें फांसी दिए जाने की जगह पर उनकी प्रतिमा स्थापित करने का अनुरोध किया गया था.”
जज ने मेट्रोपॉलिटन कॉरपोरेशन लाहौर और फाउंडेशन के वकीलों की दलील सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी. फाउंडेशन के अध्यक्ष एडवोकेट इम्तियाज रशीद कुरैशी ने कहा कि वह लाहौर हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. इससे पहले लाहौर के नगर निगम ने लाहौर हाई कोर्ट को बताया था कि उसने शादमान चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने और उस जगह पर उनकी प्रतिमा स्थापित करने की प्रस्तावित योजना रद्द कर दी है, जहां उन्हें 94 साल पहले फांसी दी गई थी. महानगर निगम ने अदालत में कहा, “शादमान चौक लाहौर का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने और वहां उनकी प्रतिमा स्थापित करने की लाहौर शहर जिला सरकार की प्रस्तावित योजना को कोमोडोर (आर) तारिक मजीद द्वारा की गई एक टिप्पणी के वजह से रद्द कर दिया गया है.”
शादमान चौक का नाम बदलने का निर्देश
इम्तियाज रशीद कुरैशी ने कोर्ट की अवमानना याचिका में जिला प्रशासन, लाहौर के उपायुक्त, पंजाब के मुख्य सचिव और नगर जिला प्रशासन के प्रशासक को पक्षकार बनाया था. याचिका में कहा गया था कि हाई कोर्ट के जज शाहिद जमील खान ने 5 सितंबर 2018 को संबंधित अधिकारियों को शादमान चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने के लिए कदम उठाने के निर्देश जारी किए थे, लेकिन अदालत के आदेश को अब तक लागू नहीं किया गया है. लाहौर हाई कोर्ट के न्यायाधीश शम्स महमूद मिर्जा ने याचिकाकर्ता के वकील की अनुपलब्धता के कारण अवमानना याचिका की सुनवाई 17 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी थी.
भगत सिंह को कब दी गई थी फांसी
23 वर्षीय भगत सिंह को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में, मुकदमा चलाए जाने के बाद 23 मार्च 1931 को लाहौर में फांसी दे दी गई थी. ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सॉन्डर्स की हत्या के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. सुखदेव और राजगुरु को भी ब्रिटिश सरकार ने फांसी दी थी.