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मर्डर के साथ मिस्ट्री भूल गए मेकर्स, Diljit Dosanjh ने इस बार तोड़ा फैंस का दिल

इन दिनों ढेर सारे कलाकारों से सजी फिल्मों का ट्रेंड चल रहा है। उसी ट्रेंड और डिजिटल प्लेटफॉर्म के पंसदीदा जॉर्नर मर्डर मिस्ट्री को मिलाकर बनी फिल्म डिटेक्टिव शेरदिल जी5 (Zee5) पर रिलीज हुई है।

ये जासूस केस सुलझाने से ज्यादा रील बनाने में माहिर
कहानी शुरू होती है बुडापेस्ट से, जहां डिटेक्टिव शेरदिल (दिलजीत दोसांझ) हर केस स्टाइल में सुलझा लेता है। वहां की पुलिस को भी हर केस के लिए शेरदिल की जरुरत पड़ती है। केस को सुलझाने के बाद शेरदिल रील्स बनाता है, छुट्टी पर जाता है। एक दिन जानेमाने बिजनेसमैन पंकज भट्टी (बमन ईरानी) का कत्ल हो जाता है। केस की जांच की जिम्मेदारी नताशा (डायना पेंटी) को दी जाती है। वह शेरदिल को इस काम के लिए चुनती है। भट्टी परिवार का हर कोई शक के दायरे में है।

बिना सिर पैर की कहानी लेकर आए अली अब्बास जफर?
फिल्म की कहानी रवि और अली अब्बास जफर ने मिलकर लिखी है। अली के साथ भारत, सुल्तान, टाइगर जिंदा है फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर चुके रवि ने फिल्म की एडिटिंग भी की है। ऐसा लगता है उन्होंने पहली ही फिल्म में अपने निर्देशन, लेखन से ज्यादा एडिटिंग की कला दिखाने में दिलचस्पी थी। हर सीन में स्टाइल, फास्ट कट, बैकग्राउंड स्कोर के चक्कर में मर्डर मिस्ट्री के जॉर्नर, जिसमें सस्पेंस, रोमांच, कातिल कौन है ढूंढने के लिए दिमाग लगाना, यह सब खो जाता है। हंग्री पुलिस इतनी बेबस नजर आती है कि बिना शेरदिल उसका काम ही नहीं चलता।

कत्ल के केस में पुलिस को फॉरेंसिक की जरुरत भी नहीं पड़ती है। डिटेक्टिव केवल क्राइम लोकेशन पर पहुंचकर ही आधा केस सुलझा लेता है। अली और सागर बजाज का स्क्रीनप्ले और संवाद प्रभावशाली नहीं है। फिल्म में एक डायलॉग है कि एक अच्छा डिटेक्टिव वह नहीं होता है, जो सही चाभी का पता लगाए, अच्छा डिटेक्टिव वह होता है, जो सही ताला ढूंढ निकाले।

ऐसे ही मर्डर मिस्ट्री और जासूसी वाली फिल्मों का अच्छा लेखक और निर्देशक वो होता है, जो इस जॉर्नर की फिल्मों के सभी पात्रों को शक के दायरे में रखते हुए अंत तक लेकर जाए, जहां कातिल का राज खुलने पर दर्शक चौंक जाए। ऐसा इस फिल्म में नहीं होता, क्योंकि कातिल पर आपका शक पहले ही हो जाता है।

फीकी पड़ी दिलजीत से लेकर डायना पेंटी की एक्टिंग
दिलजीत दोसांझ अपने चिरपरिचित अंदाज में हैं। उनके अभिनय में कोई नयापन नहीं है। बमन ईरानी, रत्ना पाठक शाह के हिस्से कुछ अच्छे सीन आए हैं, जिसमें उनका अनुभव झलकता है। सुमित व्यास बस स्टाइलिश लगते हैं। बनिता के पास स्कोप था, लेकिन कमजोर कहानी ने उन्हें उभरने नहीं दिया। डायना पेंटी का पात्र अधूरा है, जहां न शेरदिल के साथ उनका रिश्ता समझ आया, ना पुलिस डिपार्टमेंट में उनका पद। चंकी पांडे का पात्र फिल्म में क्या करता है, उसे समझने के लिए दोबारा फिल्म देखनी होगी।