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भाजपा के मिशन यूपी-2022 की शुरूआत

लेखक :- सुरेंद्र सिंघल, राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार: भाजपा ने मिशन यूपी-2022 की धमाकेदार शुरूआत की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी गृहमंत्री अमित शाह की खास रणनीति है कि जिस राज्य में भी विधानसभा के चुनाव होते हैं, वहां का राजनीतिक माहौल छह से आठ माह पूर्व बेहद गर्मा दिया जाता है। पार्टी की रफ्तार बढ़ जाती है। दूसरे दल जल्दबाजी में असमंजस में ही रह जाते हैं और भाजपा की सियासी रणनीतिक चालों की समय रहते काट नहीं ढूंढ़ पाते हैं। मोदी-शाह युग ने एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति की उत्पत्ति की है कि चुनाव वाले राज्य में भाजपा के रणनीतिकार विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं को किसी भी तरह से अपने पाले में लाने का काम करते हैं।

इन दोनों के केंद्रीय राजनीति में पदस्त हो जाने के बाद हमने यही देखा है कि सभी राज्यों में भाजपा ने दूसरे दलों के प्रमुख नेताओं को अपने साथ लाने का सफलतापूर्वक काम किया है। उत्तर प्रदेश की 18वीं विधानसभा के चुनाव फरवरी-2022 में होने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में ऐसा माहौल निर्मित्त कर दिया गया है कि राजपूत बिरादरी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कारण उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों में नाराजगी है। ध्यान देने की बात है कि 28 अक्टूबर 2000 में जब राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जा रहा था उस दौरान भाजपा के ही प्रभावशाली ब्राह्मण नेताओं ने राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री बन जाने की स्थिति में उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों में असुरक्षा का भाव आ जाने की चिंता जताई थी और उसमें से कुछ ने तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक अपना यह मत पहुंचाया था। वह अलग है कि देश के परिपक्व सियासतदा अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसी बेवकूफभरी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया था। राजनाथ सिंह मजे से 8 मार्च 2002 तक उत्तर प्रदेश के सफल मुख्यमंत्री रहे और एक भी ब्राह्मण का अहित उस दौरान नहीं हुआ।

 

ऐसी ही आशंकाएं और चर्चाएं योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते वक्त व्यक्त की गई। योगी जी को इस पर चार साल से ज्यादा हो गए हैं। लेकिन चर्चाओं और अटकलों के बावजूद ब्राह्मणों में ना तो किसी भी तरह की असुरक्षा का भाव है और ना ही किसी की उपेक्षा और उत्पीड़न की कोई घटना सामने आई है। सियासत का मिजाज ऐसा है इसमें ना होए डर पैदा कर दिए जाते हैं और लोग उनका समाधान ढूंढ़ने में लग जाते हैं। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर क्षेत्र के रहने वाले कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद को बुधवार 9 जून 2021 को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने धमाकेदार ढंग से भाजपा में शामिल कराया है और मीडिया ने इस खबर को बहुत बड़ी सनसनी के रूप में पेश किया है। जितिन प्रसाद 2004 में शाहजहांपुर से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा के सदस्य चुने गए और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें वर्ष 2008 में इस्पात राज्यमंत्री बनाकर अपनी सरकार में शामिल किया।

वर्ष 2009 में शाहजहांपुर सीट का आरक्षण बदल जाने से जितिन प्रसाद ने पड़ौसी खीरी जिले की धोरहरा लोकसभा सीट से कांग्रेस टिकट पर 1 लाख 84 हजार 509 वोटों से शानदार जीत दर्ज की। जितिन प्रसाद को दूसरी अवधि में भी केंद्र में विभिन्न विभागों का मंत्री बनाया गया। जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद, गोविंद वल्लभ पंत, पं. कमलापति त्रिपाठी], नारायण दत्त तिवारी, हेमवती नंदन बहुगुणा की पंक्ति के नेताओं में शुमार रहे हैं। जितेंद्र प्रसाद का 2001 में निधन हो गया था। वह प्रधानमंत्री राजीव गांधी और प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार रहे। दिलचस्प है कि उन्होंने वर्ष 2000 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया गांधी को चुनौती दी थी और अपना राजनीतिक लोहा मनवाया था।

हार के बावजूद सोनिया ने उनको मना लिया और अपने साथ रखा। जितिन प्रसाद से पहले भाजपा विजयराज सिंधिया के लाड़ले पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाई थी और उनके जरिए मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन कराया। उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने सपा, बसपा, कांग्रेस तीनों दलों में जबरदस्त तोड़फोड़ की थी। योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में ही कई काबिना मंत्री जैसे बृजेश पाठक, स्वामी प्रसाद मौर्य, लक्ष्मी नारायण चौधरी, डा. धर्मसिंह सैनी, नंद गोपाल गुप्ता नंदी बसपा से आए हुए हैं। सहारनपुर जनपद के प्रदीप चौधरी कैराना लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद हैं। वह 2017 के विधानसभा चुनाव में गंगौह विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे। वह 2017 से पूर्व भाजपा में शामिल हुए थे तब वह कांग्रेस पार्टी के विधायक थे। उनके पिता मास्टर कंवरपाल सिंह ने अपने सियासी सफर की शुरूआत पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद के सहारे की थी और प्रदीप चौधरी ने भी 2017 से पहले की सारी राजनीतिक सफलता इमरान मसूद के सहारे अर्जित की। बेहट सीट से लड़े महावीर राणा और उनके भाई जगदीश राणा भी दूसरे दलों को छोड़कर भाजपा में आए थे। रामपुर मनिहारान के विधायक देवेंद्र निम का परिवार भी कुछ वर्ष पूर्व दूसरे दलों से भाजपा में शामिल हुआ था।

कहने का अर्थ यह है कि जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हुए हैं अब कुछ महीनों तक दूसरे दलों के प्रमुख नेताओं के भाजपा में आने की सिलसिला दिखाई देगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके अनुशांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद एवं बजरंग दल की गतिविधियां भी बढ़ गई हैं। सहारनपुर जिले के कस्बा बेहट में इन संगठनों ने एक छोटे से मामले को लेकर कांग्रेस विधायकों नरेश सैनी, मसूद अख्तर और उनके नेता कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव इमरान मसूद को सियासी शिकस्त देने का काम किया। बेहट के प्रशासन ने कस्बे के एक बाजार में एक परेशान दुकानदार की दिक्कत को देखते हुए दुकान के सामने का नल हटवा दिया था। कांग्रेस और उसके विधायक उस नल को पुनः उसी स्थान पर लगवाने पर अड़ गए तो समर्थित संगठन मुखर होकर सामने आ डटे।

प्रशासन के सामने कांग्रेस खेमे को नीचा देखना पड़ा और वे अपनी बात को मनवाने में नाकाम हो गए। संभवतः इस तरह की घटनाएं आगामी दिनों में शायद प्रदेशभर में देखने को मिले। इससे इतर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चेहरा दम-खम वाला नेतृत्व और लोगों को संतुष्ट करने वाला कामकाज भाजपा को पुनः ऐतिहासिक जीत दिलाने के लिए पर्याप्त है। लेकिन पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व 80 लोकसभा सीटों वाले बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को हल्के में लेने का जोखिम नहीं उठा सकता। उत्तर प्रदेश में 13 से 14 फीसद ब्राह्मण मतदाता हैं और 8 से 9 फीसद राजपूत हैं। 5 से 6 फीसद बनिया बिरादरी के मतदाता हैं और कुल मिलाकर सवर्ण मतदाताओं की हिस्सेदारी 33-34 फीसद बनती है और पिछड़ा वर्ग का भी बड़ा तबका भाजपा के साथ मजबूती के साथ जुड़ा हुआ है।

उत्तर प्रदेश में राजपूतों के दबदबे को इस तरह से देखा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में 14 राजपूत सांसद हैं और भाजपा के 325 में से 56 विधायक राजपूत हैं। ब्राह्मणों की नाराजगी का जो भ्रम उत्तर प्रदेश में फैलाया जा रहा है वह निर्मूल है। सीएसडीएस के मुताबिक ब्राह्मणों ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 72 फीसद वोट दिया और विधानसभा चुनाव 2017 में 80 फीसद वोट दिया। उस वक्त योगी आदित्यनाथ भाजपा के चेहरा नहीं थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर योगी आदित्यनाथ रहे तो ब्राह्मणों का मत प्रतिशत बढ़कर 83 फीसद हो गया। जाहिर है ब्राह्मणों को लेकर राजनीतिक हलकों में निर्मूल आशंकाएं फैलाई जा रही है। जाहिर है ऐसे लोग भाजपा के समर्थक नहीं हो सकते। इन पंक्तियों के लेखक ने विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत ब्राह्मणों से बातचीत कर उनका मत जानने की कोशिश की। किसी ने भी योगी को लेकर अपनी अप्रसन्नता नहीं जताई। सबका कहना था कि उत्तर प्रदेश के लोग अच्छे राजकाज और कानून व्यवस्था एवं विकास कार्यों से संतुष्ट हैं। किसी को भी लोगों को जातियों के खांचे में फिट कर स्थिति का विश्लेषण नहीं करना चाहिए।