सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसले में दाखिलों और सरकारी नौकरियों (Government Jobs) में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण (Reservations) का प्रावधान बरकरार रखा। 103वें संविधान संशोधन की वैधता को लेकर 2 के मुकाबले 3 मतों के बहुमत से सहमति बनी। EWS आरक्षण के दायरे में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के गरीब नहीं आएंगे। SC ने कहा कि यह भेदभाव वाला नहीं है और संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जे बी पारदीवाला ने कानून को बरकरार रखा, जबकि मुख्य न्यायाधीश ललित ने न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट के साथ इसके खिलाफ रुख रखा। चीफ जस्टिस इस दौरान अपने कार्यकाल के अंतिम दिन अदालत की कार्यवाही संचालन कर रहे थे। ललित ने कहा कि संशोधन के दायरे से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के गरीबों को बाहर रखना भेदभाव दर्शाता है जो कि संवैधानिक रूप से प्रतिबंधित है।
‘हम बहुमत के नजरिए से सहमत नहीं’
जस्टिस भट ने अपना और सीजेआई का फैसला खुद ही लिखा। इसे पढ़ते हुए उन्होंने कहा, ‘वह इस मामले में बहुमत के दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं। गणतंत्र के सात दशकों में पहली बार इस अदालत ने स्पष्ट रूप से बहिष्करण और भेदभावपूर्ण को मंजूरी दी है। हमारा संविधान बहिष्कार की भाषा नहीं बोलता है। मेरा मानना है कि यह संशोधन सामाजिक न्याय के ताने-बाने को कमजोर करता है।’
जस्टिस भट ने अपना अल्पमत का विचार व्यक्त करते हुए ईडब्ल्यूएस आरक्षण संबंधी संविधान संशोधन पर असहमति जताई। उन्होंने 103वें संशोधन कानून को इस आधार पर असंवैधानिक और अमान्य करार दिया कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है। प्रधान न्यायाधीश ललित ने न्यायमूर्ति भट के विचार से सहमति व्यक्त की।
कोर्ट में चार अलग-अलग फैसले पढ़े गए
न्यायाधीशों ने अदालत कक्ष में 35 मिनट से अधिक समय तक चार अलग-अलग फैसले पढ़े। जस्टिस माहेश्वरी ने अपना निर्णय पढ़ते हुए कहा कि 103वें संशोधन को संविधान के मूल ढांचे को भंग करने वाला नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि आरक्षण सकारात्मक कार्य करने का एक जरिया है ताकि समतावादी समाज के लक्ष्य की ओर सर्व समावेशी तरीके से आगे बढ़ा जा सके। यह किसी भी वंचित वर्ग या समूह के समावेश का एक साधन है।
जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस पारदीवाला ने उनके स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा कि केवल आर्थिक आधार पर दाखिलों और नौकरियों में आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। उन्होंने कहा कि 103वें संविधान संशोधन को ईडब्ल्यूएस के कल्याण के लिए उठाए गए संसद के सकारात्मक कदम के तौर पर देखना होगा। उन्होंने इन दलीलों पर भी समान रुख रखा कि मंडल मामले में फैसले के तहत कुल आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इसके कथित उल्लंघन से संविधान के बुनियादी ढांचे पर असर नहीं पड़ता।
हालांकि, जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि इस तरह के आरक्षण के लिए एक समय-सीमा तय करने की जरूरत है और ये हर समय जारी नहीं रह सकते। दोनों न्यायाधीशों ने कहा कि आरक्षण का मकसद सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है, लेकिन यह अनिश्चितकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए, ताकि यह निहित स्वार्थ न बन जाए।