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इलेक्शन कमीशन ने बिहार वोटर रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया

भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हलफनामा (affidavit) दायर कर कहा है कि बिहार (Bihar) में चल रही “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” (SIR) यानी विशेष गहन मतदाता सूची सुधार प्रक्रिया को लेकर जानबूझकर गलत अफवाहें फैलाई जा रही हैं. आयोग ने कहा है कि इस प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाएं वक्त से पहले दायर की गई हैं और फिलहाल इन पर विचार करने की ज़रूरत नहीं है.

ECI ने कहा कि जिन याचिकाओं के आधार पर कोर्ट में मामला लाया गया है, वे सिर्फ़ अखबारों की ख़बरों पर आधारित हैं, जो कि भरोसेमंद सबूत नहीं मानी जा सकतीं. आयोग ने यह भी आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने कई ज़रूरी तथ्य छुपा लिए हैं, जैसे कि उनकी अपनी पार्टियां इस प्रक्रिया में भाग ले रही हैं और बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) के ज़रिए सहयोग कर रही हैं.

आयोग ने हलफनामे में संविधान के अनुच्छेद 324 में प्रदत्त अधिकारों का हवाला देते हुए पूरी प्रक्रिया के सुसंगत और अधिकार क्षेत्र में किए जाने की दलील दी है. इसके अलावा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 21 (3) का भी हवाला दिया गया है.

कोर्ट के समय सीमा पर पूछे गए सवाल के जवाब में आयोग ने कहा है कि SIR के लिए आयोग की तय समय सीमा से दस दिन पहले ही 90 फीसदी से अधिक गणना फॉर्म जमा हो गए थे. चूंकि इस काम में लाख से ज्यादा बूथ लेवल अफसर और डेढ़ लाख से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट्स के साथ साथ करीब एक लाख स्वयंसेवक भी इस काम में जुटे हैं, लिहाजा अभी चार दिन शेष रहते फॉर्म भरकर जमा करने का 96 फीसदी से ज्यादा काम पूरा हो चुका है.

‘कुछ लोग गलत तरीके से पेश कर रहे हैं…’
कोर्ट में चुनाव आयोग का कहना है कि SIR प्रक्रिया का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी अपात्र व्यक्ति वोटर लिस्ट में शामिल न हो और कोई भी पात्र व्यक्ति इससे छूटे नहीं. आयोग ने कहा कि कुछ लोग इस प्रोसेस को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं, जिससे इसकी छवि खराब की जा सके.

ECI ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत आंकड़े पुराने हैं और मौजूदा स्थिति को नहीं दर्शाते. उनके मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने जानबूझकर ये तथ्य कोर्ट से छुपाए हैं कि उनके पास जो रिपोर्ट्स हैं, वे अधूरी हैं और पुराने आंकड़ों पर आधारित हैं. इसके अलावा, आयोग ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता जिन सियासी दलों से आते हैं, वे खुद भी इस प्रक्रिया में भाग ले रही हैं और ECI के साथ सहयोग कर रही हैं. ऐसे में कोर्ट के सामने यह तथ्य न बताना, जानबूझकर जानकारी छुपाने जैसा है.

चुनाव आयोग ने अपने अधिकारों की भी चर्चा की है. उसने कहा कि किसी शख्स का भारतीय नागरिक होना तय करने की शक्ति ECI को संविधान के अनुच्छेद 324 और 326 के तहत दी गई है. आयोग ने साफ किया कि संसद द्वारा बनाए गए कानून भी इन अधिकारों को खत्म नहीं कर सकते.

ECI ने यह भी साफ किया कि आधार कार्ड को उन 11 दस्तावेज़ों की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है, जो वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए मांगे गए हैं, क्योंकि आधार सिर्फ नागरिकता की पुष्टि नहीं करता. लेकिन आधार अन्य दस्तावेज़ों के साथ मिलकर मदद कर सकता है.

7.11 लोगों ने जाम किए फॉर्म
अब तक बिहार में कुल 7.89 करोड़ मतदाताओं में से करीब 7.11 करोड़ लोगों ने फॉर्म जमा कर दिए हैं. यह संख्या कुल मतदाताओं का 90.12% है. मर चुके, दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो चुके और दो जगहों पर नाम दर्ज लोगों को मिलाकर यह कवरेज 94.68% तक पहुंच गई है. केवल 0.01% लोग ही हैं, जिन्हें कई बार की कोशिश के बाद भी नहीं खोजा जा सका. 18 जुलाई 2025 तक केवल 5.2% मतदाता बचे हैं जिन्होंने अब तक फॉर्म नहीं भरा है.

ECI ने यह भी कहा कि 2003 की वोटर लिस्ट में जिन लोगों के नाम पहले से हैं, वे पहले ही सत्यापन प्रक्रिया से गुजर चुके हैं, इसलिए नए लोगों की तरह उन्हें फिर से दस्तावेज़ देने की जरूरत नहीं है.

चुनाव आयोग ने दावा किया कि पहली बार इतने बड़े स्तर पर सभी राजनीतिक पार्टियां इस प्रक्रिया में भाग ले रही हैं और उन्होंने 1.5 लाख से ज़्यादा बूथ लेवल एजेंट नियुक्त किए हैं, जो बूथ अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. जो लोग यह कह रहे हैं कि मतदाता घोषणा फॉर्म में नागरिकता से जुड़ी जानकारी मांगना संविधान के अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है, ECI ने उन्हें गलत बताया.

आयोग का कहना है कि नागरिकता संबंधी जानकारी मांगना पूरी तरह वैधानिक है क्योंकि यह नागरिकता अधिनियम 1955 के सेक्शन 3 के मुताबिक़ है. ECI ने कहा कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने की प्रक्रिया में किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग या नस्ल के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा. सभी पात्र लोगों को समान अवसर दिया जा रहा है.

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हर मौजूदा मतदाता को घर जाकर प्री-फिल्ड फॉर्म दिया गया है और उनसे जरूरी दस्तावेज़ मांगे गए हैं. किसी के साथ कोई भेदभाव या कठिनाई नहीं की गई है.