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BJP से निपटने का विपक्ष ने बनाया ‘मास्टरप्लान’, 2024 चुनाव को लेकर जून में होगा बड़ा ऐलान

2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब बस एक साल का वक्त बचा है. ऐसे में विपक्ष ने अभी से भी तैयारियां शुरू कर दी हैं. बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ कई सारे क्षेत्रीय दल आते हुए दिखाई दे रहे हैं. इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन देखने को मिलने वाला है. कांग्रेस और उसके साथ आ रहे क्षेत्रीय दलों ने बीजेपी को हराने के लिए एक बड़ा ‘मास्टरप्लान’ बनाया है, जिसका सीधा असर लोकसभा की 500 सीटों पर देखने को मिलने वाला है.

दरअसल, कांग्रेस और उसके क्षेत्रीय सहयोगी दलों ने 2024 के चुनाव में 500 से अधिक सीटों पर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवारों के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार उतारने का प्लान बनाया है. कांग्रेस और क्षेत्रीय सहयोगियों द्वारा ‘एक के खिलाफ एक’ उम्मीदवार का प्लान प्रस्तावित किया गया है. यानी की हर एक सीट पर विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार होगा. लेकिन इसके लिए एक बड़ा विपक्षी मोर्चा भी बनाना होगा. बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन के अंदरूनी सूत्रों ने इसकी जानकारी दी है.

नीतीश कुमार ने बनाई है ये रणनीति

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में बीजेपी विरोधी पार्टियों को एकजुट करने के अभियान के तहत कांग्रेस के टॉप नेताओं के साथ मुलाकात की. साथ ही उन्होंने क्षेत्रीय दलों के नेताओं संग भी बैठक की. इस दौरान हुई बैठकों के समय ही उन्होंने इस रणनीति की जानकारी दी. विपक्षी एकता को बढ़ाने के लिए नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से दिल्ली में मुलाकात की.

कौन होगा प्रधानमंत्री पद का दावेदार?

मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि गठबंधन को तैयार करने के लिए विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों के बीच कई दौर की बातचीत हुई है. इसमें प्रस्तावित मोर्चा किस तरह का होगा और क्या अहम पद होंगे, इसे लेकर चर्चा हुई है. नए गठबंधन में एक संयोजक और एक अध्यक्ष देखने को मिल सकता है. इस बात की पूरी संभावना है कि जो व्यक्ति संयोजक की भूमिका निभाएगा, उसे ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जाएगा. इसका ऐलान जून तक किया जा सकता है.

महागठबंधन के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि नए मोर्चे के अध्यक्ष के पास कुछ फैसलों को लेने की शक्ति होंगे, मगर वह एक प्रतीकात्मक प्रमुख के तौर पर काम करेगा. इसी तरह का प्रयोग 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) और 1977 में जनता पार्टी की सरकार के गठन के समय भी किया गया था. मई के मध्य में शीर्ष क्षेत्रीय दलों के साथ कई दौर की बैठक के बाद नया मोर्चा जून तक सामने आएगा.

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