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Ayodhya: मंदिर के गर्भगृह में विराजे प्रभु श्रीराम, सामने आई मूर्ति की पहली तस्वीर

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ramlala’s life prestige) का विधिवत कर्मकांड बृहस्पतिवार को गणेश पूजन के साथ शुरू हो गया। शुभ मुहूर्त में दोपहर 1:20 बजे गणेश, अंबिका और तीर्थ पूजा की गई। इससे पहले 12:30 बजे रामलला की अचल मूर्ति (Immovable statue of Ramlala) को आसन पर वैदिक मंत्रोच्चार (Vedic chanting) के बीच विराजित कराया गया। पहले दिन करीब सात घंटे तक पूजन चला। मुख्य यजमान अशोक सिंहल फाउंडेशन (Ashok Sinhal Foundation President) के अध्यक्ष महेश भागचंदका (Mahesh Bhagchandka) रहे।

काशी के आचार्य गणेश्वर द्रविड़ और आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित के निर्देशन में पूजन प्रक्रिया संपन्न कराई जा रही है। रामलला के अचल विग्रह को अभी ढक कर रखा गया है। आवरण 20 जनवरी को हटाया जाएगा। बृहस्पतिवार को ढकी मूर्ति का ही पूजन किया गया। रामलला के अचल विग्रह, गर्भगृह स्थल और यज्ञमंडप का पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किया गया। पूजन के क्रम में ही राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला का जलाधिवास व गंधाधिवास हुआ।

उधर, रामलला के नवनिर्मित मंदिर में अचल विग्रह की स्थापना के साथ विराजमान रामलला को भी पूजित-प्रतिष्ठित किया जाएगा। राममंदिर के गर्भगृह में सोने के सिंहासन पर रामलला की 51 इंच की अचल मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है। उनके सिंहासन के ठीक आगे विराजमान रामलला स्थापित होंगे। वे मंदिर में चल मूर्ति यानी उत्सव मूर्ति के रूप में पूजित होंगे।

विराजमान रामलला की उपेक्षा के उठ रहे सवाल पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने साफ कहा है कि विराजमान रामलला मुकदमा जीते हैं। उन्हें कैसे हटाया जा सकता है नवनिर्मित गर्भगृह में वे भी प्रतिष्ठित किए जाएंगे। अचल विग्रह के ठीक आगे सिंहासन पर उन्हें भाइयों समेत विराजमान किया जाएगा। रोजाना उनकी पूजा, आरती होगी। अचल मूर्ति स्थापित होने के बाद हिल नहीं सकेगी, इसलिए विराजमान रामलला उत्सव मूर्ति के रूप में यहां प्रतिष्ठित रहेंगे। पर्व व त्योहारों पर इसी उत्सव मूर्ति के साथ शोभायात्रा भी निकाली जाएगी।

चंपत राय ने बताया कि विराजमान रामलला आकार में बहुत छोटे हैं, ऐसे में भक्तों को ठीक से भगवान के दर्शन नहीं हो पाते थे। भक्तों की भावना को देखते हुए एक बड़ी मूर्ति बनाने का निर्णय लिया गया, ताकि रामलला के मुख मंडल का दर्शन भक्त ठीक तरह से कर पाएं। अचल मूर्ति 51 इंच की है। इसे चार फीट ऊंचे सिंहासन पर विराजमान किया जाएगा। इस तरह मूर्ति की कुल ऊंचाई करीब आठ फीट हो जाएगी। ऐसे में भक्त को सुलभ दर्शन प्राप्त हो सकेंगे।

मात्र छह इंच की है विराजमान रामलला की मूर्ति
अस्थायी मंदिर में रामलला चारों भाइयों समेत विराजमान हैं। विराजमान रामलला की मूर्ति मात्र छह इंच की है। रामलला इस मूर्ति में एक हाथ में लड्डू लिए हुए घुटने के बल पर बैठे हैं। भरत की मूर्ति भी छह इंच की है, जबकि लक्ष्मण व शत्रुह्न की मूर्ति तो मात्र तीन-तीन इंच की है। गर्भगृह में हनुमान की भी दो मूर्तियां हैं, इनमें से एक मूर्ति पांच इंच की है। एक बड़ी मूर्ति लगभग तीन फीट की है।

यह है अधिवास
अधिवास वह प्रक्रिया है जिसमें मूर्ति को विभिन्न सामग्रियों में कुछ समय तक के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि मूर्ति पर शिल्पकार के औजारों से आई चोट इससे ठीक हो जाती है। तमाम दोष खत्म हो जाते हैं। इसी क्रम में जलाधिवास के तहत अचल विग्रह को शास्त्रीय विधि से जल में रखा गया। शाम के समय गंधाधिवास हुआ। इसमें श्रीराम की मूर्ति पर सुगंधित द्रव्यों का लेपन किया गया। अनुष्ठान के क्रम में ही यज्ञमंडप की भी पूजा हुई।

वेदों का पारायण 21 को
मंडपपूजा के क्रम में मंदिर के तोरण, द्वार, ध्वज, आयुध, पताका, दिक्पाल, द्वारपाल की पूजा की गई। वहीं, पांच वैदिक आचार्यों ने अनुष्ठान की कड़ी में ही चारों वेदों का पारायण भी शुरू कर दिया है, जिनका पारायण 21 जनवरी को होगा।

अरणिमंथन से आज प्रकट होगी अग्नि
शुक्रवार सुबह 9 बजे अरणिमंथन से अग्नि प्रकट होगी। उसके पूर्व गणपति आदि स्थापित देवताओं का पूजन, द्वारपालों द्वारा सभी शाखाओं का वेदपारायण, देवप्रबोधन, औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, कुंडपूजन, पञ्चभूसंस्कार होगा। अरणिमंथन द्वारा प्रकट हुई अग्नि की कुंड में स्थापना, ग्रहस्थापन, असंख्यात रुद्रपीठस्थापन व प्रधानदेवतास्थापन होगा। इसके अलावा राजाराम, भद्र, श्रीरामयंत्र, बीठदेवता, अङ्गदेवता, आवरणदेवता, महापूजा, वारुणमंडल, योगिनीमंडलस्थापन, क्षेत्रपालमंडलस्थापन, ग्रहहोम, स्थाप्यदेवहोम, प्रासाद वास्तुशांति, धान्याधिवास सायंकालिक पूजन एवं आरती होगी।