रिपोर्ट : कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)- सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू का भाजपा में जाना इस बात का साफ संकेत है कि कहीं न कहीं अखिलेश यादव अपने परिवार को एकजुट करने के मामले में असफल साबित हुए हैं? उन्हें इस दिशा में मुलायम बनना ही होगा! वहीं नई- नई भाजपाई बनी अर्पणा यादव अपना घर- परिवार छोड़कर एक तरह से पूर्व मंत्री मेनका गांधी की राह पर चल पड़ी है? जबकि बेबस सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव यदुवंश को इस तरह बिखरते हुए देखने को बस विवश नजर आ रहे हैं! उधर सपाइयों का दावा है कि अर्पणा यादव के भाजपा में जाने से सपा पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा?
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अर्पणा यादव ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। उन्होंने भाजपाई बनते हुए कहा कि वह राष्ट्रवाद के लिए भाजपा में आई हैं। उन्होंने बताया कि भाजपा से वह बहुत दिनों से प्रभावित रही हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यों से भी उन्हें प्रेरणा मिली है। जाहिर है कि अब अर्पणा यादव ऐसे उवाच भाजपा के पक्ष में प्रदेश में देती नजर आएंगी!
उत्तर प्रदेश का अपना बड़ा राजनीतिक घराना अथवा घर छोड़कर मुख्य राजनीतिक दुश्मन दल में सैनिक की भूमिका में जा खड़ी अर्पणा यादव का भाजपा में आगे भविष्य क्या होगा! इसके लिए तो अभी आने वाले समय का इंतजार करना होगा? लेकिन यह जरूर है कि वह भाजपा में जाकर कहीं न कहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी जी की राह पर चल पड़ी है?
मुलायम सिंह यादव के परिवार में मचा हुआ घमासान इधर बीच कई वर्षों से थमने का नाम नहीं ले रहा है? इससे पहले सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने अखिलेश यादव एवं उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच में मचे महासंग्राम को पूरे देश व प्रदेश ने अपनी नंगी आंखों से देखा है! एक मंच पर मुलायम सिंह यादव के मौजूद रहने के बावजूद भी जिस तरह से चाचा- भतीजे के बीच में रिश्तो का कत्ल हुआ था उसे समाजवादी शायद कभी भूल पाए? यह अलग बात है कि कई वर्षों बाद अब चाचा -भतीजे एक सुर में भाजपा को प्रदेश की सत्ता से हटाने के लिए एक साथ नजर आ रहे हैं! लेकिन यहां भी असंतोष की चर्चाएं हैं?
वर्तमान में अपर्णा यादव ने भी अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को तिलांजलि देकर भाजपा का आंचल थामा है! खबरें यह भी हैं कि मुलायम सिंह यादव के कई रिश्तेदार भी भाजपा में जा चुके हैं? अर्थात ये सारी घटनाएं इस बात का संकेत देती है कि कहीं न कहीं अखिलेश यादव अपने परिवार को एकजुट करने के मामले में असफल हुए हैं? उन्हें इसे आगे रोकने के लिए मुलायम बनना ही पड़ेगा!
सनद हो कि मुलायम सिंह यादव ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में समाजवादी पार्टी का गठन करते हुए अपने परिवार को हमेशा एकजुट रखा और सत्ता पर बार-बार आसीन भी होते रहे। ऐसे में यदि आज मुलायम परिवार बिखर रहा है तो उसको संभालने की जिम्मेदारी अखिलेश यादव पर ही है? क्योंकि ऐसी घटनाएं अखिलेश यादव के राजनैतिक रथ की गति को गौण कर देती हैं! जहां तक सवाल है अर्पणा यादव का तो उनका सियासी तौर पर सपा व अपने घर- परिवार को छोड़ना उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी हो सकता है!
समाजवादी पार्टी ने उन्हें कैंट लखनऊ से विधानसभा का चुनाव लड़ाया था। लेकिन वह चुनाव हार गई थी। ऐसे में अब जब प्रदेश में भाजपा एवं सपा के बीच में सीधे महासंग्राम जारी है! इस घड़ी में अपने परिवार को छोड़कर सपा के शत्रु दल के साथ जाकर वहां राष्ट्रवाद की बात करती अर्पणा आश्चर्यचकित तो जरूर करती हैं?
अर्पणा यादव यदि सपा मे रहती तो समाजवादी पार्टी एवं अन्य नागरिकों में उनकी एक समर्पित बहू की छवि जरूर बनी रहती? लेकिन आज जब पूरे यादव परिवार अथवा सपा परिवार को एकजुट होने की जरूरत है ऐसे में उनका अपनी जेठ अखिलेश यादव को छोड़ना कहीं ना कहीं बहुत कारणों को संकेत देता है?
वैसे बीच-बीच में खबरें हमेशा आती रही हैं कि मुलायम सिंह यादव के परिवार में लगातार कुछ न कुछ गड़बड़ होता रहा है? लेकिन इसे ठीक करने के प्रयास परिवारिक स्तर पर शायद ठीक से नहीं हुए और उसकी परिणिति यह हुई कि अर्पणा यादव आज भाजपा में जाकर अर्पण हो गई!
भाजपा का यह प्रयास रहेगा कि वह अर्पणा यादव के भाजपा में शामिल होने को जोर से प्रचारित करें। प्रदेश के विधानसभा चुनाव में या आगे भाजपा अर्पणा यादव को कितना महत्व देगी इसके लिए समय का इंतजार करना होगा।
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव जिन्हें लोहा इरादों व अपने परिवार एवं रिश्तेदारों को एक रथ पर सवार रखने के लिए भी जाना जाता है! वर्तमान परिस्थिति मुलायम सिंह यादव के हृदय को वेध रही होगी? अर्थात बेबस मुलायम सिंह यादव भीष्म पितामह की तरह यदुवंश को बिखरते हुए देखने को बस विवश नजर आ रहे हैं!
समाजवादी पार्टी के कुछ लोग अर्पणा यादव एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच रिश्ते की दुहाई दे रहे हैं ?लेकिन कड़वा सच यही है कि अर्पणा यादव केवल और केवल मुलायम सिंह यादव के परिवार की बहू है। अर्पणा यादव का भाजपा में जाना समाजवादी पार्टी को सियासी कटघरे में जरूर खड़ा करेगा। भाजपा इसका कोई भी मौका नहीं छोड़ेगी। यही नहीं बसपा तथा कांग्रेस इस पर हमलावर रहेंगे। सपाइयों ने इसकी काट भी प्रारंभ कर दी है।
अर्पणा यादव ने कहा कि वह राष्ट्र की आराधना एवं देश व धर्म की रक्षा के लिए भाजपा के में आई हैं। लेकिन सत्य यह भी है कि उन्होंने भी कहीं ना कहीं अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिए ऐसे कई धर्मो की आहुति दी है जिससे यादव परिवार का आहत होना लाजमी है? इस दिशा में उन्हें अपने पिता मुलायम सिंह यादव के सिद्धांतों को आत्मसात करना होगा।
खबरें हैं कि शिवपाल यादव अखिलेश यादव से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हैं? आगे कोई दूसरा राजनीतिक धमाका ना हो इसको रोकने की जिम्मेदारी भी अखिलेश यादव की है! अर्पणा यादव ने ग्रह कलेश के चलते यादव परिवार से अलग अपनी राजनीतिक राह बनाई? यह भी चिंता व मंथन का विषय है!
भाजपा ने अभी बीते समय में अपनी सरकार के कई मंत्रियों के सपा में जाने को लेकर जो दर्द झेला है! उस दर्द का उसने सटीक ढंग से उपचार भी कर दिया है ।अर्थात स्वामी प्रसाद मौर्या, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी को सपा में शामिल कराकर सपा ने जो नहला मारा था! उस पर भाजपा ने अखिलेश यादव के परिवार में सेंध लगाकर दहला मार दिया है?
भाजपा इस उपलब्धि से गदगद है। अर्पणा का भाजपा में जाना! कहीं न कहीं अखिलेश यादव के द्वारा परिवार की एकजुटता पर लगने वाली अक्ल पर झटका है? जिसे भले ही ऊपरी तौर पर अखिलेश यादव ना जाहिर करें लेकिन अंदरूनी तौर पर उन्हें इसका आघात जरूर पहुंचा होगा? ऐसी स्थिति में पार्टी व परिवार को एकजुट करने के लिए अखिलेश यादव को मुलायम तो बनना ही होगा?