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आखिर विवेकानंद पाण्डेय पर कब जागेगा भाजपा का विवेक?

रिपोर्ट : कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)-

कद्दावर भाजपा नेता की अगली भूमिका पर जमी है समर्थकों व जिले की निगाहें

क्या भविष्य में विवेकानंद को स्थानीय निकाय विधान परिषद सदस्य पद पर लड़ा भाजपा निभाएगी राजनीतिक धर्म?

बाराबंकी के कद्दावर नेता एवं भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य विवेकानंद पाण्डेय उर्फ विवेक पाण्डेय को लेकर भाजपा नेतृत्व क्या मंथन कर रहा है? श्री पांडे की अगली राजनीतिक भूमिका क्या होगी? इस पर उनके समर्थकों सहित पूरे जिले की निगाहें जमी हुई है। चर्चा है कि क्या भाजपा उन्हें संगठन अथवा सरकार में मौका देगी! या फिर भविष्य में स्थानीय निकाय विधान परिषद सदस्य के पद पर उन्हें आजमा कर अपना राजनीतिक धर्म निभाएगी?

दरियाबाद विधानसभा में धमाकेदार राजनीतिक एंट्री करके ब्लॉक प्रमुख के पद पर डेढ़ दशक से ज्यादा रहने एवं पूर्व के 2 विधानसभा चुनाव में जोरदार लड़ाई लड़ चुके भाजपा नेता विवेकानंद पांडे उर्फ विवेक पांडे की अगली राजनीतिक भूमिका को लेकर दरियाबाद सहित जनपद में चर्चाओं का बाजार गर्म हो चला है। हनकदार व धमकदार राजनीति के प्रणेता विवेकानंद पांडे ने जब से राजनीति में पैर रखा है उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा है। भले ही चुनाव लड़ने के दौरान उनका दुर्भाग्य आगे आया हो लेकिन फिर भी उन्होंने हर कदम पर अपने वोटों का मत प्रतिशत हमेशा ही बढ़ाया है। श्री पांडे राजनीत में हिसाब किताब बराबर रखने वाले नेता माने जाते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वह नुकसान का जवाब नुकसान से देते हैं और वफादारी का जवाब वफादारी से देते हैं। दो बार बसपा से विधानसभा का जोरदार चुनाव लड़ चुके विवेकानंद पांडे उससे पूर्व भाजपा के समर्थक के रूप में कई बार ब्लॉक प्रमुख भी रहे हैं। इधर जब उनकी अपने पुराने घर भाजपा में एंट्री हुई तब राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा था कि उनका टिकट पक्का है! यही वजह है कि वह भाजपा में आए हैं? लेकिन राजनीति में सब कुछ निश्चित नहीं रहता जिसका परिणाम यह निकला कि दरियाबाद विधानसभा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले युवा सतीश शर्मा को टिकट दिया गया। श्री शर्मा ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की। उधर दूसरी तरफ विवेक पांडे भाजपा की राजनीति में रमे रहे। आज भी वह पार्टी के कार्यक्रमों में सक्रिय दिखाई देते हैं।

फक्कड़ स्वभाव के इस नेता को दरियाबाद के लोग दमदारी के लिए पसंद करते हैं। राजनीति में ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने अपने विरोधियों को सामने ताल ठोक कर चुनौती दी ।यह अलग बात है कि जब उन्हें विधानसभा चुनाव में मौका मिला तो शायद उनका यह दुर्भाग्य था कि वह उसमें सफल नहीं हो पाए। लेकिन उनकी लोकप्रियता जरूर बढ़ती गई ।भाजपा ने विधानसभा के संपन्न हुए चुनाव में अथवा लोकसभा के चुनाव में इसका फायदा भी उठाया।

अति विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक भाजपाई राजनीतिक हलकों में चर्चा के दौरान पता चला कि विवेकानंद पांडे की बेबाकी एवं उनकी तेज राजनीति से भाजपा के कई स्थापित नेता भयभीत हैं? दावा है कि भाजपा में ही ऐसे कई नेता हैं जो यह नहीं चाहते कि विवेकानंद पांडे भाजपा की राजनीति में किसी संवैधानिक पद पर पहुंचे! क्योंकि विवेकानंद पांडे को पद मिलने के बाद जहां उनका राजनीतिक सितारा और तेजी से बुलंद होगा वहीं कई दूसरे उनके समकक्ष भाजपा नेताओं का सितारा धूमिल भी हो सकता है? चर्चा तो यह भी होती है कि वह भाजपा के कई बड़े नेताओं की आंखों में कांटा भी बने हुए हैं? फिलहाल यह अलग बात है कि श्री पांडे सभी को साथ लेकर चलने की बात करते हैं और पार्टी संगठन आदेश को ही हमेशा अंतिम आदेश मानते हैं। यह इस बात का भी परिचायक है कि उन्होंने टिकट कटने के बाद से लगाकर आज तक पार्टी ने जो भी निर्देश दिया उसका उन्होंने सौ फ़ीसदी परिणाम भी दिया।

दरियाबाद से लगाकर बाराबंकी जनपद में जहां भी विवेक पांडे के समर्थक है एवं क्षेत्र में कई स्थानों पर की गई वार्ता में एक बात उभरकर सामने आई है। वह यह है कि उनके समर्थक अब अधीर होने लगे हैं !विवेकानंद पांडे के समर्थकों का मानना है कि भाजपा उनके नेता के लिए अगली भूमिका क्या तैयार कर रही है? इसका अब खुलासा हो जाना चाहिए। कईयों ने तो यहां तक कहा कि आने वाले दिनों में जब स्थानीय निकाय विधान परिषद सदस्य का चुनाव होगा क्या भाजपा विवेकानंद पांडे को वह चुनाव लड़ा कर अपना राजनीतिक धर्म निभाएगी? या फिर उस समय भी विवेकानंद पांडे के भाजपाई विरोधी अपनी मुहिम में कामयाब हो जाएंगे? समर्थक साफ कहते हैं कि हमारे नेता विवेकानंद पांडे पीठ पर वार नहीं करते और ना ही वह किसी की चापलूसी करते हैं! जो बात सही होती है उसे डंके की चोट पर कहते हैं और शायद आज की राजनीति में यह गुण अवगुण बन गया है?

सनद हो कि विवेकानंद पांडे सपा शासनकाल में हुए ब्लाक प्रमुख के चुनाव को भूले नहीं थे! इसलिए जब भाजपा की सरकार आई तब उन्होंने इसकी दमदार भरपाई भी कर डाली! यह अलग बात थी इस दौरान उन्होंने इस पर कतई ध्यान नहीं दिया कि कौन उनके साथ खड़ा है और कौन नहीं।

साफ है कि भाजपा नेता विवेकानंद पांडे पर भाजपा का विवेक कब जागेगा? इस पर भाजपा मंथन क्या कर रही है? इसकी आहट के लिए जहां उनके समर्थक परेशान हैं! वहीं कई वरिष्ठ भाजपाइयों की निगाहें भी इस पर लगी हुई हैं? यदि भाजपा उन्हें आगे चलकर संगठन अथवा सरकार या फिर भविष्य गत होने वाले स्थानीय निकाय विधान परिषद के चुनाव में मौका देती है तो यह भाजपा का अच्छा राजनीतिक धर्म निर्वाहन ही माना जाएगा! सूत्रों का कहना है कि बसपा में धमाकेदार चुनाव लड़ चुके विवेकानंद पांडे भाजपा में तब ही आए थे जब भाजपा नेतृत्व ने उनके टिकट को लेकर हरी झंडी दी थी? जाहिर है कि बसपा छोड़कर भाजपा में आए विवेकानंद पांडे को ना यहां अभी तक राम मिले हैं और ना मिले हैं रहीम? ऐसे में विवेकानंद पांडे पर भाजपा नेतृत्व का विवेक कब जागेगा इसे लेकर बाराबंकी जनपद में चिंतन मंथन का दौर प्रारंभ है?