दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कन्यादान किसी भी हिन्दू पिता के लिए एक पवित्र जिम्मेदारी है और वह इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता है. जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने एक पारिवारिक विवाद की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की.
कोर्ट ने कहा कि कोई पिता अपनी अविवाहित बेटियों की जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता है. उनका भरण-पोषण और देखभाल करना यहां तक कि उनकी शिक्षा और शादी का खर्च भी पिता की जिम्मेदारी है. कोर्ट ने एक पिता को अपनी दो बेटियों की शादी के लिए 85 लाख रुपये देने का निर्देश दिया.
दरअसल तीस हजारी कोर्ट की फैमिली कोर्ट ने एक महिला की तलाक याचिका को तो मंजूर कर ली, लेकिन महिला और उसकी दो बालिग बेटियों को गुजारा का आदेश देने से इनकार कर दिया था. फैमिली कोर्ट के आदेश को महिला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. महिला ने अपने पति पर क्रूरता करने का आरोप लगाते हुए तलाक मांगा था.
सुनवाई के दौरान महिला के पति ने दलील दी कि उसके सभी बच्चे बालिग हैं. ऐसे में हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 24, 25 और 26 के तहत वो मुआवजा देने को बाध्य नहीं है.
महिला के पति ने कहा कि हिन्दू अडाप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट की धारा 20 के तहत केवल बेरोजगाह और आश्रित बेटियों को ही मुआवजा दिया जा सकता है. कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि हिन्दू अडाप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट की धारा 20 उन्हीं बच्चों या विकलांग माता-पिता को दी जा सकती है जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं.
कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान में ऐसा कहीं नहीं है कि जो अपना भरण-पोषण नहीं कर सकता है वे नहीं कमाने वालों की श्रेणी में आते हैं. कोई कमाने वाला भी जरूरी नहीं कि खुद अपना भरण पोषण कर सके. कोर्ट ने कहा कि अविवाहित बेटियों अगर कहीं नौकरी कर रही हैं तो इसका ये मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि वे अपने विवाह का खर्च भी जुटा लें और विवाह के खर्च की तुलना माता-पिता के स्टेटस से की जाएगी.