केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार अगले छह से आठ महीनों के भीतर सभी वाहन निर्माताओं से यूरो VI उत्सर्जन मानदंडों के तहत फ्लेक्स-फ्यूल इंजन बनाने के लिए कहेगी। जो कि गैसोलीन और मेथनॉल या इथेनॉल के संयोजन से बना एक वैकल्पिक ईंधन है। एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, गडकरी ने आगे कहा कि अगले 15 वर्षों में भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग 15 लाख करोड़ रुपये का होगा। उन्होंने आगे कहा कि “हम यूरो IV उत्सर्जन मानदंडों के तहत फ्लेक्स-ईंधन इंजनों के निर्माण की अनुमति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा प्रस्तुत करने की योजना बना रहे थे … लेकिन अब मुझे लगता है कि हम सभी वाहन निर्माताओं से फ्लेक्स-ईंधन इंजन (जो चल सकते हैं) अगले 6-8 महीनों में यूरो VI उत्सर्जन मानदंडों के तहत तैयार करने के लिए कह सकते हैं।
क्या है Flex Fuel?
फ्लेक्स ईंधन गैसोलीन और मेथनॉल या इथेनॉल के संयोजन से बना एक वैकल्पिक ईंधन है। फ्लेक्स-फ्यूल वाहन वे होते हैं जिनमें एक से अधिक प्रकार के ईंधन पर चलने के लिए डिज़ाइन किए गए इंजन होते हैं। बता दें, यह तकनीक नई नहीं है। इसे पहली बार 1990 के दशक की शुरुआत में विकसित किया गया था और 1994 में बड़े पैमाने पर उत्पादित फोर्ड टॉरस में इस्तेमाल किया गया था। 2017 तक, सड़क पर लगभग 21 मिलियन फ्लेक्स-फ्यूल वाहन थे।
गडकरी ने दावा किया कि सभी वाहन निर्माताओं के लिए फ्लेक्स-फ्यूल इंजन बनाना अनिवार्य करने के बाद वाहनों की लागत नहीं बढ़ेगी। वहीं आने वाले दिनों में भारत हरित हाइड्रोजन का निर्यात करने में भी सक्षम होगा। बता दें, सरकार ने जनवरी, 2016 में पेट्रोल और डीजल के लिए यूरो IV उत्सर्जन मानदंडों से सीधे यूरो VI मानकों तक का सफर तय करने का फैसला किया था। बता दें, प्रदुषण मुक्त भारत करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।