कांग्रेस नेता राहुल गांधी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ कन्हैया कुमार की मुलाकात ने बिहार की राजनीति में अटकलों का दौर शुरू कर दिया है। इस मुलाकात से इस बात के कयास भी लगाए जा रहे हैं कि कन्हैया कुमार वामदलों की राजनीति को छोड़कर कांग्रेस का हिस्सा हो सकते हैं। कहा जा रहा है कि कन्हैया कुमार को कांग्रेस में लाने की सलाह पीके ने पार्टी लीडरशिप को दी है। सूत्रों की माने तो राहुल गांधी से कन्हैया कुमार की मुलाकात भी हो चुकी है।
प्रशांत किशोर की राय है कि पुराने नेताओं का जलवा खत्म होने और नई पीढ़ी में कोई कद्दावर नेता न होने की भरपाई कन्हैया की एंट्री से की जा सकती है। कन्हैया कुमार बीते डेढ़ सालों से सीपीआई में भी सक्रिय नहीं हैं। इससे भी इन अटकलों को बल मिला है। हालांकि कन्हैया कुमार के कांग्रेस में संभावित एंट्री को लेकर बिहार कांग्रेस का कोई भी नेता कुछ भी खुलकर बोलने से परहेज कर रहा है। माना जा रहा है कि कई नेता उनकी संभावित एंट्री से खुद को असहज महसूस कर रहे हैं।
सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक, कन्हैया कुमार के संबंध उनकी ही पार्टी के बड़े नेताओं से अच्छे नहीं हैं। हैदराबाद में हुई सीपीआई की एक बैठक में तो अनुशानहीता का आरोप लगाकर उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया गया था। इसी घटना के बाद कन्हैया कुमार ने पार्टी मुख्यालय का अपना दफ्तर भी खाली कर दिया। कुछ लोगों का मानना है कि कम उम्र में उनकी लोकप्रियता ने बड़े नेताओं को असहज कर दिया है। बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी, जिसने करीब डेढ़ दशक तक बिहार की गद्दी पर राज किया है, की कमान इन दिनों तेजस्वी यादव संभाले हुए हैं। वहीं, चिराग पासवान भी अपने पिता की विरासत यानी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) की कमान अपने चाचा पशुपति पारस के हाथों में जाने से रोकने के लिए पूरी महेनत कर रहे हैं। इन दोनों युवा नेतृत्व के बाद बिहार में कन्हैया कुमार को अगर बिहार का तीसरा सबसे बड़ा युवा नेता कहा जाए तो गलत नहीं होगा। जेएनयू कांड के बाद से देश और दुनिया की मीडिया में छाने वाले कन्हैया कुमार ने विधानसभा चुनाव से पहले पूरे बिहार में बड़ी-बड़ी रैली की थी। भारी संख्या में लोग उन्हें सुनने के लिए पहुंचते थे। हालांकि कई जगहों पर उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा था।
कन्हैया कुमार को उनकी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘पूरब के लेनिनग्राद’ के नाम से मशहूर बेगूसराय सीट से उम्मीदवार बनाया था, जहां से भारती जनता पार्टी (BJP) ने अपने फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह को अखाड़े में उतारा था। इस चुनाव में कन्हैया कुमार ने खुद को बेगूसराय का बेटा बताकर लोट मांगा। हालांकि उन्हें निराशा हाथ लगी थी। गिरिराज सिंह ने उन्हें 4 लाख 20 हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी थी।