देश में पहली बार कोई प्राईवेट कंपनी एयरक्राफ्ट बनाने जा रही है. बुधवार को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी यानि सीसीएस ने वायुसेना के लिए 56 ‘सी-295एमडब्लू’ मालवाहक विमानों की खरीद के लिए मंजूरी दे दी. इसके तहत, 16 विमान सीधे यूरोप की बड़ी एविएशन कंपनी, एयरबस-डिफेंस से खरीदे जाएंगे और बाकी 40 एयरक्राफ्ट एयरबस-डिफेंस भारत में ही टाटा कंपनी के साथ मिलकर निर्माण करेगी. सी-295 मीडियम-वेट मालवाहक विमान हैं जो भारतीय वायुसेना के पुराने पड़ चुके एवरो एयरक्राफ्ट की जगह लेंगे. सी-295 एयरक्राफ्ट 5-10 टन का पेयलोड ले जा सकता है और करीब 11 घंटे तक उड़ान भर सकता है. एयरबस कंपनी के मुताबिक, सी295 विमान एक साथ 71 सैनिक या फिर 50 पैराट्रूपर्स को एक साथ युद्ध-मैदान में ले जाने में सक्षम है. एवरो की तरह ही सी-295 भी टूइन-इंजन टर्बोप्रोप एयरक्राफ्ट है.
सी-295 का गेट पिछले हिस्से में
सी-295 का गेट पिछले हिस्से में है जिससे सैनिकों (पैरा-ट्रूपर्स) और कार्गो को आसानी से एयर-ड्राप किया जा सकता है. इन विमानों के जरिए वायुसेना पैरा कमांडोज़ को एयर-ड्राप करने के लिए इस्तेमाल करेगी. फिलहास वायुसेना, सी-130जे सुपर हरक्युलिस एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल करती है. रक्षा मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट के हरी झंडी मिलने पर जानकारी दी कि एयरबस डिफेंस एंड स्पेस (स्पेन) कंपनी से करार होने के 48 महीने यानि चार साल के भीतर 16 ‘फ्लाईअवे’ एयरक्राफ्ट मिल जाएंगे. बाकी जो 40 एयरक्राफ्ट भारत में बनेंगे वे अगले एक दशक (दस साल) में वायुसेना को मिल जाएंगे. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, सभी 56 विमान स्वदेशी इलेक्ट्रोनिक वॉरफेयर सूट से लैस होंगे.
आत्मनिर्भर भारत को मिलेगा बल
रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट से ‘आत्मनिर्भर भारत’ को काफी मदद मिलेगी. क्योंकि इससे देश में रक्षा क्षेत्र,और खासकर एविएशन सेक्टर में, प्राईवेट इंडस्ट्री को मजबूती मिलेगी. इस प्रोजेक्ट से करीब 700 लोगों को स्किल्ड रोजगार मिलेगा और करीब 3 हजार लोगों को अप्रत्यक्ष तौर से नौकरी मिलेगी. बड़ी संख्या में एमएसएमई यानि मीडियम, स्मॉल एंड माइक्रो कंपनियों को फायदा होगा, क्योंकि एयरक्राफ्ट के स्पेयर पार्टस इत्यादि भारत में ही बनेंगे. सीसीएस की मंजूरी पर एयरबस के प्रवक्ता ने बयान जारी कर इस कदम का स्वागत किया और कहा कि कंपनी टाटा-ग्रुप के साथ करार कर इस प्रोजेक्ट को पूरा करना चाहती है.