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अयोध्या में भगवान राम को उपहार में म‍िली मण‍ियों से बना था मण‍िपर्वत, सावन शुक्ल तृतीया से शुरू होता है झूलनोत्सव

रामनगरी के कई मंदिरों से श्रीराम व मां सीता के युगल विग्रह को अति आदर के साथ यहां सावन शुक्ल तृतीया के दिन लाया जाता है। यथा शक्ति और भक्ति के हिसाब से कोई सिर पर अथवा ठेले पर रखकर यहां आराध्य को लाता है, तो कोई भव्य शोभायात्रा के साथ आराध्य को लेकर यहां पहुंचता है। कनकभवन से निकलने वाली शोभायात्रा में तो भगवान पालकी पर सवार होकर आते हैं, तो बैंड और आर्केस्ट्रा की धुन के साथ भव्यता के पर्याय हाथी-घोड़े भी यहां आने वाली शोभायात्राओं में शामिल होते हैं। सावन मास की पूर्णिमा तक चलने वाला रामनगरी अयोध्या का सुप्रसिद्ध झूलनोत्सव सावन महीने के शुक्ल पक्ष में तृतीया तिथि से आरम्भ होती है। जिस मणिपर्वत से झूलनोत्सव का आगाज होता है उसकी कहानी रोचक है।

 

ग्रंथों के अनुसार त्रेता में विवाह के बाद भगवान राम को मां जानकी के साथ उपहार में प्रचुर मात्रा में मणियां भी मिलीं। मणियां इतनी अधिक मात्रा में थीं कि महल में उनके रखने की जगह नहीं बची, उन्हें महल के आग्नेय कोण पर स्थित उस उपवन में रखवाया गया, जो राजपरिवार के आमोद-प्रमोद का साधन था। मणियों का पर्वत सज जाने से इस उपवन की गौरव-गरिमा में चार-चांद लग गए। भगवान राम सावन के महीने में मां जानकी के साथ आमोद-प्रमोद के लिए इस उपवन में आते थे। मान्यताओं के अनुसार सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया से पूर्णिमा तक वे यहां अनिवार्य रूप से आते थे। चारो तरफ हरियाली व रिमझिम फुहार के बीच यहां आने के लिए उत्तम समय था। उस समय तो सरयू नदी मणिपर्वत के कुछ ही फासले पर प्रवाहित होती थीं और तिलोदकी गंगा के नाम से जानी जाने वाली त्रेतायुगीन एक अन्य नदी मणिपर्वत से स्पर्शित होकर बहती थी।

मणिपर्वत से चंद फासले पर सीताकुंड और इसी कुंड के करीब सरयू और तिलोदकी के संगम से रामनगरी के इस सिरे की गहन प्राकृतिक सुषमा का सहज अंदाज लगाया जा सकता है। प्राकृतिक संपदा की यह गौरवमय विरासत चार-पांच दशक पूर्व तक भी कमोवेश विद्यमान थी, लेकिन हाल के कुछ दशकों में इस विरासत का तीव्रता से क्षरण हुआ है। तिलोदकी गंगा लुप्त हो गई है। सरयू मुंह मोड़ कर कोसों दूर चली गई हैं। मणियां तो नाम की ही थीं, मणिपर्वत के रूप में मिट्टी का जो टीला था, वह भी बरसात दर बरसात दरकता- सिकुड़ता जा रहा है।

 

मणिपर्वत का परिसर संक्रमित भी हो रहा है। बड़े एवं पुराने वृक्षों का जीवन एक-एक कर समाप्त होता जा रहा है, नए पौधों का रोपण नहीं हो पा रहा है और यदि कुछ पौधे रोपित किए भी गए, तो उनका संरक्षण नहीं हो सका। ऐसे में मणिपर्वत की नैसर्गिक आभा का तेजी से क्षरण भी हो रहा है। अयोध्या में एक मंदिर के पुजारी ने बताया कि वैसे तो भगवान श्रीराम के झूलनोत्सव की परम्परा अनंत काल से चली आ रही है। मंदिर में भगवान श्रीराम सहित विराजमान भगवान को झूलों पर विराजमान कराने के साथ भव्य आयोजन किया जाता है, लेकिन अभी कोरोना महामारी समाप्त नहीं हुआ है इसलिए इस वर्ष भी बहुत ही सादगी से मनाया जा रहा है।