प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान मुफ्ती फैज-उल-वहीद का 56 साल की उम्र में निधन हो गया. मुफ्ती कुरान का गोजरी भाषा में अनुवाद करने वाले पहले व्यक्ति थे और जम्मू-कश्मीर में सैकड़ों आदिवासी छात्रों को चिकित्सा और इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने में मदद करते थे. यहां एक निजी अस्पताल में कोरोना वायरस के कारण उनकी मौत हो गई.
फैज-उल-वहीद राजौरी जिले के दुदासनबाला गांव के रहने वाले थे, जोकि दारुल उलूम देवबंद के पूर्व छात्र थे. उन्होंने जम्मू के भटिंडी में इस्लामिक मदरसा मरकज मारिफ-उल-कुरान के संरक्षक के रूप में कार्य किया था. मुफ्ती के कई फॉलोअर्स थे कि उनकी नमाज-ए-जनाजा (अंतिम संस्कार की नमाज) को कोविड प्रोटोकॉल के पालन में छोटे समूहों में 40 बार पेश किया गया . उनकी नमाज-ए-जनाजा में बड़ी संख्या में लोग उनको श्रद्धांजलि देने आए थे.
विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने उनके निधन को समाज के लिए एक बड़ी क्षति बताया. ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन, एक एनजीओ के संस्थापक महासचिव जावेद राही ने कहा कि मुफ्ती को 23 मई को आचार्य श्री चंदर कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंस (ASCOMS) अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
आदिवासियों को बढ़ावा देते थे मुफ्ती फैज
आदिवासियों के उत्थान के लिए उनके प्रयासों के लिए विद्वान को व्यापक रूप से सम्मानित किया गया था. राही ने कहा कि उन्होंने धार्मिक शिक्षाओं के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूरे जम्मू संभाग में मदरसे खोले थे और अक्सर समुदाय के संपन्न सदस्यों को गरीब आदिवासी छात्रों का खर्च उठाने में मदद करते थे.
इस्लाम पर लिखीं हैं कई किताबें
मुफ्ती ने इस्लाम पर कई किताबें भी लिखीं हैं. गोजरी में लिखी गई आखिरी किताब को ‘सराज उल मुलिरा’ नाम दिया गया था, जोकि पैगंबर के जीवन के बारे में था. जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (JKPCC) के अध्यक्ष जीए मीर ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताया है.
वहीं, जेकेपीसीसी के मुख्य प्रवक्ता रविंदर शर्मा ने कहा कि मुफ्ती एक विद्वान थे और हमेशा शांति और धार्मिक भाईचारे के लिए काम करते थे. जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने अपने शोक संदेश में कहा कि विद्वान की मौत ने समाज में एक शून्य पैदा कर दिया है.