दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना के मरीजों की संख्या घटकर एक हजार के नीचे आ गई है. जैसे-जैसे अस्पतालों के अंदर की स्थिति दिन-ब-दिन बेहतर होती जा रही है, वैसे-वैसे गरीब और हाशिए पर खड़े लोगों के बुरे दिन की शुरुआत हो रही है. लॉकडाउन ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया था. रोजगार, पैसे और खाने के अभाव से प्रवासी सबसे अधिक पीड़ित हैं. 55 वर्षीय मोहम्मद नौशाद और फातिमा खातून 5 बच्चों के साथ दिल्ली के सराय काले खां में एक बीएचके में रहते हैं. नौशाद ने इंडिया टुडे को बताया, ‘मैं एक होटल में काम करता था, रसोई में चपाती बनाता था, पिछले साल महामारी के कारण मैंने वह काम खो दिया था, फिर मैंने एक रिक्शा किराए पर लिया लेकिन दूसरी लहर के कारण मैंने वह आय का तरीका भी खो दिया, अब मेरे पास बच्चों को खाना खिलाने का भी पैसा नहीं है.’
नौशाद ने कहा कि हमारे पास पैसे नहीं हैं, रोज़ मकान मालिक आता है और हमें धमकी देता है कि अगर हम किराया नहीं देते हैं तो रूम खाली करना पड़ेगा, हम ऐसी स्थिति में हैं जहां अपनी किडनी बेचने के लिए तैयार हैं, अगर हमारे बच्चों के लिए खाना मिल सकता है, हम किराए का भुगतान कैसे कर सकते हैं, मेरे 5 बच्चे हैं, किसी की भी कमाने की उम्र नहीं है. फातिमा खातून ने कहा कि हमारे पास जो भी छोटी-छोटी बचत थी, वह अब खत्म हो गई है, इसलिए हम किसी भी तरह के काम की तलाश में हैं, हम महामारी से लड़कर अब तक जीवित हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि अब हम भूख से मरेंगे.
‘पहले टीकाकरण कराओ, फिर नौकरी पर आओ’
67 वर्षीय सुनीता कुमारी दक्षिणी दिल्ली के घरों में नौकरानी का काम करती थीं और उनका बेटा दिल्ली में मजदूरी का काम करता था, लेकिन दोनों को नौकरी न मिल रही है. सुनीता कुमारी ने इंडिया टुडे को बताया, ‘मैं घरों में झाड़ू-पोंछा करती थी लेकिन दूसरी लहर की वजह से मेरी नौकरी चली गई.’ सुनीता कहती हैं, ‘पिछले साल हमारे पास गुजारा करने के लिए पैसे नहीं थे, इस साल की तो बात ही छोड़ दें. अब या तो हम मर जाएं या हमें अपनी नौकरी मिल जाए. कोई मुझे वापस नहीं बुला रहा है, लोग कह रहे हैं कि टीका लगवाओ और फिर आओ, अब मुझे टीके कहां से मिलेंगे, मेरे पास खाने के लिए पैसे नहीं हैं, मैं टीका कहां से लाऊंगी.’
उसके बेटे ने कहा कि मैं एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करता था, दिल्ली सरकार ने निर्माण कार्यों और कारखानों को फिर से शुरू करने की अनुमति दी है, मालिक कह रहे हैं कि पहले खुद को टीका लगवाओ, कोई हमें नहीं रख रहा है या हमारी नौकरी वापस नहीं दे रहा है, सरकार गरीब लोगों का मुफ्त में टीकाकरण नहीं करवा पाई, जो हमारा अधिकार है.
दूसरी लहर ने ली नौकरी, अब ई-रिक्शा चला रहा है चंदन
25 साल के चंदन अपने परिवार में इकलौते शख्स हैं, जिन्होंने ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की है. वह दिल्ली में एक ऑफिस बॉय के रूप में काम कर रहा था, अब वह चिलचिलाती धूप में ऑटो चला रहा है ताकि वह अपना पेट भर सके क्योंकि कोई नौकरी नहीं है. उसने कहा कि मेरा परिवार ग्वालियर में रहता है, मुझे भी पैसा घर भेजना है.
चंदन ने कहा कि जिस जगह मैं ऑफिस बॉय के रूप में काम कर रहा था, उसने मुझे दूसरी लहर के शुरू होते ही बर्खास्त कर दिया, मेरे दोस्त ने मेरे लिए एक बैटरी रिक्शा की व्यवस्था की, ताकि मैं कम से कम कुछ कमा सकूं, लेकिन पुलिस हमें मारती है, अब हमें क्या करना चाहिए, और मरने की प्रतीक्षा करें.’ सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने सोमवार को कहा कि महामारी की दूसरी लहर के कारण 15 मिलियन से अधिक भारतीयों ने अपनी नौकरी खो दी है और ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर हैं.