कोरोना का कहर अब गंगा की गोदी में देखा जा सकता है। सैंकड़़ों शव, लाशें मानवता की लाचारी, विवशता दिखा रही हैं। प्रयागराज जिले में गंगा किनारे का शवों का दृश्य विचलित करने वाला है। हवा चलने से रेत हटी तो बालू में दफन शव दिखने लगे। सैकड़ों की संख्या में गंगा किनारे दफनाए शव अब दिखने लगे हैं। माना जा रहा है कि लकड़ी और आर्थिक तंगी ने लोगों को मजबूर कर दिया है। इससे पहले भी गंगा, यमुना और रामगंगा नदी में बड़ी संख्या में शवों को उतराते देखा गया था। योगी सरकार ने नदियों में शव बहाने पर पाबंदी लगा दी थी। नगर महापौर और नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत स्तर पर गठित समितियों का अध्यक्ष चेयरमैन को बनाया गया है। सदियों से लोगों की आस्था के रुप में पूजी जाने वाली मां गंगा का अस्तित्व झूंसी में खतरे में हैं। झूंसी के छतनाग गांव स्थित गंगा तट को लोगों ने कब्रिस्तान बना दिया है। इस घाट की स्थिति बहुत ही वीभत्स है। छतनाग घाट को श्मशान घाट के रुप में ज्यादा मान्यता मिली हुई है। कोरोना संक्रमण में लोग गंगा में शव दफना रहे हैं। छतनाग घाट पर गंगा तट के तकरीबन एक किलोमीटर की दूरी में सौ से ज्यादा लाशें दफनाई गई हैं।
नमामि गंगे को लग रहा धक्का
मां गंगा की सफाई और इसे प्रदूषण मुक्त करने को केंद्र व प्रदेश सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन स्थिति ठीक विपरित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे की छतनाग घाट पर धज्जियां उड़ाई जा रही है। माघ, महाकुंभ और कुंभ के दौरान छतनाग घाट तक मेला रहता है। छतनाग श्मशान घाट पर झूंसी के अलावां जौनपुर, प्रतापगढ़, हंडिया, गोपीगंज, ज्ञानपुर, बरौत, बादशाहपुर समेत कई शहरों से लोग शवों का अंतिम संस्कार करने आते हैं। घाट पर मां गंगा की अविरल धारा से महज दो सौ मीटर दूर पर ही तकरीबन एक किलोमीटर की एरिया में सौ से ज्यादा लाशें बेखौफ दफनाई गई हैं। इससे छतनाग गांव समेत आसपास के लोग हतप्रभ हैं।
ग्रामीणों ने शवों को दफनाए जाने पर तत्काल रोक लगाए जाने की मांग की है। शव का क्रिया-कर्म करने में कम से कम दस से बारह हजार रुपये का खर्च आता है। जो इस कोरोना काल में उनके लिए बहुत बड़ी रकम है। इसलिए वे हिन्दू परंपरा को छोड़कर शव को रेती मेें दफनाने के लिए मजबूर हैं। छतनाग घाट के तकरीबन एक किलोमीटर के दायरे में चिताओं के निशान, बिखरे अंतिम संस्कार के अवशेष को देखकर लोगों का कलेजा कांप जाता है। जिन जगहों पर शवों को गाड़ा गया है, उसी के ठीक बगल में ही बांस और बिस्तर पड़े रहते हैं। इससे आसपास रहने वालों को जीना मुहाल हो रहा है।