राजस्थान में किसान आन्दोलन को समर्थन देने आए राहुल गांधी का आक्रामक अंदाज देखने को मिला। इस बार राहुल गांधी की कोशिश किसान-मजदूरों की बात पर ही अपने भाषण को पूरी तरह फोकस रखने की नजर आ रही है। अपने सधे हुए शब्दबाण से पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की भी एक बार फिर से नोटबंदी, जीएसटी और तीनों कृषि कानूनों को लेकर जमकर आलोचना कर रहे हैं।
हर जगह अपने भाषण के जरिए उन्होंने यही समझाने की कोशिश की है कि ये तीनों कृषि कानून क्यों घातक हो सकते हैं। हनुमानगढ़ के पीलीबंगा में हुए पहली किसान सभा में अपने 23 मिनट के भाषण में राहुल गांधी ने 12 बार पीएम नरेंद्र मोदी का नाम लेते हुए उनकी और उनके सरकार के कामकाज पर सवाल उठाते हुए दो टूक शब्दों में कह दिया कि यदि मोदीजी किसानों से बात करना चाहते हैं तो पहले उन्हें कृषि कानूनों को वापस लेना ही होगा।
साथ ही उन्होंने एलएसी पर चीन के हिन्दुस्तान की जमीन कब्जाने के मुद्दे को उठाकर फिर से सरकार के दावों को खोखला करार देकर यह संकेत दे दिया कि आने वाले दिनों में वे और उनकी पार्टी इस मुद्दे पर बीजेपी और केंद्र सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी।
राहुल गांधी अपनी दो दिनों की यात्रा पर राजस्थान आए हुए हैं। पहले दिन उन्होंने हरियाणा और पंजाब सीमा से सटे हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के किसान महापंचायत में भाग लिया। वहीं अगले दिन यानी की शनिवार को वे अजमेर जिले के किशनगढ़ और नागौर जिले में आयोजित किसानों के सम्मलेन को भाग लेंगे। यानी राहुल गांधी राजस्थान की अपनी 2 दिनों में यात्रा के दौरान 4 जिलों में 4 किसान सभाओं में भाग ले रहे हैं।
राहुल कि पहले दिन की जनसभा हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के उन इलाकों में हुई जो की किसान बाहुल्य माने जाते हैं। पंजाब और हरियाणा से भी किसानों को इसमें भाग लेने के लिए काफी तादात में बुलाया गया, ताकि इलाके के लोगों के बीच से अकाली दल और बीजेपी के प्रभाव को कुछ कम किया जा सके। यहां मौजूद ज्यादातर वो किसान थे जिनके परिवार का कोई ना कोई सदस्य दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आन्दोलन में शामिल है या जाकर आ चुका है।
कोशिश यह थी कि भले ही ये लोग किसी भी राजनितिक दल या विचारधारा वाले थे, लेकिन उन्हें यहां बुलाकर यह तसल्ली देने की कोशिश की गई कि कांग्रेस पार्टी आन्दोलन कर रहे किसानों के साथ इस कानून को वापस लेने तक पूरी तरह खड़ी हुई है। यही नहीं अगले दो दिनों तक इस बात पर भी खास तौर पर ध्यान रखा जा रहा है कि राहुल की इन सभा के जरिए विपक्ष को आलोचना का कोई मौका नहीं मिले।
यही कारण है कि मंच पर महंगी कुर्सियों या मंच को बहुत ज्यादा सजाने-संवारने की बजाय वहां केवल खाट लगवा दिया गया। चूंकि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, ऐसे में जगह जगह लगाए गए पोस्टरों में राजस्थानी परिवेश में राहुल गाँधी की तस्वीरों के साथ राजस्थान के अभिवादन शब्द खम्माघनी जैसे शब्द छपवाकर राजस्थान के लोगों से जोड़ने की कोशिश करके बताया गया।
वैसे गौर करने वाली बात यह है कि राहुल गांधी पिछले तीन सालों में जितनी भी बार राजस्थान आए थे, हर बार उनकी परेशानी का कारण अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही तनातनी को सुलझाने की होती थी। राहुल गांधी हर बार ही इसे लेकर सफाई देकर दोनों के बीच एकजुटता का संकेत देते भी नज़र आते थे। इस बार मंच की तस्वीर ही बदली-बदली से नजर आ रही थी।
हालांकि इस बार भी राहुल गांधी के साथ पूरे 379 दिनों बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ही मौजूद थे, लेकिन कम से कम इस विषय को लेकर ना तो राहुल गांधी किसी पशोपेश में नजर आये और ना ही सीएम अशोक गहलोत। हमेशा राहुल गांधी के पास बैठने वाले सचिन पायलेट को उनसे दो- तीन कुर्सी दूर बैठाया गया। इतना भी जरूर हो गया कि श्रीगंगानगर जिले के पदमपुर में आयोजित किसान सभा में सचिन पायलेट को जरूर मंच से भाषण देने का मौका दिया गया।
दूसरा, वैसे हनुमानगढ़ वही जिला है जहां विधानसभा चुनावों से एन पहले राहुल गांधी की जनसभा हुई थी और यहीं से उन्होंने 10 दिनों में किसानों की कर्ज माफी का वादा किया था, साथ ही उन्होंने राजस्थान में कांग्रेस किस सरकार बनने पर किसानों के लिए किये जाने वाले कामों का भी एलान किया था, लेकिन अपनी इस सभा ने ना तो उन्होंने अशोक गहलोत सरकार के कोरोना प्रबंधन के कामकाज के लिए एक बार तारिफ करने के अलावा न तो अपने कोई विचार रखे और ना ही कोई इशारा देना मुनासिब समझा।
लोगों के अभिवादन के बाद कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सीधे अपने भाषण की शुरुआत ही उन्होंने कृषि कानूनों की कमियां गिनाने से कर दी। यानी कृषि कानूनों की कमियां गिनाते हुए मोदी सरकार के कामकाज के तरीके को लेकर सवाल उठाने के जिस मकसद के साथ राहुल गांधी मंच पर आए, उस पर उन्हें पूरी तरह फोकस करने का मौका मिल गया। हालांकि भाषण के आखिर में राहुल गांधी ने जाते-जाते चीन की चालाकी का मामला छेड़ते हुए केंद्र सरकार की आलोचना में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
शुक्रवार को हुई दोनों ही किसान सभाओं में राहुल गांधी के भाषण के लगभग सारे अंश वही थे जो कि उन्होंने 24 घंटे पहले संसद में बोलकर तीनों कृषि कानूनों के लक्ष्य और सोच को बताने की कोशिश की थी, लेकिन इन्हीं बातों को और प्रभावी तरीके से बताकर वे यह साबित करने की कोशिश में जुटे रहे कि कृषि से जुड़े देश की 40 फीसदी जनता पर इसका किस तरह असर होगा। किस कदर देश में जमाखोरी और बेरोजगारी बढ़ जाएगी। किसानों के साथ साथ उन्होंने छोटे व्यापारियों को भी चेताने की कोशिश की कि इस कानून का उन पर आने वाले दिनों में किस तरह से प्रभाव पड़ेगा।
पीएम मोदी सहित बीजेपी नेताओं के बार बार किसानों से बातचीत के प्रस्ताव पर भी राहुल गांधी ने यह कहकर किसानों के साथ का भरोसा दिया कि बातचीत क्या करनी है। पहले कानून वापस ले फिर चाहे जितनी बात करें। गंगानगर के पदमपुर में हुई किसान सभा में तो उन्होंने बीजेपी सांसदों और केंद्र सरकार के मंत्रियों द्वारा संसद में किसानों के सम्मान में दो मिनट के मौन के लिए खड़े तक नहीं होने को भी किसान सम्मान से जोड़कर बताने की कोशिश करते हुए जय जवान-जय किसान का नारा भी लगाया।
वैसे 26 जनवरी की घटना के बाद से कुछ हद तक गलत संकेतों के साथ तक कमजोर पड़े किसान के दिल्ली या शाहजहापुर बोर्डर पर चल रहे आन्दोलन और उस जगह से जुड़े मुद्दों पर उन्होंने पुरे भाषण के दौरान चुप्पी साधे रखना ही मुनासिब समझा, लेकिन कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना का कहीं भी कोई मौका नहीं छोड़ा।
बार बार समझाते रहे कि किस तरह इन कानूनों के जरिये कृषि मंडी, छोटे मजदूर और किसान ख़त्म हो जायेंगे और उन्हें कोर्ट कचहरी तक से इन्साफ नहीं मिलेगा। बहरहाल राहुल गांधी के राजस्थान दौरे का दूसरा दिन राजनितिक लिहाज से काफी अहम रहने की संभावना है, क्योंकि दूसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत भी किसानों की बात से ही करेंगे, राजस्थान के उस जाटलैंड वाले इलाके में जाकर, जो की कभी कांग्रेस का मजबूत वोट बेंक रहा था लेकिन बीजेपी और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी के चलते यहां कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है।जाट समुदाय को भरोसा दिलाने लिए वे उनके लोक देवता तेजाजी की निर्वाण स्थली में भी जायेंगे और ट्रेक्टर रेली के जरिये फिर से किसानों से संवाद करेंगे।