2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी को बड़ा झटका देते हुए सुवेंदु अधिकारी ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है. सुवेंदु अधिकारी ने बुधवार को टीएमसी विधायक के पद से इस्तीफा दे दिया. अधिकारी विधानसभा में अपना इस्तीफा सौंपने के लिए पहुंचे थे लेकिन स्पीकर की गैरमौजूदगी में उन्होंने सचिवालय को अपना इस्तीफा सौंप दिया. पश्चिम बंगाल की 65 विधानसभा सीटें पर अधिकारी परिवार की मजबूत पकड़ है. ये सीटें राज्य के छह जिलों में फैली हैं. शुभेंदु के प्रभाव वाली सीटों की संख्या राज्य की कुल 294 सीटों के पांचवें हिस्से से ज्यादा है. शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता शिशिर अधिकारी 1982 में कांथी दक्षिण से कांग्रेस के विधायक थे, लेकिन बाद में वे तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गए. शुभेंदु अधिकारी 2009 से ही कांथी सीट से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं.
वाम दलों को सत्ता से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई शुभेंदु ने कांथी दक्षिण सीट पहली बार 2006 में जीती थी. तीन साल बाद वे तुमलुक सीट से सांसद चुने गए. लेकिन इस बीच उनकी प्रसिद्धि काफी बढ़ती गई. 2007 में शुभेंदु अधिकारी ने पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में एक इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के खिलाफ भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया. शुभेंदु ने भूमि उछेड़ प्रतिरोध कमेटी (BUPC) के बैनर तले ये आंदोलन खड़ा किया था, जिसका बाद में पुलिस और CPI(M) के कैडर के साथ खूनी संघर्ष हुआ.
प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने फायरिंग की जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए थे. इसके बाद आंदोलन और तेज हो गया, जिससे तत्कालीन लेफ्ट सरकार को झुकना पड़ा. हुगली जिले के सिंगूर में भी इसी तरह भूमि अधिग्रहण के विरोध में प्रदर्शन हुए. इन दो घटनाओं ने 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम दलों को सत्ता से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई. नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलनों का प्रभाव नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलनों का प्रभाव पूरे राज्य में देखा गया था, लेकिन आसपास के जिलों में कुछ ऐसा हुआ जिसने शुभेंदु को एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर दिया. 2006 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल का वोट शेयर 27 प्रतिशत था जो कि पांच साल बाद बढ़कर 39 प्रतिशत हो गया. पूर्व मिदनापुर और पश्चिम बर्दवान समेत पूरे जंगल महल में फैली 65 सीटें, जिन पर अधिकारी परिवार का प्रभाव माना जाता है, वहां तृणमूल का वोट शेयर 28 प्रतिशत से बढ़कर 42 प्रतिशत हो गया. 2016 में तृणमूल कांग्रेस को इन सीटों पर करीब 48 प्रतिशत वोट मिले, उसके बाद वाम मोर्चा को 27 प्रतिशत और भाजपा को 10 प्रतिशत वोट मिले. हालांकि, पिछले साल राज्य में 18 संसदीय सीटें हासिल करने के बाद बीजेपी अब बंगाल में मुख्य विपक्ष के रूप में उभरी है.